Maharashtra Assembly Elections: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रचार जोरों पर है, जहां महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है. 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को नतीजे घोषित होने से पहले सभी राजनीतिक दल अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं.
हालांकि, कांग्रेस के लिए यह चुनाव कई चुनौतियों से भरा हुआ है. पार्टी को कई मोर्चों पर कमजोर माना जा रहा है, जिससे महायुति के खिलाफ उसकी राह मुश्किल होती दिख रही है. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस किन-किन मुश्किलों का सामना कर रही है और उसकी रणनीति में कमियां कहां हैं?
दलित समुदाय में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती दिख रही है. सुशील कुमार शिंदे के रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस के पास कोई मजबूत दलित नेता नहीं है. महाविकास अघाड़ी सरकार में मंत्री रहे नितीन राऊत का प्रभाव पूरे प्रदेश में नहीं है, जिससे इस समुदाय का समर्थन सुनिश्चित करना चुनौती बन गया है.
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का राजनीतिक प्रभाव महत्वपूर्ण है, लेकिन कांग्रेस के पास एक प्रभावी मराठा नेता की कमी साफ नजर आ रही है. विलासराव देशमुख के निधन और अशोक चव्हाण के बीजेपी में जाने के बाद पार्टी के पास प्रदेशव्यापी मराठा नेता नहीं बचा है. पृथ्वीराज चव्हाण और बालासाहेब थोराट जैसे नेता हैं, लेकिन उनका प्रभाव उनके क्षेत्र तक सीमित है.
शिंदे सरकार की 'लाडली बहन योजना', जिसके तहत महिलाओं को 1500 रुपये महीना दिया जा रहा है, कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. महाविकास अघाड़ी ने वादा किया है कि सरकार बनने पर महिलाओं को 3000 रुपये प्रति माह दिया जाएगा, लेकिन मौजूदा योजना का सीधा लाभ जनता को मिल रहा है, जिससे महायुति को बढ़त मिल सकती है.
महायुति के मुकाबले कांग्रेस का प्रचार काफी कमजोर नजर आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों के मुकाबले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रैलियां कम हो रही हैं. इसका सीधा असर कांग्रेस की पहुंच पर पड़ सकता है.
लोकसभा चुनाव की तुलना में कांग्रेस के सहयोगी दलों से ओबीसी और सवर्ण जातियों का समर्थन कम होता दिख रहा है. गठबंधन की रणनीति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, जिससे कांग्रेस की स्थिति कमजोर पड़ रही है. First Updated : Friday, 15 November 2024