रोम-रोम में बसने वाले राम...
भजन बहुत पुराना होने के साथ ही प्रचलित भी है। मेरे रोम-रोम में बसने वाले राम मैं तुझसे क्या मांगूं..मैं तुझसे क्या मांगू..? इंसान और भगवान में बस यही फर्क है कि एक मांगने वाला है और दूसरा देने वाला है।
हाइलाइट
- रोम-रोम में बसने वाले राम...
देवेंद्र राघव
भजन बहुत पुराना होने के साथ ही प्रचलित भी है। मेरे रोम-रोम में बसने वाले राम मैं तुझसे क्या मांगूं..मैं तुझसे क्या मांगू..? इंसान और भगवान में बस यही फर्क है कि एक मांगने वाला है और दूसरा देने वाला है। हाल ही में हमारे देश में प्रभु श्री राम की जयंती यानि राम नवमी मनाई गई है। सही मायने में हमारे इस महान देश में प्रभु श्री राम की असीम अनुकंपा है। आज के परिवेश में राम के नाम पर राजनीति भी हो रही है। श्री राम के आदर्श ही ऐसे रहे हैं कि हम भूलकर भी उन्हें नहीं भुला सकते। कहावत है कि हम राम राज्य की दुहाई देते हैं, राम राज्य की कल्पना करते हैं। क्यों आखिर राम राज्य में ऐसा क्या खास था जो हम उसके लिए लालायित हैं।
रामराज्य की छह प्रमुख विशेषताएं हैं। इस काल में सभी सुखी हैं, सभी कर्तव्यपरायण हैं, सभी दीर्घायु हैं, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जा सकता है। रामराज्य की बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, हृष्ट-पुष्ट हैं। सुख या संतुष्टि तन-मन दोनों की होती है। रामराज्य की विधि या धर्म सम्मत मर्यादा की अवधारणा केवल राजा या शासक के कर्तव्यों का विचार नहीं है अपितु एक ऐसी समग्र राज्य व्यवस्था की निर्मिति है जिसमें सामाजिक जीवन का प्रत्येक कोना धर्म के चार चरणों- सत्य, सोच, दया और दान पर अवलंबित होता है। यह एक ऐसी चतुष्पाद व्यवस्था है जो राज्य और समाज के सभी आधारभूत घटकों को सच्ची श्रद्धा से ओत-प्रोत करते हुए सबकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। यह एक ऐसा ईश्वरीय राज्य है जो अकाल मृत्यु या अन्य सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्त होगा। सभी जानते हैं कि श्रीराम के राज्य में कोई अप्रसन्न न था। प्रत्येक व्यक्ति को उसके श्रम और कर्म का उचित फल प्राप्त होता था। सबके साथ न्याय होता था। न्याय और धर्म की तुला पर राजा और रंक, शीर्ष और निम्नतल के आधार पर विशेषाधिकारों का भेद न था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामराज्य में ऐसे जीवन की कल्पना की है, ऐसे सामूहिक जीवन की कल्पना की है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति, नर-नारी अहंकार और दंभ से मुक्त है। सभी परिजनों को आदर देने वाले हैं। सभी में कृतज्ञता का भाव है। छल और कपट से मुक्त जीवन जीने वालों का समाज है। रामराज्य की अवधारणा ऐसे सुशासन की कल्पना है, जिसमें सबको योग्य बनने और योग्यता के अनुसार सब प्राप्त करने का अधिकार है। इसमें सर्वत्र पारदर्शिता है। किंतु समाज के अंतिम व्यक्ति के अभ्युत्थान की चिंता प्रमुख है। अब रामराज्य की इस कल्पना में कुछ चीजें महत्वपूर्ण होकर उभरती हैं। रामराज्य में शासन कैसा होगा? उसकी चारित्रिक विशिष्टताएं क्या होंगी? सबको न्याय प्राप्त हो सके, इसकी प्रणाली क्या होगी? समाज में सबकी समानता किस प्रकार से निर्मित होगी? सामाजिक जीवन के अंतिम स्थान पर खड़े व्यक्ति की आवाज, उसकी इच्छा, आकांक्षा किस प्रकार अभिव्यक्त होगी और सर्वोच्च तक सुनी जाएगी। महात्मा गांधी इस रामराज्य के स्वप्न को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, ‘रामायण का प्राचीन आदर्श रामराज्य नि:संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है। मेरे सपनों का रामराज्य राजा और निर्धन दोनों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करता है। मैं जिस रामराज्य का वर्णन करता हूं, वह नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है। वस्तुत: रामराज्य का यह स्वप्न ज्ञात इतिहास में नहीं है। हर कालखंड में संपूर्ण राजा एवं प्रजा का स्वप्न रहा है। इस स्वप्न को चरितार्थ करता हुआ जो महान कालखंड भारतीय इतिहास में सदा सर्वदा स्पृहा का विषय रहा है, वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्य है।’ दो अगस्त, 1934 को अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित लेख में गांधी जी ने कहा था कि, ‘मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करती है।’
आज दुनिया के सामने विविध प्रकार के संकट हैं। दुनिया एक-दूसरे की धरती और धन कब्जाने के लिए प्रयासरत है। कोई कह सकता है कि उसमें श्रीराम क्या करें? श्रीराम ने तो आदर्श स्थापित किए। श्रीराम तो वह हैं जो उत्तर से दक्षिण तक इस देश को जोड़ते हैं। जो अयोध्या से लेकर धनुषकोडी तक जन-जन को जोड़ते हैं। वे व्यक्ति के श्रेष्ठ आचरण को सामने रखकर जोड़ते हैं। वे स्वयं अनेकानेक कठिनाइयां धारण करते हैं, लेकिन देवी अहिल्या को मुक्त करते हैं। वे खुद सीता वियोग में दुखी हैं, करुण क्रंदन करते हैं, लेकिन माता शबरी के दुख को दूर कर उन्हें शांति देते हैं। उन्हें वैसा ही सम्मान देते हैं, जैसा वे कौशल्या, सुमित्रा या कैकयी को देते हैं। ये श्रीराम वह हैं, जिन्हें अयोध्या की प्रजा और सेना नदी के किनारे तक छोड़ने आई है। उनसे भी श्रीराम अनुनय करते हैं। ये श्रीराम तो वह हैं जो अपने ही राज्य के केवट से अनुनय करते हैं कि नाव पर बैठाओ और उस पार ले जाओ। वे समाज के अंतिम सिरे पर खड़े व्यक्ति को अपने हृदय से लगा लेते हैं। वास्तविकता यह है कि यदि हम सभी प्रभु श्री राम के चरित्र को अपने जीवन में उतारें तो वही राम राज्य है।