कटरपंथियो को जवाब देने वाले इस्लामिक स्कॉलर की मौत
पाकिस्तानी मूल के इस्लामिक स्कॉलर तारिक फतेह का निधन दुनिया भर के लोगों के लिए दुख भरा समाचार लेकर आया। सोमवार को 73 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई।
हाइलाइट
- कटरपंथियो को जवाब देने वाले इस्लामिक स्कॉलर की मौत
आशुतोष मिश्र
पाकिस्तानी मूल के इस्लामिक स्कॉलर तारिक फतेह का निधन दुनिया भर के लोगों के लिए दुख भरा समाचार लेकर आया। सोमवार को 73 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई। उनकी बेटी ने ट्विटर के माध्यम से यह दुखद समाचार साझा किया। पाकिस्तान के पंजाब में पैदा हुए तारिक फतेह की गिनती इस्लामिक स्कॉलर में होती थी, जो उदारवादी विचारधारा के थे। तारिक पूरे जीवन हमेशा इस्लाम धर्म को प्रगतिशील मार्ग पर ले जाने के लिए तत्पर रहें। हालांकि उनकी इसी विचारधारा की वजह से कट्टरपंथी मुस्लिमों की ओर से उनकी नहीं बनी। इसकी वजह से उन्हें ऐसे लोगों के कोप भाजन का शिकार हमेशा होना पड़ा। लेकिन इसकी उन्होंने कभी भी परवाह नहीं की वह अपने खुले विचारों के लिए हमेशा जाने जाते रहे।
बहुत कम लोगों को पता है कि तारिक फतेह ने अपने कैरियर की शुरुआत पत्रकारिता से की और उन्होंने सबसे पहले पाकिस्तानी चैनल में अपने कामकाज की शुरुआत की। इसके बाद वे विभिन्न मीडिया संस्थानों में रहते हुए अपने काम की छाप छोड़ी। शुरू से ही बिंदास अंदाज में बात करने वाले तारिक को शायद पाकिस्तान रास नहीं आया। इसकी वजह से उन्होंने वतन छोड़ने का फैसला किया। पाकिस्तान छोड़ने के बाद सबसे पहले उन्होंने दुबई को अपना ठिकाना बनाया और वहां पर रहते हुए उन्होंने स्वतंत्र लेखन का काम किया। 1987 में वह दुबई छोड़कर हमेशा के लिए कनाडा में शिफ्ट हो गए। मृत्यु से पहले तक वह अपने परिवार सहित कनाडा में ही निवास कर रहे थे।
कनाडा में रहकर अपने लेखन और स्वतंत्र विचारों को पूरे देश दुनिया में फैलाते रहे उनका मानना था कि मुस्लिम धर्म लोगों को आपसी प्रेम और भाईचारा सिखाता है। लेकिन कुछ कट्टरपंथी लोग इस विचारधारा से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों में पूजा-पाठ रीति रिवाज और अपने भगवन को मानने का एक विशिष्ट तरीका है। इसी को लेकर वह देश दुनिया के कट्टर मुस्लिम धर्मावलंबियों के निशाने पर रहे। इसे लेकर उन्हें कई बार अपमानजनक टिप्पणी का भी सामना करना पड़ा। पाकिस्तान और भारत के टीवी चैनलों में वह लगातार इस्लामिक स्कॉलर के रूप में पेश होते रहे। इस दौरान वह कट्टरपंथी लोगों को दो टूक सुनाने से बाज नहीं आते थे। ऐसे मौके पर कई बार कट्टरपंथी मुस्लिम बहस बीच में ही छोड़कर चले जाया करते थे। ऐसी परिस्थितियों को लेकर उनके काबिलियत और विद्वद्ता को लेकर काफी चर्चा होती रहती थी। उन्होंने अपने जीवन में कई किताबें भी लिखी। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के समर्थन में वह हमेशा विश्व के विभिन्न मंचो से बयान देते रहे। हालांकि पाकिस्तान इसे हमेशा से ही अपना आंतरिक मामला बताकर उनके बयान को खारिज करता रहा, लेकिन भारत हमेशा से ही उनके हर विचारों और बयान का सम्मान करता था।
यही कारण है कि भारतीय समुदाय के बीच में उनकी एक विशिष्ट पहचान बनी हुई थी। यहां के मीडिया चैनल पत्रकार और लेखक भी उन्हें काफी सम्मान के साथ देखते थे। समय-समय पर उन्हें अपने आयोजनों में बुलाते भी रहते थे। भारतीय समुदाय में उनका काफी सम्मान था। उन्हें एक इस्लामिक स्कॉलर के रूप में देखा जाता था। उनके निधन के बाद भारत के सभी वर्गों में शोक की लहर है। समाज के सभी वरिष्ठ और सम्मानित लोगों ने उनके मौत पर शोक संवेदना व्यक्त की है।