गहलोत पायलट के बीच दरार का मिल सकता है भाजपा को लाभ

राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच एक ताजा विवाद और सामने आ गया है।

हाइलाइट

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आशुतोष मिश्र

राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच एक ताजा विवाद और सामने आ गया है। एक हफ्ते पूर्व सचिन पायलट ने अनशन रखकर भाजपा शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के जांच की मांग रख डाली। 5 घंटे चले अनशन के बाद सचिन पायलट ने पार्टी के आलाकमान को अपनी भावनाओं से अवगत करा दिया। इस बीच प्रदेश की जनता में यह साफ संदेश गया कि फिलहाल अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

वैसे तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आपसी विवाद काफी पुराना है। दिसंबर 2018 में जब प्रदेश में विधान सभा चुनाव हुए उसके बाद से ही दोनों के बीच खींचतान शुरू हो गई थी। सबसे पहले सचिन पायलट वहां मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ गए थे और उन्होंने अपनी भावनाएं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को बता दी थी। बावजूद इसके सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले अशोक गहलोत ने बाजी मार ली और उन्हें मुख्यमंत्री पद का ताज मिल गया। हालांकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लगभग 4 साल पूर्व प्रदेश की सत्ता दिलाने में सचिन पायलट का बड़ा रोल था। जिस समय कांग्रेस प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में आई उस समय सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बनाया और पार्टी को सफलता दिलाई। इसके बावजूद अंत समय में मुख्यमंत्री की कुर्सी अशोक गहलोत के हाथों में चली गई। केंद्रीय नेतृत्व ने सचिन पायलट को मना कर प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बना दिया।

कुछ दिनों तक तो सब सामान्य चला। लेकिन लगभग 2 वर्ष बाद सचिन पायलट 18 विधायकों के साथ मानेसर आ गए थे। उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व से बारगेनिंग शुरू कर दी थी। उस दौरान यह आशंका जताई जाने लगी थी कि सचिन पायलट पार्टी तोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाएंगे। सचिन पायलट ने अशोक गहलोत पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा था कि मंत्रिमंडल में उनकी नहीं सुनी जाती है। उनके मंत्रियों के विभाग में चलने वाले काम रोक दिए जाते हैं। उस समय भी केंद्रीय नेतृत्व ने डैमेज कंट्रोल करते हुए सचिन पायलट को किसी तरह से मना लिया। लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट के ताज़ा विरोध ने नया बवाल खड़ा कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि दिसंबर में प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। अशोक गहलोत पूरी तरह से चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। कांग्रेस के साथ भारतीय जनता पार्टी भी चुनावी मोड में आ गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा भी करना शुरू कर दिए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस समय प्रदेश में दो रैलियां कर चुके हैं। प्रदेश भाजपा नेतृत्व की यह इच्छा है कि वर्तमान में राजस्थान में जो उठापटक चल रही है उसका पूरा फायदा उठाया जाए। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही दरार का पूरा फायदा उठाया जा सकता है। अगर दोनों नेता एक दिशा में नहीं चल रहे हैं। इसका पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी पिछले 5 सालों से सत्ता से अलग है। प्रदेश की जनता के मिजाज को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में वापसी कर सकती है। इसके लिए कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की आपसी तकरार उनके लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रही है। अगर ऐसा है तो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश स्तर के नेताओं को अभी से एकजुट होकर चुनाव की दिशा में काम करने के लिए जुट जाना होगा। क्योंकि चुनाव के लिए अब अधिक समय नहीं बचा है। दिसम्बर में वह विधान सभा चुनाव होने है।

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18 April 2023, 03:09 PM IST

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