Bjp Menifesto: लोकसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच हलचल तेज हो गई है. इस बीच बीजेपी ने रविवार, 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य वरिष्ठों की मौजूदगी में आम चुनाव 2024 के लिए अपना 'संकल्प पत्र' जारी किया है. इस दौरान पार्टी ने अपने इस घोषणा पत्र में विकसित भारत के चार मजबूत स्तंभों यूवा, महिला, गरीब और किसान को सशक्त बनाने की बात कही है. ऐसे में बीजपी की तरफ से इस बार मेनिफेस्टो में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) का मुद्दा शामिल नहीं किया गया. जिसके बाद से ही पार्टी पर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं.
बता दें, कि पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में प्रमुखता से सीएए-एनआरसी को चुनावी मुद्दा भी बनाया था. वहीं सरकार बनाने के बाद 2 दिसंबर को देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी झारखंड में एक बयान में कहा था कि मैनापकों भरोसा दिलाता हूं कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा और सभी घुसपैठियों की पहचान करके उनको 2024 के चुनाव से पहले देश से बाहर भेज दिया जाएगा. लेकिन इस बार के आम चुनाव में एनआरसी की चर्चा तक सुनने को नहीं मिली.
इस बार लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की तरफ से जारी अपमने घोषणा पत्र में एनआरसी का मुद्दा ना शामिल करने के पीछे राजनीतिक और चुनावी वजह है. बीजेपी ने 2019 के संकल्प पत्र में बिना दस्तावेज के देश में अवैध तरीके से रह रहे लोगों से निपटने के लिए NRC लागू करने एलान किया था. 2019 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने कहा था कि देश में अवैध तरीके से बस जाने की वजह से कुछ क्षेत्रों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान में भारी बदलाव आया है, जिसके कारण स्थानीय लोगों की आजीविका और रोजगार पर असर पड़ा है.
बता दें, कि एनआरसी को सीएए से जोड़कर देखा जा रहा है जिसकी वजह से बीजेपी को लोकसभा चुनाव में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. एक आम राय है कि सीएए नागरिकता देने वाला कानून है जबकि एनआरसी से नागरिकता छीन जाएगी. ऐसे में बीजेपी के विरोधी दलों की तरफ से भी वोटरों के बीच में ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि सीएए और एनआरसी नागरिकता छीनने के लिए ये कानून लाया जा रहा है.
इस दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृण मूल कांग्रेस ( टीएमसी) के नेता भी मतदाताओं के बीच यह संदेश देने के काम कर रही है कि सीएए के बाद केंद्र सरकार एनआरसी लाएगी जिससे हिंदुओं और मुस्लिमों की नागरिकता छीन जाएगी. ऐसे में बीजेपी को डर था कि एनआरसी को लेकर विरोधियों की तरफ से फैलाए जा रहे भ्रम से मुस्लिम वोटरों का मत टीएमसी के पक्ष में हो जाएगा और बीजेपी को चुनाव में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
वहीं बीजेपी को एक डर ये भी था कि एनआरसी के नाम पर देशभर में विरोधी दलों को बीजेपी के खिलाफ धरना करने के लिए फ्री में सपोर्टर मिल जाते, जिनका चुनावी असर भी होगा. साथ ही बीजेपी को बंगाल और असम के हिंदू वोटरों की नाराजगी का भी डर था. क्योंकि विरोधियों ने एक धारणा बना दी थी कि एनआरसी में बहुत सारे हिंदुओं की भी नागरिकता चली जाएगी. हिंदू जो उन देशों से भारत में भागकर आए और देश में बसे थे उनमे से ज्यादातर अपनी नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज साथ नहीं ला पाए थे.
इसके पीछे बीजेपी के विरोधी असम का उदाहरण दे रहे थे जहां लाखों हिंदुओं को एनआरसी से बाहर कर दिया गया था. बता दें कि असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई कवायद में राज्य के 3.29 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख से अधिक आवेदकों को अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर कर दिया गया था. यही कारण है कि विरोधियों की रणनीति को साधन और सीएए-एनआरसी को लेकर भ्रम ना पैदा हो बीजेपी ने एनआरसी को इस बार अपने घोषणा पत्र से बाहर रखा. First Updated : Monday, 15 April 2024