Lok Sabha Election 2024: नरेंद्र मोदी जो कि भारत देश के प्रधानमंत्री हैं, वो अपने पद की गरिमा भूल गए हैं. ये हम नहीं कह रहे बल्कि इन दिनों अपोजिशन का हर नेता बोल रहा है. पीएम मोदी ने अपनी चुनावी रैली के दौरान देश के बराबर के नागरिक मुस्लिम समुदाय को लेकर एक टिप्पणी की, जिसके बाद से हर तरफ उनकी आलोचना हो रही है. कुछ लोगों का कहना है कि पीएम का इस तरह से किसी समुदाय पर टिप्पणी करना उनकी लोकसभा चुनाव 2024 में होने वाली हार को दर्शाता है.
रविवार यानी 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में एक सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने माइनॉरिटी को लेकर कहा कि ''जब उनकी (कांग्रेस की) सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की जायदाद पर पहला हक मुसलमानों का है. इसका मतलब ये है कि ये लोग (कांग्रेस पार्टी के लोग) संपत्ति इकट्ठी करने के बाद किसे बांटेंगे? ये उन्हें बांटेंगे जिनके ज्यादा बच्चे हैं. पीएम मोदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि ये लोग घुसपैठियों को आपकी संपत्ति बांटेंगे. क्या आपको ये मंजूर है?
2006 में जब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, उस वक्त उन्होंने एक बयान दिया था,जिसका उस समय भी काफी विरोध हुआ. मनमोहन सिंह ने कहा कि ''समाज के सभी पिछड़े और अल्पसंख्यकों, खासकर देश के मुसलमानों को भी जो विकास होगा उसमें बराबर का हिस्सा मिले, इसके लिए उनको सशक्त करने की बहुत जरूरत है. पीएम ने आगे कहा कि ''देश के संसाधनों पर पहला दावा उन्हीं का है.'' इस बयान में पीएम ने ये जरूर कहा कि पहला दावा मुस्लमानों का है, लेकिन साथ ही उन्होंने बराबर की हिस्सेदारी की भी बात की थी.
जैसा की सब जानते हैं कि धार्मिक होना गलत नहीं है, लेकिन यहां सवाल ये उठ रहा है कि एक प्रधानमंत्री का इस तरह से देश में रहने वाले एक समुदाय को घुसपैठिया कहना कितना सही है? कुछ लोगों ने पीएम की इस स्पीच को हेट स्पीच भी कहा. पीएम को अक्सर धार्मिक मामलों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते देखा गया है. पिछले दिनों 22 जनवरी को हुए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कर्ता धर्ता पीएम को कहा गया, जिस तरह से उन्होंने इसमें हिस्सा लिया उसपर भी काफी सवाल खड़े हुए थे.
भारतीय राजनीति में नेहरू को अक्सर याद किया जाता है, कुछ लोग अच्छे मामलों के लिए करते हैं तो कुछ उनकी खुले तौर पर आलोचना करते हैं. लेकिन धार्मिक मामलों में जवाहर लाल नेहरू के अपने अलग विचार थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 73 साल पहले भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद गुजरात के सोमनाथ मंदिर में ऐसे ही एक प्रोग्राम में शामिल हुए थे. राम मंदिर की तरह ही आजादी के बाद इस मंदिर को फिर से बनवाया गया था. यहां पर पूजा शुरू हुई. रिपोर्ट्स कहती हैं कि उस दौरान जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति इस प्रोग्राम में शामिल हों.
1951 की बात है, जब नेहरू राजेंद्र प्रसाद को लिखा कि ''सोमनाथ मंदिर को लेकर मैं भी बहुत परेशान हूं, लेकिन मुझे एक बात का डर था कि लोग हमसे पूछेंगे कि एक धर्मनिरपेक्ष सरकार ऐसे धार्मिक प्रोग्राम में कैसे हिस्सा ले सकती है. उन्होंने कहा कि ''इसे धार्मिक पुनरुत्थान के तौर पर पेश किया जा रहा है.''
पीएम मोदी ने जिस तरह से सीधे तौर पर मुसलमानों पर अटैक किया, इसको भड़काऊ कहा गया. इसपर राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि ''PM ने जो ये कहा है इससे साफ तौर पर ये नजर आ रहा है कि पहले चरण का मतदान उनके पक्ष में नहीं हुआ है. उन्होंने ये भी सवाल उठाया कि ये किस तरह की राजनीति हो रही है, एक तरफ राम के नाम पर वोट मांगे जा रहे तो दूसरी तरफ नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है. सिब्बल ने BJP के नारे पर सवाल उठाते हुए कहा कि ''ये कैसा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है?''
जो लोग पीएम मोदी के भाषण की आलोचना कर रहे हैं, उनका बस ये कहना है कि एक प्रधानमंत्री देश के सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लेकर चलता है. अगर वो ही इस तरह से खुले तौर पर एक समुदाय को बाहरी कहने लगें तो फिर हिंदुत्व को मानने वाले लोग कैसे दूसरे समुदायों को अपना मानेंगे. इससे देश में नफरत का माहौल बनने लगेगा. First Updated : Tuesday, 23 April 2024