आतंक के साथ खड़ा चीन

चीन एक बार फिर बेशर्मी से आतंक के साथ खड़ा हुआ है और उसने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के एक सरगना अब्दुल रऊफ अजहर पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर अड़ंगा लगा दिया, उसकी अनदेखी न तो भारत कर सकता है और न ही विश्व समुदाय।

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चीन एक बार फिर बेशर्मी से आतंक के साथ खड़ा हुआ है और उसने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के एक सरगना अब्दुल रऊफ अजहर पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर अड़ंगा लगा दिया, उसकी अनदेखी न तो भारत कर सकता है और न ही विश्व समुदाय। चीन ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को खुलेआम प्रश्रय देने का काम पहली बार नहीं किया। उसने ऐसी ही हरकत अब्दुल रऊफ अजहर के भाई और जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के मामले में भी की थी। अंतत: उसे मुंह की खानी पड़ी, लेकिन ऐसा लगता है कि उसे न तो अपनी छवि की परवाह है और न ही अंतरराष्ट्रीय जनमत की।

ध्यान रहे कि वह एक अन्य पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल रहमान लखवी को प्रतिबंधित करने के भारत और अमेरिका के प्रस्ताव को रोक चुका है। चीन ऐसा करके न केवल भारतीय हितों के विरुद्ध काम कर रहा है, बल्कि पाकिस्तान को आतंक की फैक्ट्री चलाये रखने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहा है, क्योंकि पाकिस्तान में आतंकियों को पालने-पोसने का काम जारी है। इसलिए कश्मीर में आतंकी गतिविधियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। गत दिवस भी जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकियों ने एक सैन्य शिविर पर हमला किया, जिसमें हमारे तीन सैनिक बलिदान हो गये। माना जा रहा है कि यह हमला जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने ही किया। यद्यपि इस हमले के दौरान दो आतंकी मार गिराये गये तो स्पष्ट ही है कि यह आतंकी संगठन भारत के लिए खतरा बना हुआ है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद को और चीन पाकिस्तान को संरक्षण दे रहा है।

अब भारत के पास इस निष्कर्ष पर पहुंचने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं रह गया है कि चीन और पाकिस्तान मिलकर भारतीय हितों पर आघात कर रहे हैं। इस नापाक गठबंधन से निपटने के लिए भारत को पाकिस्तान और विशेष रूप से चीन के प्रति अपनी वर्तमान रीति-नीति पर नये सिरे से विचार करना होगा। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि चीन लद्दाख सीमा पर अभी भी अतिक्रमणकारी रवैया अपनाये हुए है और वार्ताओं के नाम पर भारत के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। चीन अपने भारत विरोधी रवैये का तब तक परित्याग नहीं करने वाला जब तक उसे उसी की भाषा में जवाब नहीं दिया जाता। चूंकि चीन संबंध सुधारने और जिम्मेदार राष्ट्र की तरह व्यवहार करने से इन्कार कर रहा है इसलिए भारत को उसकी कमजोर नस दबाने में अपनी हिचक तोड़नी ही होगी। भारत को अब यह कहने में देर नहीं करनी चाहिए कि वह वर्तमान परिस्थितियों में वन चाइना नीति का समर्थन करने में असमर्थ है। नि:संदेह इसी के साथ भारत को चीनी वस्तुओं पर अपनी निर्भरता भी कम करने के लिए नये सिरे से सक्रिय होना होगा। First Updated : Friday, 12 August 2022