नल का पानी दे रहा है ये घातक बीमारी, भारत और चीन जैसे देश में सबसे अधिक है खतरा
शहरों में भले ही पीने के पानी के लिए लोग वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं पर छोटे कस्बों में आज भी लोग नल के पानी का ही इस्तेमाल करते हैं। पर क्या आपको पता है नल का पानी जानलेवा बीमारी की वजह बन रहा है। जी हां, ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं बल्कि एक हालिया रिसर्च में ये बात सामने आई है।
शहरों में भले ही पीने के पानी के लिए लोग वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करते हैं पर छोटे कस्बों में आज भी लोग नल के पानी का ही इस्तेमाल करते हैं। पर क्या आपको पता है नल का पानी जानलेवा बीमारी की वजह बन रहा है। जी हां, ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं बल्कि एक हालिया रिसर्च में ये बात सामने आई है।
दरअसल, ‘दी लैंसेट प्लानेट्री’में प्रकाशित एक हालिया रिसर्च में ये बात तथ्य के रूप में सामने आई है। प्रोफेसर अशोक जे तामहंकर, नदा हाना, और प्रोफेसर सेसिलिया स्टाल्सबी लुंडबोर्ग के हवाले से लिखे गए इस शोध के अनुसार नल के पानी में काफी मात्रा में एंटीबायोटिक की मौजूदगी होती है। ऐसे में एंटीबायोटिक की अधिकता वाला ये पानी जब शरीर में जाता है तो ये एएमआर (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) पैदा करता है।
नल के पानी में एंटीबायोटिक की अधिकता होती है नुकसानदायक
असल में, इस शोध के लिए भारत और चीन जैसे देशों से कई जगहों से पानी के नमूने जमा किए गए। पानी की गुणवत्ता जांच में ये पाया गया कि एंटीबायोटिक की मौजूदगी और एएमआर की घातक स्थिति पैदा करने का सबसे अधिक खतरा नल के पानी से है। क्योंकि इस पानी में सिप्रोफ्लोएक्सिन नामक एंटीबायोटिक काफी अधिक मात्रा में पाया गया। अब बात करें कि आखिर नल के पानी में एंटीबायोटिक इतना अधिक क्यों होता है।
तो बता दें कि नगर निगम या नगर पालिकाएं जो पानी लोगों को नल के माध्यम से उपबल्ध कराती है, उसे पहले ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है। जबकि इस प्लांट तक पहुंचने वाला पानी कई स्रोतों से आता है जिसमें अस्पताल और दवा बनाने वाली जगहें भी शामिल है। इन स्त्रोत से आने वाले पानी में पहले से ही एंटीबायोटिक का समावेश होता है। वहीं वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट प्लांट इतने कारगर नहीं होते कि ये पानी से एंटीबायोटिक पूरी तरह से निकल सके। ऐसे में प्लांट से निकलने वाला पानी एंटीबायोटिक के साथ लोगों को घरों में नल के माध्यम से पहुंच जाता है।
क्या है एएमआर, जिससे हर साल भारत में होती है 60 हजार बच्चों की मौत
अब बात करें कि आखिर पानी में मौजूद एंटीबायोटिक कैसे घातक बनता है। तो बता दें कि एंटीबायोटिक की अधिकता एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की स्थिति पैदा करता है। जिसके चलते जीवाणु या दूसरे सूक्ष्मजीव खुद को खत्म करने वाले दवाओंजैसे कि एंटीबायोटिक्स के प्रति लड़ने की क्षमता विकसित विकसित कर लेते हैं। ऐसे में शरीर पर बाहरी दवाएं और इलाज की प्रक्रिया बेअसर होने लगती हैं।
जानने वाली बात ये भी है कि एएमआर की स्थिति जहां जानलेवा है, वहीं संक्रामक भी। इसके दूसरे इंसाने और जानवरों में फैलने का जोखिम पूरा रहता है। आकड़ों की बात करें तो साल 2019 में इसके चलते पूरी दुनिया में तकरीबन 50 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं भारत में एएमआर का खतरा हमेशा से अधिक रहा है। साल 2016 में आई एक रिपोर्ट की माने तो एएमआर के कारण देश में हर साल लगभग 60 हजार नवजात बच्चों की मौत हो जाती है।
गौरतलब है कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के खतरे से बचने के लिए WHO नेसाल 2015 में एक वैश्विक रणनीति तैयार की थी। इसी के तहत भारत भी साल 2017 में एक नेशनल ऐक्शन प्लान बनाया गया और सभी राज्य सरकारों को राज्य स्तर पर इसके लिए रणनीति बनाने और लागू करने की सलाह दी गई। पर बात करें धरातल पर इस रणनीति को लागू करने की तो ‘डाउन टू अर्थ’की रिपोर्ट की माने तो बीते साल नवंबर 2022 तक भारत के सिर्फ तीन ही राज्य ही इस तरह की कार्य योजना अपने यहां लागू कर पाए हैं।