AzadiKaAmritMahotsav: देशभक्ति का जज़्बा जगाती 5 फिल्में जिसे हर भारतीय को देखना चाहिए
देश इस वक़्त आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देशवासी भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इस महोत्सव को मनाने का तरीका सबके लिए अलग-अलग हो सकता है, लेकिन एक बात जो सबको साथ जोड़ रही है वह है लोगों का देश के प्रति प्रेम। इस देशप्रेम को हर कोई अपने-अपने तरीके से दर्शाता है।
देश इस वक़्त आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देशवासी भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इस महोत्सव को मनाने का तरीका सबके लिए अलग-अलग हो सकता है, लेकिन एक बात जो सबको साथ जोड़ रही है वह है लोगों का देश के प्रति प्रेम। इस देशप्रेम को हर कोई अपने-अपने तरीके से दर्शाता है। बॉर्डर में तैनात फ़ौजी देश की रक्षा कर अपना देशप्रेम जताता है, तो ऑफिस में काम करता शख़्स ईमानदारी से अपना काम पूरा कर देश की तरक्की में अपना योगदान देता है। रेलवे में काम करते कर्मचारी से लेकर रेलवे स्टेशन के बाहर सवारी ढोते रिक्शा चालकों तक, हर कोई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से देश के सतत विकास में अपना योगदान दे रहा है।
कलाकारों का भी अपना देशप्रेम जताने का अलग अंदाज़ होता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई भारतीय कवियों ने अपना देशप्रेम अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है। इसी तरह कई रचनाकारों ने फिल्मों के जरिये अपना देशप्रेम जताया है। ऐसी कई फिल्में बनी हैं जिन्हें देखकर हर भारतीय के अंदर देशभक्ति का जज़्बा जाग उठता है। आज हम आपको ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं।
1. स्वदेस (2004)
आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित इस फिल्म में शाहरुख़ खान मुख्य किरदार में नजर आये थे। साल 2004 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को दर्शकों द्वारा बेहद पसंद किया गया था। फिल्म में ए. आर. रहमान ने संगीत दिया है, जो वाकई बेहद कमाल का है। फिल्म की कहानी एक NRI भारतीय के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अमेरिका में एक बड़ी नौकरी छोड़कर भारत में अपने गाँव के विकास में योगदान देने का फैसला करता है। यह फिल्म एक आम नागरिक के देशप्रेम की अनूठी मिसाल कायम करती है। आज हमारे देश के सबसे होनहार दिमाग विदेशों में नौकरी करना पसंद करते हैं, ऐसे में यह फिल्म उन्हें वापस भारत आने और अपने देश के लिए काम करने को प्रोत्साहित करती है। यदि आपने अब तक यह फिल्म नहीं देखी है तो आपके लिए इस स्वतंत्रता दिवस अपने प्रियजनों के साथ वक़्त बिताने का यह एक अच्छा विकल्प हो सकती है।
2. रंग दे बसंती (2006)
हमारी इस फेहरिस्त में शामिल दूसरी फिल्म है साल 2006 में आई राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित 'रंग दे बसंती।' इस फिल्म में आमिर खान, आर. माधवन, सिद्धार्थ, शरमन जोशी, कुणाल कपूर, अतुल कुलकर्णी, सोहा अली खान के अलावा ब्रिटिश अभिनेत्री एलिस पैटन मुख्य किरदार में नजर आईं थी। फिल्म की कहानी के केंद्र में कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राओं का एक ग्रुप है। जो विदेश से आई एक फिल्म मेकर (एलिस पैटन) के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, बिस्मिल आदि की जीवनी से जुड़ते हैं और मौजूदा परिवेश में उनकी कहानी को दोहराते हैं। इस फिल्म में भी संगीतकार ए. आर. रहमान ने अपना जादू बिखेरा है, जो दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था।
3. चक दे इण्डिया (2007)
यह फिल्म खेल की पृष्ठभूमि पर आधारित है, या आप कह सकते हैं कि यह खिलाड़ियों के देशप्रेम को दर्शाती है। शिमित अमीन द्वारा निर्देशित और जयदीप साहनी द्वारा लिखी गई इस फिल्म में शाहरुख खान मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म में शाहरुख भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच बने नजर आते हैं, जिनके ऊपर टीम को वर्ल्ड कप जिताने का जुनून सवार होता है। "मुझे स्टेट्स के नाम न सुनाई देते हैं न दिखाई देते हैं, सिर्फ एक मुल्क का नाम सुनाई देता है... I-N-D-I-A" फिल्म में शाहरुख़ का यह डायलॉग दर्शकों द्वारा बेहद पसंद किया गया था।
4. शेरशाह (2021)
यह फिल्म साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध के हीरो विक्रम बत्रा की जीवनी पर आधारित है। फिल्म में विक्रम बत्रा का किरदार अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा द्वारा निभाया गया था। विक्रम बत्रा देश के हर युवा के लिए एक आदर्श हैं, जिन्होनें देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। अपने अदम्य साहस के लिए बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाज़ा गया है। इस फिल्म का निर्देशन विष्णुवर्धन द्वारा किया गया है। साथ ही फिल्म में सिद्धार्थ के साथ अभिनेत्री कियारा आडवाणी भी मुख्य भूमिका में हैं।
5. मेजर (2022)
यह एक बायोग्राफी फिल्म है, जो साल 2008 मुंबई हमलों में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बड़े परदे पर उतारती है। फिल्म का निर्देशन शशि किरण टिक्का द्वारा किया गया है। फिल्म में अदीवी सेष मुख्य किरदार में नजर आये हैं, साथ ही फिल्म की कहानी भी अदीवी सेष द्वारा लिखी गई है। 26 नवंबर 2008 की काली रात को जब हथियारबंद आतंकियों द्वारा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हमला कर होटल ताज पर कब्जा किया गया था तब मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने न सिर्फ 14 बंधकों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाया बल्कि 4 आतंकियों से अकेले ही लड़ पड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। संदीप उन्नीकृष्णन की बदौलत NSG की टीम अपने इस ऑपरेशन में सफल रही और सभी आतंकियों को मार गिराया गया। मरणोपरांत मेजर संदीप को शांति के समय दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र द्वारा नवाज़ा गया।