लड़के से लड़की बना ऐश्वर्या राय का डिजाइनर, सुनाई जेंडर चेंज कराने की दास्तां
चार साल पहले एक जेंडर चेंज से जुड़ी खबर ने लोगों को चौंका दिया था. यह खबर किसी सामान्य व्यक्ति के बारे में नहीं थी, बल्कि एक प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनर से जुड़ी थी, जिन्होंने ऐश्वर्या राय को कई बार शानदार कपड़ों में सजाया था. इस जेंडर चेंज का सफर उनके लिए बिल्कुल भी सरल नहीं था.

आदमी के शरीर में जन्म लेकर 40 साल तक उसी शरीर में जीने के बाद यह अहसास करना कि यह शरीर आपके लिए सही नहीं है, यह एक बहुत ही अजीब और कठिन अनुभव हो सकता है. कुछ ऐसा ही अनुभव था फैशन डिजाइनर स्वप्निल शिंदे का. स्वप्निल एक पुरुष के रूप में पैदा हुए थे, लेकिन उनके अंदर हमेशा एक महिला की पहचान थी. इस पहचान को अपनाने और उसे वास्तविकता में बदलने का फैसला उन्होंने 40 साल की उम्र में लिया. स्वप्निल अब सायशा शिंदे के नाम से जानी जाती हैं और सिनेमा जगत में उनका नाम बहुत ही प्रसिद्ध है. उन्होंने अपनी पहचान के साथ एक नई यात्रा शुरू की और यह सब करना उनके लिए आसान नहीं था.
पुरुष से महिला बनने का रास्ता
सायशा के लिए बदलाव की यह यात्रा बहुत लंबी और चुनौतीपूर्ण रही. उन्होंने अपने ट्रांसवुमन बनने की प्रक्रिया के बारे में खुलकर बात की है. वह बताती हैं कि कैसे उन्होंने एक पुरुष से महिला बनने का रास्ता अपनाया. उनके इस बदलाव में उन्हें न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक संघर्षों का भी सामना करना पड़ा. एक समय था जब वह सिर्फ ऐश्वर्या राय के डिजाइनर के रूप में जानी जाती थीं, लेकिन उनके इस बदलाव के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया.
ऐश्वर्या राय ने सायशा के बदलाव का पूरी तरह से समर्थन किया था. सायशा ने एक फिटिंग सेशन के दौरान ऐश्वर्या के मैनेजर से यह बात पहले ही कह दी थी कि अब वह स्वप्निल नहीं, बल्कि सायशा बन गई हैं. इसके बाद, ऐश्वर्या ने न केवल उनका नाम सही से पुकारा, बल्कि अपनी बेटी आराध्या को भी उन्हें सायशा के नाम से परिचित कराया.
खुद की पहचान के अनुरूप ढालने के लिए 20 साल बीते
2021 में सायशा ने सोशल मीडिया के जरिए खुद को ट्रांसवुमन के तौर पर दुनिया के सामने पेश किया. उन्होंने अपने बदलाव के बारे में पोस्ट करते हुए यह भी बताया कि कैसे 15 साल की उम्र में उन्हें अपनी असल पहचान का एहसास हुआ था. इसके बाद उन्होंने अपना जीवन खुद की पहचान के अनुरूप ढालने के लिए 20 साल बिताए.
स्मरणीय है कि सायशा का परिवार भी उनके इस बदलाव को स्वीकार करने में थोड़ी कठिनाई से गुजर रहा था, लेकिन समय के साथ परिवार ने उन्हें पूरी तरह से अपनाया. उनके पिता ने तुरंत ही इसे स्वीकार किया, जबकि उनकी मां को थोड़ा समय लगा. सायशा का सफर न केवल व्यक्तिगत बलिदान का है, बल्कि एक साहसिक कदम भी है, जिससे वह न केवल अपनी पहचान बना पाई हैं बल्कि समाज में बदलाव और समानता की दिशा में भी प्रेरणा बन रही हैं.