शादी की तो देना पड़ेगा इस्तीफा… UPSC क्लियर कर पहली महिला राजदूत बनी C B Muthamma को करना पड़ा इन चुनौतियों का सामना
आज भारत की कई महिला प्रशासनिक अधिकारी विदेशों में राजनयिक, राजदूत और उच्चायुक्त के रूप में कार्यरत हैं। पर आज से कई दशको पहले इसका आगाज करने वाली IFS महिला अधिकारी चोनिरा बेलियप्पा को इसके लिए सरकार और व्यवस्था से लैंगिक भेदभाव के विरोध में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी।
आज के वक्त में UPSC यानी संघ लोक सेवा आयोग की परिक्षा पास कर हजारों की संख्या में महिलाएं देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और चुनौतीपूर्णपदों पर आसीन हैं। पर क्या आपको उस महिला के बारे में पता है जिसने देश की इन तमाम महिलाओं के लिए ऐसी सर्वोच्च पदों तक पहुंचने की राह बनाई, जो UPSC क्लियर करने के बाद भारतीय राजदूत बनने की लिए तत्कालीन सरकारी व्यवस्था से भी टकरा गई। दरअसल, हम बात कर रहे हैं कि सी.बी. मुथम्मा (C B Muthamma), जिन्हें भारत की महिला राजदूत बनने का गौरव प्राप्त करने के लिए कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़नी पड़ी लंबी लड़ाई
गौरतलब है कि आज भारत की कई महिला प्रशासनिक अधिकारी विदेशों में राजनयिक, राजदूत और उच्चायुक्त के रूप में कार्यरत हैं। पर आज से कई दशको पहले इसका आगाज करने वाली IFS महिला अधिकारी चोनिरा बेलियप्पा को इसके लिए सरकार और व्यवस्था से लैंगिक भेदभाव के विरोध में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। बता दें कि सी.बी. मुथम्मा, वर्ष 1948 में यूपीएससी क्लियर करने वाली पहली भारतीय महिला थी। इस परिक्षा के जरिए उनका मकसद था भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो देश का अग्रणी बनना पर था, पर तभी देश की सरकारी व्यवस्था महिलाओं को ऐसी भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं मानती थी।
जॉइनिंग लेटर में लिखी गई थी ऐसी शर्तें
ऐसे में भारतीय लोक सेवा आयोग की बोर्ड ने उन्हें इंटरव्यू के दौरान ही विदेश सेवा में शामिल न होने की सलाह दे डाली थी। पर वहीं मुथम्मा इस पद को पाने के लिए बेहद दृढ़ थी और उन्होंने बोर्ड के सामने दृढ़ता से अपना पक्ष रखा। ऐसे में बोर्ड को उनकी माननी पड़ी और साल 1949 में वो भारत की पहली IFS महिला अधिकारी के रूप में विदेश सेवा में शामिल हुईं। पर इसके लिए भी उन्हें सरकार की कुछ शर्ते माननी पड़ी। उन्हें एक वचन पत्र (PROMISSORY NOTE) पर बकाएदे हस्ताक्षर कर ये बात स्वीकारनी पड़ी थी कि अगर वो आगे चलकर शादी करती हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा पड़ेगा। वैसे उसके कुछ साल बाद इस नियम में बदलाव कर दिया गया था।
राजदूत पद के लिए खटखटाना पड़ा न्यायालय का दरवाजा
इसके बाद कुछ सालों तक सी बी ने यूरोप से लेकर एशिया और अफ्रीका के कई देशों में भारतीय राजनयिक के रूप में कार्य किया। पर इसके बावजूद उन्हें इस सेवा में लैंगिक पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा। दरअसल, दशकों तक विदेश सेवा में अनुभव के बाद भी जब बात उन्हें एक राजदूत के रूप में तैनात करने की आई तो उन्हें इसके लिए अनुपयुक्त माना गया। ऐसे में उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा, यहां उनकी बात पर अमल करते हुए साल 1979 में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने सरकार के तर्क को खारिज करते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके बाद C B Muthammaहंगरी में भारत के राजदूत के रूप में नियुक्त की गई।
इस तरह पहली महिला राजदूत के रूप में इस पद पर आसीन होने के साथ ही मुथम्मा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के इतिहास में नया अध्याय लिखा। इसके बाद मुथम्मा ने घाना से लेकर नीदरलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दी और साल 1982 में वो IFS से रिटायर हुईं।