Heeramandi: पाकिस्तानी 'हीरामंडी' पर बनी है 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार', पढ़िए पूरी कहानी
Heeramandi: लगभग चौदह साल पहले मोईन बेग ने निर्देशक संजय लीला भंसाली के सामने लाहौर की हीरा मंडी की तवायफों पर केंद्रित सीरीज हीरामंडी बनाने का प्रस्ताव रखा था.
Heeramandi: संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों के लिए अक्सर चर्चा में रहते हैं, इसके पीछे की वजह है उनकी फिल्मों की कहानी. संजय लीला भंसाली अब एक नई फिल्म लेकर आ रहे हैं. इसी के साथ एक बार फिर से उनकी फिल्म को लेकर चर्चा होने लगी है. इस बार भी संजय लीला भंसाली ने पाकिस्तान की हीरामंडी पर फिलम बनाई हैं. जिसका नाम है हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार. बहुत लोगों के मन में हीरामंडी को लेकर सवाल आ रहे होंगे, आज आपको इसके इतिहास के बारे में बताएंगे.
हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार
संजय लीला भंसाली ने हाल ही में हीरामंडी का फर्स्ट लुक जारी किया है, जिसमें मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, संजीदा शेख और शर्मिन सहगल प्रमुख भूमिकाओं में हैं. यह आठ-एपिसोड की सीरीज है जो आजादी से पहले भारत के दौरान लाहौर के हीरा मंडी के रेड-लाइट जिले में वेश्याओं की असल जीवन की कहानी पर बनी है, जो अभी भी वहां पर मौजूद है.
हीरामंडी के पीछे की असली कहानी
हीरामंडी, जो मूल रूप से एक अनाज मंडी थी, इसका नाम मुगल काल में लाहौर के प्रधानमंत्री हीरा सिंह के नाम पर रखा गया था. मुगल काल के दौरान, यह एक सांस्कृतिक केंद्र में बदल गया जहां अलग-अलग जगहों से जैसे- अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप से वेश्याएं आया करती थी. जिसके बाद इस क्षेत्र का जो असल सांस्कृतिक महत्व था वो कहीं खो सा गया. इसमें इतना बदलाव आया कि ये धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति के लिए जाना जाने लगा. इसमें सबसे ज्यादा बदलाव अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण और उसके बाद मुगल काल के पतन के बाद आया.
कहां पर बनी है हीरामंडी?
हीरामंडी को शाही मोहल्ला या रॉयल नेबरहुड भी कहा जाता है. महाराजा रणजीत सिंह ने तवायफों की संस्कृति समेत मुगल रीति-रिवाजों को फिर से शुरू किया करने का फैसला लिया. हीरामंडी तब और सुर्खियों में आई जब ब्रिटिश शासन ने इसे अपने सैनिकों के लिए वेश्यालय घरों को फिर से बनाया. हालांकि बाद में लाहौरी गेट और टैक्सली गेट में बदल दिया गया. 20वीं सदी के आखिर में वेश्यावृत्ति को खत्म करने की पूरी कोशिश की गई लेकिन ये खत्म नहीं हुई बल्कि लाहौर के दूसरे हिस्सों में जारी रही.
आज के दौर में कैसे चलती है हीरामंडी
पहले ये मंडी खुले तौर पर वेश्यावृत्ति के लिए जानी जाती थी, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसकी पहचान में भी कई बदलाव किए गए. जिसमें आज के जमाने में हीरामंडी की यौनकर्मियों ने 'एस्कॉर्ट सेवाएं' प्रदान करने के लिए सोशल मीडिया और कई ऐप्स का इस्तेमाल करते हुए बदलते वक्त को अपना लिया है. आज हीरामंडी दोहरी पहचान के साथ खड़ी है, दिन के दौरान एक नियमित बाजार के रूप में दिखाई देती है और रात में रेड लाइट एरिया में बदल जाती है.
कैसे आया सीरीज बनाने का आइडिया?
बहुत से लोगों को हीरामंडी के बारे में नहीं पता है, इसके लिए लगभग 14 साल पहले, लेखक मोइन बेग ने निर्देशक संजय लीला भंसाली के सामने इसको पर्दे पर उतारने का आइडिया दिया था. उन्होंने कहना था कि लाहौर के हीरा मंडी इलाके में रहने वाली वेश्याओं के इर्द-गिर्द एक फिल्म बनानी चाहिए. लाहौर में हीरा मंडी नाम की एक जगह है और उर्दू में हीरा मंडी का मतलब हीरा बाजार होता है.
तवायफ़ों ने कैसे गुजारी जिंदगी?
जानकारी के मुताबिक, संजय और मोइन दोनों ने नेटफ्लिक्स पर कहानी लाने के लिए काफी उत्साहित थे. हीरामंडी लाहौर की तवायफ़ों की कहानियाँ उजागर करने वाली एक सीरीज बन गई. ब्रिटिश राज के दौरान उनके जीवन को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसने शहर के इतिहास पर एक छाप छोड़ी है.