24 लोगों के हत्यारों को फांसी: दिहुली नरसंहार के दोषियों को 44 साल बाद मिली सजा
44 साल पुरानी दिहुली नरसंहार की घटना में आखिरकार इंसाफ मिल गया. कोर्ट ने 1981 में हुए इस जघन्य हत्याकांड में तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है. इस हमले में 24 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी. कोर्ट ने इसे बेहद जघन्य अपराध माना और दोषियों को कड़ी सजा दी. इस फैसले ने पीड़ित परिवारों को न्याय का एहसास दिलाया. पूरा मामला जानने के लिए पढ़े!

Dihuli Massacre: साल 1981 में हुए दिहुली हत्याकांड को याद करते हुए कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसके तहत 44 साल बाद फिरोजाबाद के दिहुली गांव में डकैतों के गिरोह द्वारा किए गए सामूहिक नरसंहार के तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई. इस फैसले ने न केवल पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि अपराधी चाहे कितना भी समय क्यों न बच जाए, एक दिन उसके उसके किए कर्मों की सजा मिलती ही है.
1981 में क्या हुआ था?
18 नवंबर 1981 को फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में एक जघन्य अपराध हुआ था, जब डकैतों के गिरोह ने दलितों के गांव पर हमला कर दिया. गोलियों से भूनकर 24 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. इस हमले को लेकर पुलिस और प्रशासन भी सकते में आ गए थे, और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेई तक इस घटना को लेकर दिहुली पहुंचे थे.
तीन दोषियों को फांसी और जुर्माना
मंगलवार को हुई सुनवाई में विशेष सत्र न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने तीन दोषियों संतोष सिंह उर्फ संतोषा, राधेश्याम उर्फ राधे और अन्य आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई. साथ ही उन्हें एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. इस नरसंहार में 20 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है और 4 आरोपी अभी भी फरार हैं, जिनकी गिरफ्तारी के लिए कोर्ट ने स्थायी वारंट जारी किए हैं.
दोषियों को फांसी की सजा के बाद पुलिस कस्टडी में भेजा गया
न्यायाधीश ने इस अपराध को "बेहद जघन्य" करार दिया और दोषियों को फांसी की सजा सुनाते हुए कहा कि इन्हें तब तक लटकाया जाए, जब तक इनकी मृत्यु न हो जाए. तीनों दोषियों की उम्र 75 से 80 साल के बीच है और उनके लिए यह फैसला देर से सही, लेकिन न्याय की प्रक्रिया को पूरा करने वाला है.
चश्मदीदों और पीड़ितों की यादें
मामले के मुख्य गवाह बनवारी लाल ने बताया कि उनके पिता ज्वाला प्रसाद समेत परिवार के चार लोगों की हत्या की गई थी. वो काफ़ी दबाव के बावजूद न्याय की मांग करते रहे. वहीं, दिहुली की निवासी जय देवी ने बताया कि आज भी अपने परिवार के लोगों की हत्या का दर्द उन्हें नहीं भूलता, और यह फैसला उन्हें सुकून देता है.
क्या था इस नरसंहार का कारण?
यह नरसंहार एक बदले की भावना के तहत हुआ था. पुलिस वर्दी में पहुंचे डकैतों ने हथियारों से लैस होकर दलित समाज के लोगों पर हमला किया. यह हमला बदमाशों के गिरोह द्वारा की गई मुखबिरी के कारण हुआ था, जिनके खिलाफ बाद में गवाही दी गई थी. इस अपराध के पीछे की जड़ें और कारण अभी भी बहस का विषय हैं, लेकिन एक बात तो साफ है कि इस जघन्य घटना ने पूरी दुनिया को चौंका दिया था.
आखिरकार इंसाफ मिला, लेकिन देर से
फांसी की सजा मिलने के बाद पीड़ित परिवारों में कुछ राहत की लहर है. यह फैसला न्याय की लंबी प्रक्रिया का परिणाम है, जिसे पाना आसान नहीं था. लेकिन इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि इंसाफ कभी न कभी मिलता जरूर है, चाहे इसमें समय लगे. इस फैसले ने उन लोगों को भी उम्मीद दी है, जो लंबे समय से इंसाफ के लिए इंतजार कर रहे थे. अब दिहुली नरसंहार की यादें एक काले अध्याय के रूप में समाज में जीवित रहेंगी, और ये घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई.


