नोएल टाटा बने टाटा ट्रस्ट के नए चेयरमैन, जानिए टाटा परिवार के इतिहास और वंश

Noel Tata: रतन टाटा के उत्तराधिकारी उनके सौतेले भाई नोएल टाटा हैं. रतन टाटा के माता-पिता नवल टाटा और सूनू कमिसरियट का तलाक तब हुआ था जब रतन और उनके छोटे भाई जिमी बहुत छोटे थे. तलाक के सालों बाद उनके पिता ने सिमोन डुनोयर से दूसरी शादी की जिससे उन्हें एक बेटा नोएल हुआ.

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Noel Tata becomes the new chairman of Tata Trust: बिजनेस टाइकून रतन टाटा 9 अक्टूबर को इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा कह गए. उनके निधन के 2 दिन बाद नोएल टाटा को 11 अक्टूबर को टाट ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया है. बता दे कि वो रतन टाटा की जगह टाटा समूह की परोपकारी शाखा, टाटा ट्रस्ट्स का अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं.

रतन टाटा, एक दयालु और शालीन सज्जन-उद्योगपति और परोपकारी व्यक्ति थे. उन्हें ब्रांड टाटा को 100 से अधिक देशों में ले जाने का श्रेय दिया जाता है. टाटा समूह की स्थापना 1868 में हुई थी जो अब सबसे बड़े और सबसे विविध वैश्विक समूहों में से एक बन गया है. यह एक ऐसा नाम है जो भारत में लगभग हर घर में और विदेशों में करोड़ों लोगों में सुना जाता है.

नोएल टाटा बने टाटा ट्रस्ट के नए चेयरमैन

रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की. उनके कोई बच्चे नहीं थे और उन्होंने टाटा ट्रस्ट में किसी उत्तराधिकारी का नाम भी नहीं बताया गया है. ऐसे में नोएल की नियुक्ति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि टाटा ट्रस्ट के पास टाटा संस की 66% हिस्सेदारी है. टाटा ब्रांड के तहत विभिन्न फर्मों की होल्डिंग कंपनी है और 150 साल से भी ज्यादा पुरानी है. इस पद को ग्रहण करने के बाद नोएल टाटा ने कहा, 'मैं अपने साथी ट्रस्टियों द्वारा मुझे दी गई जिम्मेदारी से बहुत सम्मानित और विनम्र महसूस कर रहा हूं.'

टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बनने के बाद क्या बोले नोएल टाटा

नोएल टाटा ने टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद कहा, 'मैं इस जिम्मेदारी से बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं. 'मैं रतन एन टाटा और टाटा समूह के संस्थापकों की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हूं. एक सदी से भी ज्यादा समय पहले स्थापित, टाटा ट्रस्ट सामाजिक भलाई के लिए एक अनूठा माध्यम है. इस पवित्र अवसर पर, हम अपने विकासात्मक और परोपकारी पहलों को आगे बढ़ाने और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए खुद को फिर से समर्पित करते हैं.'

टाटा परिवार के इतिहास और वंश

टाटा परिवार के पूर्वज 8वीं शताब्दी ई. में फारस (ईरान) से भारत आए थे. वे पारसियों (फारस के लोग) के एक बड़े समूह का हिस्सा थे, जो एक जोरास्ट्रियन जातीय समुदाय है, जो फारस की इस्लामी विजय के दौरान उत्पीड़न से बचकर भागे थे.

टाटा सेंट्रल आर्काइव्स के अनुसार, टाटा गुजरात के नवसारी में आकर बस गए और 25 पीढ़ियों तक वहीं रहें. उसके बाद बिजनेस के लिए उन्हें बॉम्बे ले जाया गया जो उस समय ब्रिटिश राज के तहत बॉम्बे प्रेसीडेंसी था. उस दौरान बॉम्बे प्रांत में महाराष्ट्र का पश्चिमी दो-तिहाई हिस्सा, उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक, पूरा गुजरात, पूरा सिंध (अब पाकिस्तान में) और अदन (वर्तमान यमन में) शामिल थे.

टाटा परिवार के कारोबार की यात्रा जमशेदजी नुसरवानजी टाटा से शुरू हुई थी. उन्होंने 1868 में बॉम्बे में एक व्यापारिक कंपनी शुरू की, जो आज टाटा समूह बन गई है. टाटा हमेशा देश और समाज की अवधारणा में विश्वास करते रहे हैं. व्यक्तिगत लाभ से ज़्यादा लोगों और समुदाय का निर्माण और उत्थान शुरू से ही, जमशेदजी और उनके दो बेटों सर दोराबजी टाटा और सर रतन टाटा  ने अपनी ज़्यादातर संपत्ति और कंपनी के शेयर चैरिटेबल ट्रस्टों को दे दिए. First Updated : Saturday, 12 October 2024