आपसी बातचीत के जरिये मणिपुर हिंसा को रोकने की कोशिश

मणिपुर में हालात कुछ दिनों में खराब हो गए. इसके पीछे नागा-कुकी और मेइती  विवाद प्रमुख है. इसके समाधान का रास्ता क्या है,मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आदिवासी समूहों के विरोध प्रदर्शन के दौरान 3 मई को मणिपुर में कई जगहों पर हिंसा भड़क गई।

Sagar Dwivedi
Edited By: Sagar Dwivedi

आशुतोष मिश्र

मणिपुर में हालात कुछ दिनों में खराब हो गए. इसके पीछे नागा-कुकी और मेइती  विवाद प्रमुख है. इसके समाधान का रास्ता क्या है, मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आदिवासी समूहों के विरोध प्रदर्शन के दौरान 3 मई को मणिपुर में कई जगहों पर हिंसा भड़क गई। राज्य में विभिन्न स्थानों पर आदिवासी समूहों द्वारा विरोध हिंसक हो गया, बड़े पैमाने पर आगजनी भी हुई।

भारत के उत्तर पूर्व में सात राज्यों अरूणाचंल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं त्रिपुरा को सेवन सिस्टर्स कहा जाता है वैसे तो सिक्कम राज्य भी पूर्वोत्तर में ही है लेकिन जब सेवन सिस्टर्स का गठन हुआ था तब वह भारत का हिस्सा नहीं था। देश के उत्तर पूर्वी बेल्ट एक ऐसी जगह है जहां हम घूमने जाने का प्लान बनाते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि इन घूमने जाने के प्लान के अलावा हमारी बातों में, हमारी जिक्रों में शामिल नहीं रहता। पूर्वोत्तर प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक फोकस एरिया रहा है। 

कनेक्टिविटी सुधरी है और एक के बाद एक उग्रवादी संगठन हथियार छोड़कर बातचीत करने को तैयार हो गए हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि वो शांति स्थापित करने में लगी है, ताकि विकास का पहिया न रुके। इसी विकास मॉडल के सहारे भाजपा पूर्वोत्तर के एक के बाद एक चुनाव भी जीत रही है। मणिपुर की घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।  करीब 9 हजार लोगों को जान बचाकर कैंप में आना पड़ा। देखते ही गोली मरने के ऑर्डर हैं और केंद्र अद्धसैनिक बलों की टुकड़िया भेज रहा है।

मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आदिवासी समूहों ने  विरोध प्रदर्शन किया . इस दौरान 3 मई को मणिपुर में कई स्थानों पर हिंसा भड़क गई। राज्य के कई स्थानों पर आदिवासी समूहों द्वारा विरोध हिंसक हो गया।  सीएम एन बीरेन सिंह ने कहा है कि हिंसा में जान-माल का नुकसान हुआ है. आठ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया जा रहा है।

पहली बार हिंसा चुराचांदपुर जिले में 27 अप्रैल को हुई थी, जब स्वदेशी जनजातीय नेताओं के मंच (आईटीएलएफ) के नेतृत्व में एक भीड़ ने एक नवनिर्मित जिम-सह-खेल सुविधा को मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन किए जाने से एक दिन पहले जला दिया था। आदिवासी समूह राज्य सरकार द्वारा आरक्षित और संरक्षित वनों और आर्द्रभूमि के प्रस्तावित सर्वेक्षण और तीन अनधिकृत चर्चों के विध्वंस का विरोध कर रहे थे।  5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर बैन लगाकर सुरक्षा बलों द्वारा स्थिति को तेजी से संभाला गया. 3 मई को चीजें नियंत्रण से बाहर हो गईं, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने विरोध करने के लिए चुराचंदपुर जिले के टोरबंग क्षेत्र में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आह्वान किया।

'आदिवासी एकजुटता मार्च' के समर्थन में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन मणिपुर में कई अन्य स्थानों पर हुए. उनमें से कई हिंसक हो गए। आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी, और टेंग्नौपाल जिलों के साथ-साथ गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकिंग, थौबल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिलों में हिंसा भड़क उठी। अधिकारियों के अनुसार, सोशल मीडिया पर प्रसारित उत्तेजक संदेशों से हिंसा को बढ़ावा मिला।

नागा-कुकी और मैतई विवाद प्रमुख रूप से मणिपुर में है. यहाँ प्रमुख रूप से 3 समुदाय हैं-  मेइती  , नागा और कुकी। कुकी और नागा आदिवासी समुदाय हैं। वहीं मैतई आदिवासी नहीं हैं। मेइती और 'आदिवासियों' के बीच मौजूदा संघर्ष पहाड़ी बनाम मैदानी संघर्ष का एक रूप है। मेइती   मणिपुर में बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि आदिवासी समुदायों की आबादी लगभग 40% से भी कम है। नागा और कुकी जनजातियों को जनजारियो की सूची में शामिल किया गया है. अधिकांश मेइती समुदाय के लोगों को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है।

मणिपुर में कई समुदाय रहते हैं, उनमें सबसे बड़ा मेइती समुदाय ही है। राज्य का घाटी वाला इलाका जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10% है, उसमें मेइती रहते हैं। ये मिलाकर राज्य की कुल आबादी के लगभग 65 % हैं। बाकी 90% क्षेत्रफल पहाड़ी इलाका है जो घाटी के चारों ओर फैला है। इन पहाड़ियों में जनजातियां रहती हैं. ये राज्य की कुल आबादी का लगभग 35 % है। एसटी समुदाय में शामिल करने की मांग को लेकर मेइती समाज साल 2012 से आंदोलन कर रहा है। असल में साल 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले तक मेइती को जनजाति माना जाता था।

भारत में मिलने के बाद यह दर्जा छिन गया। हाल ही में हाई कोर्ट में जब एसटी का दर्जा देने का मामला उठा तो दलील दी गई कि  मेइती समुदाय की पैतृक भूमि, परंपराओं, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए एसटी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।इस फैसले के बाद हलर बेकाबू हो गए. इस पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार बातचीत का हर रास्ता अपना रही है. आने वाले दिनों में इसके सुखद परिणाम देखने को मिलेंगे।

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06 May 2023, 06:32 PM IST

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