जलियाँवाला बाग हत्याकांड : चली थी 1650 राउंड गोलियां
जलियांवाला बाग हत्याकांड आज से ठीक 103 साल पहले 13 अप्रैल को वैसाखी के दिन अमृतसर में घटी थी। साल 1919 का दिन था जब सिखों के द्वारा धूमधाम से मनाए जाने वाला उत्सव वैसाखी के लिए हजारों सिख अमृतसर के जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे। ब्रिटिश काल का समय था अनेकों प्रदर्शन ब्रिटिश सरकार के विरोध में उस समय जगह- जगह देखा जा रहा था, अमृतसर में भी ब्रिटिश सरकार के विरोध में अनेकों भारतीय अपनी आवाज को बुलंद कर रहे थे, जैसे ही इसकी भनक उस समय के ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर को लागी उन्होंने अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए सभा में मौजूद हजारों निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश अपने सिपाहियों दे दिया। जिसके बाद एक- एक कर सैकड़ों लाशें कुछ ही घंटों में ढेर लग गई, हजारों लोग घायल हो गए, मिट्टी खून से लाल हो गई।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड : चली थी 1650 राउंड गोलियां जलियांवाला बाग हत्याकांड आज से ठीक 103 साल पहले 13 अप्रैल को वैसाखी के दिन अमृतसर में घटी थी। साल 1919 का दिन था जब सिखों के द्वारा धूमधाम से मनाए जाने वाला उत्सव वैसाखी के लिए हजारों सिख अमृतसर के जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे। ब्रिटिश काल का समय था अनेकों प्रदर्शन ब्रिटिश सरकार के विरोध में उस समय जगह- जगह देखा जा रहा था, अमृतसर में भी ब्रिटिश सरकार के विरोध में अनेकों भारतीय अपनी आवाज को बुलंद कर रहे थे, जैसे ही इसकी भनक उस समय के ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर को लागी उन्होंने अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए सभा में मौजूद हजारों निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश अपने सिपाहियों दे दिया। जिसके बाद एक- एक कर सैकड़ों लाशें कुछ ही घंटों में ढेर लग गई, हजारों लोग घायल हो गए, मिट्टी खून से लाल हो गई।
कहा जाता है कि इस पूरे घटना में 1650 राउंड गोलियां चली थी घंटों तक गोलियों की तड़-तड़ की आवाज होती रही आज भी इसके साक्ष्य जलियांवाला बाग़ में मौजूद है। इस घटना को बीते 103 साल गए हैं लेकिन जब कभी भी हम लोग उस मंजर को याद करते हैं तो हमारी रूह कांप जाती है। भारतीयों ने इससे पहले इस तरह की क्रूरता नहीं देखी थी। इस घटना ने एक-एक भारतीयों के दिलों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक विरोध की चिंगारी जला दी। जिसके बाद देश की आजादी को लेकर अनेकों आंदोलन किया गया और मजबूर ब्रिटिश सरकार को आखिर कर 1947 में देश को छोड़कर जाना पड़ा।