अच्छी फिल्में आपको निखारती हैं...' नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बताया संघर्ष के दिनों का झकझोर देने वाली कहानी
बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हाल ही में अपने करियर के शुरुआती संघर्षो को लेकर खुलासा किया. उन्होंने बताया कि इंडस्ट्री में कई बार उन्हें एक्टर जैसा नहीं दिखने की वजह से रिजेक्शन झेलना पड़ा. नवाजुद्दीन ने इस सोच पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर भारत में करोड़ों लोग उनकी तरह दिखते हैं.

बॉलीवुड के दमदार अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपनी जबरदस्त एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उनकी साधारण शक्ल-सूरत की वजह से उन्हें कई बार अजीबोगरीब स्थितियों का सामना करना पड़ा है. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने खुलासा किया कि कई बार उन्हें खुद अपनी ही फिल्मों के सेट पर घुसने नहीं दिया गया.
एक्टर ने बताया कि जब उन्होंने इंडस्ट्री में कदम रखा था, तो लोग उन्हें देखते ही कह देते थे कि वह "एक्टर जैसे नहीं दिखते". नवाजुद्दीन ने इस सोच पर तंज कसते हुए कहा कि अगर भारत में करोड़ों लोग उनकी तरह दिखते हैं, तो वह अनकन्वेंशनल कैसे हुए? बल्कि असल में ऋतिक रोशन ज्यादा अनकन्वेंशनल लगते हैं.
तुम एक्टर जैसे नहीं दिखते
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि अपने करियर की शुरुआत में जब वह ऑडिशन के लिए जाते थे, तो लोग उन्हें देखते ही कहते थे कि वह एक्टर जैसे नहीं लगते. इस पर उनकी प्रतिक्रिया होती थी. आप किसी के ऑफिस जाओ और कहो कि मैं एक्टर हूं, तो वे कहते थे. 'तुम एक्टर जैसे नहीं लगते'. यह सुनकर मुझे गुस्सा आता था. नवाजुद्दीन ने कहा कि थिएटर बैकग्राउंड से आने के कारण उनके पास 'अंधा युग' और 'तुगलक' जैसे नाटकों के संवाद याद थे, जो उन्हें अपने अभिनय कौशल को साबित करने में मदद करते थे.
शूटिंग सेट पर करनी पड़ी पहचान साबित
नवाजुद्दीन ने अपने संघर्ष के दिनों का एक दिलचस्प किस्सा साझा किया. उन्होंने बताया कि रीमा कागती की 2012 की फिल्म 'तलाश' की शूटिंग के दौरान सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें सेट पर जाने से रोक दिया था. जब उन्होंने कहा कि वह इस फिल्म में काम कर रहे हैं, तो गार्ड को यकीन नहीं हुआ और उन्हें समझाना पड़ा. आज भी ऐसा होता है. मैं अभी 'रात अकेली है पार्ट 2' की शूटिंग कर रहा हूं. सेट पर कई बार मैं निर्देशक हनी त्रेहन के पीछे खड़ा होता हूं और वह मुझे ढूंढ रहे होते हैं. फिर मैं खुद ही कहता हूं - 'सर, मैं यहीं हूं'. मुझे भीड़ में घुलना-मिलना पसंद है और यह मेरी पर्सनालिटी का हिस्सा है.
थिएटर की कमी महसूस करते हैं नवाजुद्दीन
नवाजुद्दीन ने बताया कि वह काफी समय से थिएटर नहीं कर पाए हैं और इसकी उन्हें बहुत कमी महसूस होती है. हालांकि, थिएटर में अनुशासन की जरूरत होती है और एक बार अगर कोई उससे दूर हो जाए, तो वापसी करना मुश्किल हो जाता है. उन्होंने यह भी बताया कि थिएटर ने उन्हें एक बेहतरीन कलाकार के रूप में तराशने में अहम भूमिका निभाई.
हर फिल्म में गाने जरूरी नहीं
आर्ट फिल्मों और कमर्शियल फिल्मों के बीच अंतर को लेकर नवाजुद्दीन ने कहा कि एक कलाकार को हर तरह की फिल्मों में काम करना आना चाहिए. थिएटर में भी हम पारसी थिएटर, शेक्सपियर के नाटक, मोहम्मद राकेश के नाटक, लोक नाटक और पारंपरिक नाटक किया करते थे. वैसे ही फिल्मों में भी हर शैली में काम करना जरूरी है. हर फिल्म में गाने जरूरी नहीं होते, बल्कि गहराई होनी चाहिए. नवाजुद्दीन ने कहा कि कुछ लोगों को फिल्मों में गाने और नाच-गाना पसंद आता है, लेकिन असली कलाकार उन्हीं फिल्मों में काम करना पसंद करते हैं, जो उन्हें चुनौती देती हैं.
अपने काम को लेकर कही ये बात
नवाजुद्दीन ने कहा कि हाल ही में मैंने पायल कपाड़िया की 'ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट' देखी. आम लोग ऐसी फिल्में नहीं देखते क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. हमारे यहां कहावत है. 'दिमाग घर पर रखकर आना'. लेकिन ऐसा क्यों? इस फिल्म को भले ही कम लोगों ने देखा हो, लेकिन इसने हमारे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. उन्होंने कहा कि वह खुद ऐसी फिल्मों में काम करना पसंद करते हैं, जो उन्हें एक कलाकार के रूप में आगे बढ़ने का मौका दें. उन्होंने कहा वो आगे भी ऐसी फिल्मों में काम करते रहेंगे ताकि उनका ग्रोथ हो सके.