Charan Seva: हाल ही में आमिर खान के बड़े बेटे जुनैद खान की एक फिल्म महाराज रिलीज हुई. ये फिल्म रिलीज होने से पहले से ही सुर्खियों में थी, क्योंकि इस को लेकर लोग विरोध कर रहे थे. विरोध करने की वजह थी फिल्म की कहानी. फिल्म की कहानी यूं तो ब्रिटिश काल के दौरान की है लेकिन इसमें एक ऐसे बड़े पुजारी की कहानी को दिखाया गया है जो भक्ति के नाम पर लोगों का गलत इस्तेमाल करता था. ये कहानी 19वीं सदी के एक पत्रकार-कार्यकर्ता-सुधारक के बारे में है जो लोगों को चरण सेवा जैसी प्रथा के खिलाफ बोलने के लिए जागरुक करता है.
फिल्म को देखकर बॉबी देओल की आश्रम की याद आ जाती है, जिस तरह से आश्रम के काशीपुर वाले बाबा थे, उसी से मिलती जुलती कहानी महाराज की है. महाराज और आश्रम में दोनों ही पुजारियों को औरतों के भक्षक के तौर पर दिखाया गया है, कहा जा सकता है कि तरीके अलग लेकिन मकसद एक ही.
ये जुनैद खान की पहली फिल्म है जिसमें उन्होंने लोगों की उम्मीद से ज्यादा अच्छा काम किया है. जुनैद की डायलॉग डिलीवरी के साथ उनके चेहरे के हावभाव भी काफी अच्छे हैं, हालांकि जुनैद खुद अपनी एक्टिंग से उतने खुश नहीं हैं, ये बात उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कही है.
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म 'महाराज' एक कोर्ट केस की कहानी है, जिसमें एक ऐसे धार्मिक नेता का पर्दाफाश किया जाता है, जो धर्म के नाम पर कई बुराइयों को बढ़ावा दे रहा था. करसन दास एक समाज सुधारक और पत्रकार थे जिन्होंने अपने लेखों में धार्मिक नेता जेजे बाबा को बेनकाब किया था. फिल्म में करसन दास का किरदार जुनैद ने निभाया है और जयदीप अहलावत जदुनाथ की भूमिका में हैं, जिन्हें महाराज कहा जाता है.
इस कहानी में शालिनी पांडे करसन की मंगेतर किशोरी की भूमिका में हैं, जिसे जदुनाथ ऊर्फ जेजे 'चरण सेवा' के लिए चुनते हैं. उन्हें इस बात पर गर्व है कि महाराजा ने उन्हें इतने सारे भक्तों के बीच चुना है. बचपन से महाराज की अंधभक्ति में पली लड़की यह नहीं समझती कि 'चरण सेवा' में 'चरण' सबसे अनावश्यक शब्द है और यह वास्तव में सेवा नहीं, बल्कि शोषण है. जबतक किशोरी को सब समझ आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. करसन और किशोरी से करसन का रिश्ता टूट जाता है. किशोरी के साथ महाराज ने जो किया उसकी वजह से किशोरी अपनी जान दे दे देती है. यहीं से असल कहानी शुरू होती है.
किशोरी के मरने के बाद करसन दास के सवाल शुरू होते हैं वो लोगों को बाबा की सच्चाई बताने के लिए और इस प्रथा को खत्म करने के इरादा से अपनी एक पत्रिका निकालने का फैसला लेता है. बाबा का वार करसन के लेख कोर्ट तक बात पहुंचती है. फिल्म में करसन कोई नास्तिक नहीं है बल्कि वो उस धर्म को मानता है जिसका धेकेदार वो बाबा बना बैठा है. करसन कोर्ट में एक बात कहता है कि भगवान हमारे दिलों में उसके लिए किसी तीसरे की जरूरत नहीं है. इस फिल्म को देखकर लगता है कि जुनैद ने अपने पिता आमिर खान की 'PK' से प्रेरणा ली है. हालांकि ये फिल्म एक असल कहानी से ली गई है.
कहानी में जिस तरह से दिखाया गया कि बाबा जेजे हर बार किसी नई लड़की को चरण सेवा के लिए चुनते हैं. इस चरण सेवा में वो लड़की नाबालिग भी हो सकती है और बालिग भी. चरण सेवा के लिए जो भी महिला बाबा चुनते हैं उसका हाथ पकड़ कर उसके अंगूठे को अपने हाथ के अंगूठे से दबाते हैं इससे लोग समझ जाते हैं कि बाबा ने इस लड़की को चरण सेवा के लिए चुन लिया है. उसके बाद लड़की के घर में खुशियां मनाई जाती हैं.
असल चरण सेवा का खेल इसके बाद शुरू होता है, जब लड़की को बाबा के कक्ष में लाया जाता है. इस कक्ष में बाबा उस लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. इसके अलावा जो ये चरण सेवा की प्रक्रिया होती है उसको कुछ पैसे देकर लोग देख सकते हैं.
अंधविश्वास का आलम ये था कि इस पूरी प्रक्रिया को देखते हुए लोग रो रहे होते हैं. जहां पर लड़की के साथ गलत हो रहा है तो उसको भक्ति के साथ जोड़कर लोग देखते थे. इस चरण सेवा के बाद कई महिलाएं प्रेग्नेंट हो जाती लेकिन उसको भी लोग गलत नहीं मानते थे, वो बाबा की औलाद को अपना नाम देकर पालते थे. चरण सेवा देकर जब लड़की घर आती है तो उसके घर पर अच्छा खाना बनता था.
इसी चरण सेवा के खिलाफ करसन की लड़ाई होती है, जिसको वो गलत और अंधविश्वास बताता और लोगों की आंखें खोलने की कोशिश में लग जाता है. करसन का मानना था कि कलम की ताकत बहुत ज्यादा होती है, जो वो लिखेगा उसको लोग पढ़ेंगे और अपनी आंखें खोलेंगे. इसी कलम की ताकत से जेजे को भी एक डर होता है जिसके लिए अखबारों को बंटने से पहले ही गायब करवाने की तमाम साजिशें करता है.
इस फिल्म को लेकर सबकी तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. मगर इसको एक सिनेमा के तौर पर या फिर उन पुरानी प्रथाओं को खत्म करने के लिए किए गए तमाम प्रयासों के संघर्ष के तौर पर देखा जाए तो एक अच्छी फिल्म है. इसमें विधवा प्रथा, अंधविश्वास, लड़कियों की पढ़ाई, चरण प्रथा जैसे मुद्दों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गई है. इस फिल्म को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आजादी से पहले भी वो समस्याएं थी जो कई जगह पर आज वैसी ही चली आ रही हैं.
करसन एक मात्र इंसान है जिसने महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ी, अपना सामाजिक बहिष्कार तक करा लिया. इतिहास के पन्नों में कई ऐसे करसन मिल जाएंगे जिन्होंने इस तरह की कुप्रथाओं के लिए अपनी जान लगा दी, जिनकी वजह से आज महिलाएं आजादी के साथ अपनी जिंदगी जी पा रही हैं. First Updated : Monday, 24 June 2024