Explainer: फैंस के चेहरे पर आज भी मुस्कान ला देती हैं फारुख शेख की यादगार फिल्में
Explainer: फारुख शेख का निधन 28 दिसंबर 2013 को हुआ था. इनकी अस्सी के दौर में ऐसी कई फिल्में हैं जिन्हें आज भी देखने के बाद लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. आइए जानें इनकी रोमांटिक कॉमेडी फिल्मों के बारे में जिन्हें आज भी दर्शकों ने खूब किया है.
हाइलाइट
- फारुख शेख की फिल्म ''कथा'' साल 1983 में आई थी.
- फारुख शेख का निधन 28 दिसंबर 2013 को हुआ था.
Explainer: अभिनेता दुबई में थे जब शुक्रवार की देर रात को उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिससे उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन इलाज के दौरान अभिनेता का निधन हो गया. लेकिन फारुख शेख की आज भी लोगों को फिल्में देखनी काफी पसंद हैं. एक्टर का निधन 28 दिसंबर साल 2013 में हुआ था. उस समय उनकी उम्र 65 वर्ष की थी.
एक्टर ने फिल्मों के लिए रात-दिन मेहनत की थी, उनकी आखिरी फिल्म क्लब 60 थी और इससे पहले वह ये जवानी है दीवानी में रणबीर कपूर के पिता की भूमिका निभाते हुए नजर आए थे. उन्होंने लोकप्रिय ज़ी टीवी शो जीना इसी का नाम है की भी मेजबानी की जिसमें उन्होंने कई बॉलीबवुड हस्तियों का साक्षात्कार लिया है. इसके साथ ही 25 मार्च 1948 को जन्मे शेख ने थिएटर फिल्म और टीवी में भी जबरदस्त योगदान दिया.
चश्मे बद्दूर
चश्मे बद्दूर फिल्म फारुख शेख 1981 में रिलीज की थी जिसके बाद फैंस ने भी उन्हें काफी सपोर्ट किया था. 1981 में आई सई परांजपे निर्देशत चश्मे-बद्दूर रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है, जिसमें फारुख और दीप्ति नवल ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फिल्म में कहानी तीन दोस्तों की है. जिन्हें एक ही लड़की से प्यार हो जाता है और फइर कैसे वो एक –दूसरे का पत्ता काटने की कोशिश करते हैं इस फिल्म में दोस्तों के किरदार राकेश बेदी और रवि बसवानी ने निभाए थे.
दूसरी फिल्म "कथा"
फारुख शेख की फिल्म ''कथा'' साल 1983 में आई थी. इस फिल्म का निर्देशन भी सई परांजपे ने ही किया था. इस रोमांटिक कॉमेडी में फारुख शेख दाप्ति नवल के साथ नसीरुद्दीन शाह भी मुख्य भूमिका में थे. इसने बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड जीता था. फिल्म में मुंबई की एक चाल में रहने वाले लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी दिखाई गई थी.
तीसरी फिल्म "किसी से ना कहना"
फारुख शेख की तीसरी फिल्म "किसी से ना कहना" 1983 में रिलीज थी. इस कॉमेडी फिल्म का निर्देशन भी ऋषिकेश मुखर्जी ने किया था. एक बार फिर फारुख शेख और दीप्ति नवल क लीड रोल्स निभाये, वहीं उत्पल दत्त भी फिल्म का हिस्सा थे इसकी कहानी के केंद्र में उत्पल दत्त का किरदार है जो अंग्रेजी को तमाम बुराइयों की जड़ मानता है और तय करता है कि अपने बेटे की शादी ऐसी लड़की से करेगा, जो अंग्रेजी नहीं बोलती हो.