हताशा से उबरने के बाद दिखेगी नई किरण

जीवन का मूल क्या होता है यह उन लोगों को देखकर महसूस होता है, जो किसी असाध्य बीमारी से जूझते हुए वर्षों से अस्पताल में पड़े हुए हैं या ऐसे लोग जो असाध्य बीमारियों से ग्रसित हैं और जीने की प्रबल इच्छा उनके अंदर है।

Janbhawana Times
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आशुतोष मिश्र

जीवन का मोल क्या होता है यह उन लोगों को देखकर महसूस होता है, जो किसी असाध्य बीमारी से जूझते हुए वर्षों से अस्पताल में पड़े हुए हैं या ऐसे लोग जो असाध्य बीमारियों से ग्रसित हैं और जीने की प्रबल इच्छा उनके अंदर है। ऐसे लोगों के लिए वह आखरी संदेश भी तमाम खुशियां लेकर आता है जो उनके जीवन की प्रत्याशा को बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन पूरी दुनिया में ऐसा नहीं है भारतवर्ष की युवा पीढ़ी हताशा और निराशा से इतनी भर चुकी है कि वह अपनी जीवन लीला समाप्त करने में 1मिनट का भी समय नहीं लगाती।

यह युवा वर्ग के लिए काफी चिंतनीय विषय है। रविवार को ही ऐसी ही एक घटना बनारस में घटित हुई, भोजपुरी फिल्मों के कलाकार आकांक्षा दुबे होटल में मृत पाई गई। शुरुआती जांच में पता चला कि उन्होंने कथित तौर पर आत्महत्या की है। आश्चर्य की बात यह है कि यह अभिनेत्री पिछले 4सालों से भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही थी और केवल 25साल की उम्र में दुनिया छोड़ कर चली गई। आकांक्षा दुबे की तरह ऐसे दर्जनों उदाहरण है जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के नवोदित कलाकारों को समय से पहले हमसे छीन लिया। इन घटनाओं में एक समानता इस बात को लेकर है कि पिछले 5वर्षों में करीब आधा दर्जन युवा कलाकारों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।

फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत और वैशाली ठाकुर जैसे कई नाम है जो युवावस्था में ही संसार को छोड़कर चले गए। पते की बात है कि इन सभी कलाकारों की उम्र 25वर्ष से 35वर्ष के बीच रही। युवा कलाकारों में सफलता के बावजूद आत्महत्या करने के पीछे आखिर मुख्य वजह क्या रही। विश्लेषण करने से पता चलता है कि सभी आत्महत्याओं के पीछे लगभग एक जैसे ही कारण रहे हैं। इनमें प्रमुख लक्षण हताशा सब पर हावी रहा। फिल्म इंडस्ट्री में काम करने सफलता मिलने के बावजूद आखिर ऐसे लोगों ने आत्महत्या क्यों की? जाहिर सी बात है कि ऐसी घटनाओं के बाद लोग सोचने पर मजबूर हो रहे हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने पर दिखता है कि ऐसे लोग जल्द सफलता पाने और किसी भी उपलब्धि के लिए जरा सा भी इंतजार नहीं कर सके। ऐसा नहीं है कि सभी कलाकारों ने  सफलता न पाने की वजह से आत्महत्या की, बल्कि उनके मन मुताबिक में चीजें न होने के कारण भी वह ऐसा निर्णय लेने के लिए बाध्य हो गए। लेकिन इन कलाकारों ने आत्महत्या करने से पहले यह नहीं सोचा कि उनके इस कदम से लाखों प्रशंसकों और मां-बाप का क्या होगा।

इन कलाकारों के मां बाप बड़े अरमानों से अपने बच्चों को पाला और अच्छी तालीम दिला कर उन्हें सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बावजूद इसके युवा कलाकारों ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने में थोड़ा सा समय नहीं लगाया। यह जीवन के प्रति निराशा और हताशा को तो दर्शाता है। ऐसी घटनाओं के पीछे जाने पर हमें यह भी पता चलता है कि जल्दबाजी में उठाए गए कदम का परिणाम अच्छा नहीं होता है। जीवन में धैर्य का जितना महत्व है उतना किसी और चीज का नहीं। आज हमारी युवा पीढ़ी सांसारिक सुखों और चकाचौंध के बीच इतनी खो गई है कि उसे अपने भीतर झांकने का मौका नहीं मिलता। जबकि हमारी सांस्कृतिक विरासत धैर्य, प्रेम और करुणा से मिलकर बना है। ऐसे में आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने के लिए हमें सैकड़ों बार सोचने के लिए सोचने पर मजबूर करता है। लेकिन हमारी युवा पीढ़ी आजकल भागदौड़ की जीवन में इतनी व्यस्त हो गई है। तो वह मन और ध्यान पर जरा ध्यान नहीं दे रही है। इसका नतीजा हताशा और निराशा उसके जीवन में घर पर गए हैं। हताशा जब अपने चरम पर पहुंच जाती है तो वह आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक विरासत की ओर एक बार फिर झांकने की जरूरत है। इसमें जीवन को व्यवस्थित करने के लिए योग ध्यान और सत्संगति बहुत आवश्यक है। ऐसा करने पर मनुष्य के जीवन में नकारात्मक विचार आने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं।

सोशल मीडिया भी आत्महत्या के कारणों के लिए प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है। आज युवा वर्ग मां-बाप परिवार समाज की बजाय अपना अधिकांश समय मोबाइल फोन और सोशल मीडिया पर मैसेज कर समय बिता रहा है। ऐसे माध्यमों से आने वाले नकारात्मक विचार उस पर कब हावी हो जाते हैं, युवाओं को पता ही नहीं चल पाता है। नतीजा यह होता है कि वह अपनी जीवन लीला समाप्त करने से पहले जरा सा भी सोचतें। लेकिन ऐसी घटनाओं से मां-बाप और युवाओं को सबक लेने की जरूरत है। जिसमें युवा वर्ग अपने ऊपर नकारात्मक विचारों के अलावा हताशा निराशा जैसी चीजों को हावी न होने दें अगर ऐसा जीवन में कोई विचार आता भी है तो वह अपने माता-पिता, नजदीकी मित्र और ईश्वर पर भरोसा कर अपने विचार बदल सकते है।

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27 March 2023, 03:29 PM IST

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