Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में इलेक्ट्रोल बॉन्ड योजना की वैधता पर सुनवाई के बीच देश में लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. यह केस कोर्ट में कई सालों से मामला लंबित है. चुनावी बॉन्ड को लेकर दायर याचिका में चंदा देने वाले लोगों के नाम को गुप्त रखने पर सवाल उठाया है. याचिकर्ताओं का मानना है कि इससे देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है. याचिका में यह भी कहा गया है कि बड़े पूंजीपतियों से धन जुटाकर उन्हें विशेष लाभ पहुंचाने की भी कोशिश की जा रही है.
सोमवार (1 नवंबर 2023) को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की. इस दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि ऐसा क्यों होता है कि जो पार्टी सत्ता में बैठी है, उसे ही सबसे ज्यादा चंदा मिलता है? इस पर सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि चंदा देने वाले लोग पार्टी की हैसियत से चंदा देते हैं.
पिछले पांच सालों में किस पार्टी को कितना चंदा दिया गया है इस बात की जानकारी देते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि बीते पांच सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनैतिक पार्टियों को करीब 10 हजार करोड़ का चंदा मिला है. इसमें से 57 फीसदी सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को मिला है. जबकि कांग्रेस को को सिर्फ 952.29 करोड़ मिले हैं. यह डाटा 2018 से लेकर 2022 तक का है. इंग्लिश न्यूजपेपर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल 5,271.97 करोड़ रुपये का चंदा मिला और कांग्रेस को 952.9 करोड़ मिला.
वहीं, बीजेडी, टीएमसी और डीएमके जैसी राज्य स्तर के दलों को भी अच्छा-खासा बॉन्ड मिला है, यह पार्टियां राज्य स्तर पर कई सालों से सत्ता पर काबिज है. ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को (बीजेडी) को 622 करोड़, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 767.88 करोड़ और तमिलनाडु की पार्टी डीएमके को 431.50 करोड़ रुपये चंदा मिला है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP को 48 करोड़, जेडीयू को 24.40 करोड़ रुपये चंदा मिला है. इसके अलावा शरद पवार की पार्टी एनसीपी को 51.50 करोड़ इलेक्ट्रोल बॉन्ड मिला है. First Updated : Thursday, 02 November 2023