पहली मौत ने बढ़ाई चिंता
भारत में मंकीपाॅक्स से हुई पहली मौत के बाद चिंता बढ़ना लाजिमी है। यह मामला भले केरल का हो, लेकिन जिस तरह अब दूसरे राज्यों से भी इसके संदिग्ध मामले सामने आने की खबरें आ रही हैं, उससे तो इस बात का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है कि कहीं न कहीं दबे पांव यह बीमारी विकराल रूप धारण न कर ले।
भारत में मंकीपाॅक्स से हुई पहली मौत के बाद चिंता बढ़ना लाजिमी है। यह मामला भले केरल का हो, लेकिन जिस तरह अब दूसरे राज्यों से भी इसके संदिग्ध मामले सामने आने की खबरें आ रही हैं, उससे तो इस बात का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है कि कहीं न कहीं दबे पांव यह बीमारी विकराल रूप धारण न कर ले। सबसे पहले केरल में तीन मरीज मिलने के बाद दिल्ली में भी एक मामला मिला था। फिर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी संदिग्ध मरीज मिले। उत्तर प्रदेश में एक संदिग्ध मामला सामने आने की बात थी।
जाहिर है, मामले तो बढ़ रहे हैं, भले अभी संख्या दस से कम हो। हालांकि केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारों ने एहतियाती कदम उठाने शुरू कर दिए हैं, पर केरल का मामला बता रहा है कि कहीं तो ऐसी लापरवाही हुई है जिससे मंकीपाॅक्स से पीड़ित मरीज की मौत हो गई। जैसा कि बताया जा रहा है कि मंकीपाॅक्स से पीड़ित व्यक्ति संयुक्त अरब अमीरात से केरल लौटा था। विमान में सवार होने से पहले उसकी जांच भी हुई थी और वहीं इसका पता भी चल गया था। लेकिन केरल पहुंचने के छह दिन बाद उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। यानी इतने दिन उसे घर में ही रखा गया। अगर समय पर उसे अस्पताल पहुंचाया जाता और उचित इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी।
भले ही कहा जा रहा हो कि मंकीपाॅक्स कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी नहीं है और इससे डरने की जरूरत भी नहीं है, पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे लेकर जो स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है, उससे साफ है कि यह कम खतरे वाली बात भी नहीं है। जरा-सी लापरवाही बड़े संकट में डाल सकती है। अब तक अस्सी से ज्यादा देशों में इसके करीब तेईस हजार मरीज मिल चुके हैं।
संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। चिंता की बात यह है कि दुनियाभर में इसके कुल मरीजों में सत्तर फीसद तो अकेले यूरोप में ही हैं। इससे यह आशंका क्यों नहीं बढ़ेगी कि कहीं यूरोप इस बीमारी का भी बड़ा केंद्र न बन जाये। उधर, अमेरिका के न्यूयार्क शहर में भी मंकीपाॅक्स के बढ़ते मामलों को देखते हुए सार्वजनिक आपातकाल घोषित कर दिया गया है। माना जा रहा है कि न्यूयार्क में डेढ़ लाख लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। डर की बात इसलिए भी है कि दुनिया अभी पूरी तरह कोरोना से उबर भी नहीं पाई है। ऐसे में दूसरे संक्रामक और गैरसंक्रामक रोगों के फैलने का बढ़ता खतरा नई जटिलतायें पैदा कर देता है।
याद किया जाना चाहिए कि कोरोना महामारी ने विकराल रूप इसी तरह धारण किया था। जब चीन से संक्रमित मरीजों के केरल पहुंचने की बात सामने आने लगी थी, उसके बाद भी हवाई अड्डों पर गहन जांच और निगरानी का इंतजाम नहीं था। दूसरे देशों से लोग अनवरत आते रहे और संक्रमण साथ लाते रहे। बड़ी संख्या में लोगों ने जांच करवाने से भी परहेज किया। सरकार और नागरिकों के स्तर पर ऐसी घोर लापरवाही का नतीजा पूरे देश को भुगतना पड़ा। यह जांच का विषय है कि जब मंकीपाॅक्स से पीड़ित व्यक्ति केरल पहुंच गया था, तो क्यों नहीं हवाई अड्डे से ही उसे सीधे अस्पताल भेजा गया। इससे तो लग रहा है कि जांच और निगरानी के नाम पर केरल सरकार आंखें मूंदे बैठी है। लोगों और सरकारों की ऐसी लापरवाही देश को फिर से बड़े संकट में धकेल सकती है।