'99% लोग काम पर नहीं आएंगे...', Startup Founder का दावा, ज्यादातर लोगों को नहीं पसंद उनकी जॉब

Shantanu Deshpande: बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट से कार्य संस्कृति पर बहस छेड़ दी है. लिंक्डइन पर एक पोस्ट में अपने ओवरव्यू को शेयर करते हुए उन्होंने दावा किया कि ज्यादातर भारतीय कर्मचारी अपनी नौकरी को नापसंद करते हैं और अगर उनकी वित्तीय जरूरतें पूरी हो जाती हैं तो वे पूरी तरह से काम करना बंद कर देंगे.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Shantanu Deshpande: बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ शांतनु देशपांडे ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए कार्य संस्कृति पर एक नई बहस छेड़ दी है. लिंक्डइन पर साझा की गई इस पोस्ट में उन्होंने दावा किया कि भारत के अधिकांश लोग अपनी नौकरी से नाखुश हैं. उनका कहना है कि अगर लोगों की वित्तीय ज़रूरतें पूरी हो जाएं, तो 99% कर्मचारी काम पर जाना छोड़ देंगे.

देशपांडे ने न केवल नौकरीपेशा लोगों की मानसिकता पर प्रकाश डाला, बल्कि भारत की आर्थिक असमानता और कार्य संस्कृति के मॉडल पर भी सवाल खड़े किए. उनकी पोस्ट ने सोशल मीडिया पर विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों और विशेषज्ञों के बीच चर्चा का माहौल बना दिया है.

ज्यादातर लोग अपनी नौकरी से खुश नहीं

शांतनु देशपांडे ने अपने पोस्ट में लिखा, "मुझे जो दुखद और देर से अहसास हुआ, वह यह है कि ज़्यादातर लोगों को अपनी नौकरी पसंद नहीं है. अगर भारत में हर किसी को टिकाऊ पैसा और उनकी मौजूदा नौकरी से मिलने वाली वित्तीय सुरक्षा दी जाए, तो 99 प्रतिशत लोग अगले दिन काम पर नहीं आएंगे."

हर क्षेत्र में असंतोष का माहौल

उन्होंने बताया कि यह समस्या केवल एक विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं है. असंतोष हर जगह फैला हुआ है, चाहे वह ब्लू-कॉलर कर्मचारी हों, सरकारी कर्मचारी, गिग वर्कर्स, बीमा सेल्समैन, बैंक कर्मचारी, या छोटे व्यवसाय मालिक. उन्होंने कहा, "ब्लू-कॉलर वर्कफोर्स से लेकर सरकारी कर्मचारियों, गिग वर्कर्स, कारखानों, बीमा सेल्समैन, बैंकों, छोटे व्यवसाय मालिकों से लेकर बीएससी जैसे 'मजेदार और कर्मचारी-अनुकूल स्टार्टअप' तक - कहानी एक जैसी है."

काम, मजबूरी और असमानता

देशपांडे ने लिखा, "ज़्यादातर लोगों के लिए काम करना जीवनसाथी, बच्चों, बुज़ुर्ग माता-पिता और आश्रित भाई-बहनों के लिए रोज़गार जुटाने की मजबूरी है." उन्होंने भारत की कार्य संस्कृति की तुलना "लटकाने वाली गाजर" प्रणाली से की, जहां व्यक्ति को आर्थिक लाभ का लालच देकर दिन-रात काम कराया जाता है. उन्होंने आगे कहा, "250 से ज़्यादा सालों से यही होता आ रहा है और इसी तरीके से राष्ट्रों का निर्माण हुआ है. लेकिन अब मैं इस असमानता पर सवाल उठाने लगा हूं."

आर्थिक असमानता का मुद्दा

देशपांडे ने भारत की आर्थिक असमानता पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा, "भारत में 2000 परिवार हमारी राष्ट्रीय संपत्ति का 18% हिस्सा रखते हैं. यह पागलपन है." उन्होंने यह भी बताया कि ये परिवार करों में 1.8% से भी कम का योगदान करते हैं.

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08 January 2025, 04:52 PM IST

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