देश के कई प्रदेशों में इन दिनों राज्यपाल और सरकार के बीच खींचतान जारी है.. कुछ राज्यों में तो ये हालात ऐसे हैंकि सरकारों ने दिल्ली को पत्र लिखकर राज्यपाल को हटाने तक की मांग उठा दी है। दिल्ली में केजरीवाल और उप राज्यपाल वीके सक्सेना होया फिर पूर्व में बंगाल के राज्यपाल रह चुके, जगदीप धनखड़... ममता बनर्जी के साथ उनकी जुबानी जंग खूब ख्याति पाई थी। वहीं बीते कुछ दिनों से केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से टकराव तो अपने चरम लेबल पर है। वहीं ऐसा ही कुछ नजारा महाराष्ट्र में तब देखने को मिला था। जब महाअघाड़ी की उद्धव के नेतृत्व में सरकार था। उत्तर के साथ दक्षिण में भी ये लड़ाई खूब चल रही है। पहले केरल में थी, अब तमिलनाडु में हो रही है। गिनती की जाये तो आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में कमोवेश यही स्थिति है। सबसे खास बात ये हैकि ये सभी राज्य गैर बीजेपी शासित है, जिसमें अब तेलंगाना और राजस्थान भी शामिल हो गए हैं।
इन राज्यों में जारी है मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल की लड़ाई
यूं तो देश में राज्यपाल व सरकारों के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है। लेकिन तब और आश्चर्य होता हैजब कुछ राज्यों यानी की गैर बीजेपी शासित राज्यों में अगर ऐसा टकराव देखने को मिलता है तो सवाल खड़े होना लाजमी हैं। क्योंकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस लंबे समय तक राज्यपाल को केंद्र से वापस बुलाने की मांग करती रही है। तब राज्य का जिम्मा जगदीप धनखड़ के पास था। इसके अलावा एक अध्यादेश के जरिये राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के अधिकार को खत्म करने को लेकर केरल में वाम सरकार से भी ठनी रही। इतना ही नहीं राज्यपाल ने बकायादा यहां 11कुलपतियों को हटाने का आदेश तक दे दिया था जिसके बाद विवाद शुरु हो गया।
तमिलनाडु में भी राजनीति उफान पर है। समस्या राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर खड़ी हुई थी। जिसके बाद राज्यपाल ने अभिभाषण अधूरा छोड़कर ही विधानसभा से चले गए थे। दरअसल, राज्यपाल ने तमिलनाडु राज्य का नाम ही बदलने को कह दिया। उन्होंने कहा इस राज्य का नाम तमिलनाडु की बजाय तमिझगम होना चाहिए। सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस ने इस पर आपत्ति की। कहा कि राज्यपाल यहाँ RSS और भाजपा का एजेंडा चलाना चाहते हैं, ऐसा हम होने नहीं देंगे।
दूसरी ओर, तेलंगाना में मौजूदा राज्यपाल ने आशंका जताई की उनके फोन टैप को टैप किया जा रहा है। इसके साथ ही दिल्ली में तो केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल रोज किसी ना किसी मुद्दे को लेकर खींचतान करते हैं। बात यहां तक बढ़ गई है, कि दोनों में अधिकारों को लेकर विवाद कोर्ट तक जा चुका है। लेकिन केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु में जिस तरह के विवाद सामने आए हैं, वो चिंतित करते हैं। क्योंकि दिल्ली में तो केंद्र के साथ काफी कुछ बंटा है, लेकिन दक्षिण के पूर्ण राज्यों में ये तनाव चिंता लाता है।
इस लड़ाई में जीत नहीं रुसवाई लगती है हाथ
बहरहाल, टकराव के कारण तो कई है। पर संवैधानिक पद में बैठे व्यक्ति से चुनी हुई सरकार से तनाव लोकतंत्र के लिये अच्छे संकेत नहीं देता। इस लड़ाई को लेकर केंद्र की एनडीए सरकार में कई आरोप भी लग रहे हैं। विपक्षी दलों ने कई बार इसको लेकर कहा है, कि जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं केंद्र सरकार अपरोक्ष रूप से राज्य सरकारों को कमजोर करने में लगी रहती हैं। उनकी दलील है कि ऐसे विवाद डबल इंजन की सरकारों वाले राज्यों में क्यों नहीं होते। जिसको लेकर कई बार बात संसद में भी उठी है। आम आदमी पार्टी के सांसदों ने उपराज्यपाल पर कई बार सवाल उठाये हैं।
इन विवादों से सबसे ज्यादा नुकसान राज्यपाल पद की गरिमा को हो रहा है. राज्य सरकारों को भी ऐसे मामले में केंद्र सरकार पर निशाना साधने का मौका मिलता है। संवैधानिक ताने बाने के जानकार कहते हैं, एनडीए से इतर सरकारें भी लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई है। जनता ने उन्हें चुना है। लेकिन सरकारों को बनाने-गिराने के खेल में कई बार राज्यपाल की भूमिका अहम रही है। गैर एनडीए सरकारों के साथ कई बार ऐसा संकट खड़ा हो जाता है। जानकारों का कहा है, कि राज्यपाल और सरकारें अपने अधिकार की अपने मुताबिक व्याख्याएं भी इस विवाद के मूल में हैं। जिससे एक-दूसरे के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। First Updated : Friday, 13 January 2023