Explainer: म्यांमार ने अफ़ग़ानिस्तान को अफ़ीम उगाने के मामले में पीछे छोड़ा, जानिए भारत में इसकी खेती के क्या हैं नियम?
Explainer: जो लोग अफ़ीम को लेकर दिलचस्पी रखते हैं उनको पता होगा कि ये आमतौर पर काफी महंगा मिलता है. आज आपको बताएंगे कि आखिर अफीम इतना महंगा क्यों मिलता है, और इसकी खेती को लेकर भारत में क्या नियम हैं.
Explainer: अफ़ीम एक ऐसा नशा है, जिसे लेकर दुनिया के हर देश में अलग-अलग कानून बने हुए हैं. अभी तक दुनिया में अफ़ीम का सबसे ज़्यादा उत्पादन अफ़ग़ानिस्तान में होता था, जिसमें दुनियाभर का 85 फीसद अफीम अफ़ग़ानिस्तान से मिलता था. लेकिन संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक, म्यांमार ने अफीम की खेती के मामले में पहली बार अफ़ग़ानिस्तान को पीछे छोड़ दिया है. अगर भारत की बात करें तो यहां अफ़ीम की खेती अधिक मात्रा में नहीं की जाती है. इसकी खेती करने के लिए सरकार से अलग से लाइसेंस लेना पड़ता है और सरकार केवल कुछ राज्यों के किसानों को ही लाइसेंस जारी करती है.
अफ़ीम उगाने में अफ़ग़ानिस्तान था आगे
दुनिया भर में आतंकवादी संगठन पैसा कमाने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां करते हैं. अफगानिस्तान की सत्ता संभालने वाला तालिबान भी दशकों से अफ़ीम की खेती कर रहा है. अब अफगानिस्तान में सरकार भी तालिबान की है इसलिए वहां अफ़ीम की खेती बढ़ाई गई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की लगभग 85 प्रतिशत अफ़ीम का उत्पादन अफ़ग़ानिस्तान में ही होता था. लेकिन अब अफ़ग़ानिस्तान को म्यांमार ने पीछे छोड़ दिया है.
भारत में कैसे होती है अफ़ीम की खेती?
भारत में भी कुछ किसान अफ़ीम की खेती करते हैं और भारी मुनाफ़ा कमाते हैं. हालाँकि, अफ़ीम की खेती इतनी आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए आपको सभी नियमों और शर्तों का पालन करना होता है और इसकी खेती केवल लाइसेंस लेकर ही की जा सकती है. आइए जानते हैं कि अफीम की खेती कैसे की जाती है और इसमें कितना मुनाफा मिलता है.
कब होती है अफ़ीम की खेती
अफ़ीम की खेती ठंड के दिनों में की जाती है. इसकी फसल अक्टूबर से नवंबर के बीच बोई जाती है. इसके लिए सबसे पहले खेत की 3-4 बार अच्छी तरह जुताई की जाती है और उसमें खूब सारा गोबर या वर्मी कम्पोस्ट मिला दिया जाता है. इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि अफीम की खेती में न्यूनतम सीमा तक उत्पादन करना जरूरी है, इसलिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में पोषण होना चाहिए, अन्यथा आपका लाइसेंस भी रद्द हो सकता है. अधिक उपज के लिए खेती से पहले भूमि का परीक्षण करा लें, ताकि पता चल सके कि क्या कमी है और उसे कैसे पूरा किया जाए.
कैसे मिलता है लाइसेंस?
अफ़ीम की खेती करने के लिए सरकार ने कुछ नियम बनाए हुए हैं. ऐसा नहीं होता है कि किसी भी खेत में अफ़ीम उगा लिए जाएं. सरकार ने इसकी खेती के लिए एक शर्तें रखी हैं, जिनको मानना जरूरी होता है. इसका लाइसेंस वित्त मंत्रालय देता है. नारकोटिक्स विभाग के कई संस्थान अफ़ीम पर रिसर्च करते हैं, जहां से आपको नशे के बीज मिलते हैं. जवाहरलाल लॉफ-16, जवाहरलाल लॉफ-539 और जवाहरलाल लॉफ-540 काफी लोकप्रिय हैं. आपको प्रति हेक्टेयर लगभग 7-8 शिशु फूलों के बीज की आवश्यकता होती है. ध्यान रखें, अगर आपको कुछ बीज कहीं से मिल भी जाएं तो भी आप उन्हें नहीं खरीद सकते. अगर आपने बिना लाइसेंस के एक भी लाफ प्लांट खरीदा है तो आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है.
95-115 दिनों में आते हैं फूल
अफ़ीम उगाने के लिए एक प्रोसेस से गुजरना होता है. इसके पौधे में 95-115 दिनों में फूल आते हैं, इसके बाद ये फूल झड़ जाते हैं और 15-20 दिनों में पौधों में डोडे लगने लगते हैं. अफीम की हार्वेस्टिंग कई बार में की जाती है. इसके साथ ही जो डोडें होते हैं उनकी दोपहर और शाम के बीच में कट लगाया जाता है, जिसके बाद एक लिक्विवड निकलता है. इसके रात भर के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है अगले दिन तक ये लिक्विवड इस डोडे पर जमा हो जाता है. इसको धूप निकलने से पहले इससे अलग किया जाता है. इस तरह से ये प्रक्रिया कई बार की जाती है, जब लिक्विवड निकलना बंद हो जाता है तब उसके बाद फिर डोडे तोड़कर उसमें से बीज को निकाल जाता है. हर साल नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अप्रैल के महीने में अफ़ीम खरीदता है.
कहां पर होती है खेती?
अगर आप अफीम की खेती करने की सोच रहे हैं तो पहले यह जान लें कि इसकी खेती हर जगह नहीं की जा सकती. फिलहाल यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कुछ ही जगहों पर अफीम की खेती होती है. राजस्थान में इसकी खेती झालावाड़, भीलवाड़ा, उदयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर की जाती है. यूपी के बाराबंकी में अफ़ीम की खेती होती है. वहीं मध्य प्रदेश में नीमच, मंदसौर जैसी जगहों पर अफीम की खेती की जाती है. अफ़ीम की खेती के लिए नए लाइसेंस कम ही जारी किए जाते हैं, ज़्यादातर पुराने लाइसेंस ही नवीनीकृत किए जाते हैं.
कितना होता है मुनाफा?
अफ़ीम की खेती के लिए एक किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग 7-8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और इसकी कीमत बहुत कम होती है. इसके बीज 150-200 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध होते हैं. वहीं, एक हेक्टेयर से लगभग 50-60 किलोग्राम अफ़ीम लेटेक्स एकत्र होता है. वहीं, एक हेक्टेयर से लगभग 50-60 किलोग्राम अफ़ीम लेटेक्स एकत्र होता है. इसका निर्माण लेटेक्स लेटेक्स से निकले लिक्विवड के जमने से होता है. इसके लिए सरकार द्वारा दी गई कीमत करीब 1800 रुपये प्रति किलो है, जबकि अगर इसे ब्लैक मार्केट में बेचा जाए तो 60 हजार रुपये से 1.2 लाख रुपये तक बेचा जा सकता है. इसी के चलते इसकी कालाबाजारी भी बहुत होती है.