महाकुंभ का मेला, 13 फरवरी यानी कल से शुरू होने जा रहा है. इसे मानव जाति का सबसे बड़ा सांस्कृतिक समागम माना जाता है. यह ना केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है बल्कि इसका आर्थिक प्रभाव भी अद्वितीय होता है. 2025 के महाकुंभ से अनुमानित 4 लाख करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगा. इस आयोजन के माध्यम से जीडीपी में 1% से ज्यादा की वृद्धि होगी और सरकारी राजस्व को भी बढ़ावा मिलेगा.
उत्तर प्रदेश सरकार के अनुमान के अनुसार, महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों की भागीदारी की उम्मीद जताई जा रही है. यदि प्रत्येक व्यक्ति औसतन 5,000-10,000 रुपये खर्च करता है, तो कुल खर्च 4.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. इसमें आवास, परिवहन, खानपान, हस्तशिल्प और पर्यटन जैसे विभिन्न क्षेत्रों को फायदा होगा, जो इस आयोजन को आर्थिक दृष्टि से एक विशाल गतिविधि बनाता है.
महाकुंभ के कारण, भारत की जीडीपी में 1% से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान है. 2023-24 में भारत की जीडीपी 295.36 लाख करोड़ रुपये थी, जबकि 2024-25 में यह बढ़कर 324.11 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है. महाकुंभ इस वृद्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसके अलावा, सरकार का कुल राजस्व, जिसमें जीएसटी, आयकर और अन्य अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं, 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. अकेले जीएसटी संग्रह 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ के लिए 16,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई है, जो उच्च रिटर्न देने वाले साबित हो रहे हैं. यह निवेश सांस्कृतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से लाभकारी है, जिससे राज्य के विकास में योगदान मिलेगा.
महाकुंभ मेला भारतीय अर्थव्यवस्था के अद्वितीय ढांचे को प्रदर्शित करता है, जहां संस्कृति और वाणिज्य का मेल होता है. ऐतिहासिक रूप से, ऐसे मेले और धार्मिक आयोजन व्यापार, पर्यटन और सामाजिक संबंधों को बढ़ाने में मदद करते रहे हैं. महाकुंभ ना केवल आर्थिक समृद्धि लाता है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत बनता है. First Updated : Sunday, 12 January 2025