खड़गे कांग्रेस के नए आलाकमान
80साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। खड़गे का जन्म कर्नाटक बीदर जिले के छोटे से गांव वरवट्टी में हुआ है। बचपन में ही उन्होंने जो दर्द झेला उसे बयां करना ही नहीं सुनकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
80साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। खड़गे का जन्म कर्नाटक बीदर जिले के छोटे से गांव वरवट्टी में हुआ है। बचपन में ही उन्होंने जो दर्द झेला उसे बयां करना ही नहीं सुनकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनके गांव में हिंदू-मुस्लिम दंगा हो गया था। पूरे गांव में आग लगा दी गई थी। यहीं एक घर में 5 साल का बच्चा मल्लिकार्जुन ने अपनी मां को जिंदा जलते देखा था। कल्पना करिए क्या स्थिति रही होगी और उस बालक पर क्या गुजरी होगी। पिता मपन्ना उसे बचाकर गांव से दूर ले गए। 3 महीने जंगल में रहे और मजदूरी की। बच्चे को काम में लगाने के बजाय पढ़ाया। मल्लिकार्जुन नाम का वह बच्चा बड़ा होकर पहले वकील बना, फिर यूनियन लीडर, विधायक, अपने प्रदेश कर्नाटक में मंत्री, सांसद, केंद्रीय सरकार में मंत्री और अब कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष। खड़गे की जिंदगी हमेशा मुश्किल भरी रही, लेकिन लीडरशिप की क्वालिटी उनमें बचपन से थी। वे स्कूल में हेड बॉय थे। कॉलेज गए तो स्टूडेंट लीडर बन गए। गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने, पहली बार में विधायक बने और 9 बार चुने गए, दो बार सांसद भी रहे, लेकिन तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। खड़गे इंदिरा गांधी के समय से गांधी परिवार के करीब रहे हैं।
यही वजह है कि अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी तीनों की सहमति थी। दलित समुदाय से आने वाले पिता मपन्ना ने अपने जीवित रहते मल्लिकार्जुन को कभी काम नहीं करने दिया। उनकी सोच थी कि बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। खटक चिंचौली से निकलकर मपन्ना तीन दिन लगातार पैदल चलकर गुलबर्गा पहुंचे। यहां उन्होंने कपड़ा मिल में काम शुरू किया। मपन्ना मल्लिकार्जुन के साथ बसवानगर में रहने लगे। यहीं उन्होंने एक घर बनाया और पास के स्कूल में मल्लिकार्जुन का एडमिशन करा दिया। चुनावों के दौरान आज भी मल्लिकार्जुन खड़गे इसी स्कूल में वोट डालने आते हैं। उनके पिता के बनाए घर की जगह उन्होंने दो मंजिला मकान बनवाया है। अब यहां 6 परिवार किराए से रहते हैं। मल्लिकार्जुन ने 12वीं तक की पढ़ाई नूतन स्कूल से पूरी की। इसके बाद गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन। गुलबर्गा के सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। खड़गे गुलबर्गा के पहले दलित वकील थे। उनकी होशियारी देख सुप्रीम कोर्ट के जज शिवराज पाटिल ने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया। मल्लिकार्जुन 1969 में एमएसके मिल के लीगल एडवाइजर बनाए गए। उनके पिता कभी इसी मिल में काम करते थे। मजदूरों के कहने पर खड़गे यूनियन लीडर बन गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बिना पैसे लिए गरीबों और मजदूरों के केस लड़ते थे। इस वजह से खड़गे कुछ ही दिन में शहर के लोगों, खास तौर से दलितों में मशहूर हो गए। उन्हें गुलबर्गा के संयुक्त मजदूर संघ का सबसे प्रभावशाली नेता कहा जाने लगा। यहीं से कांग्रेस नेताओं की नजर उन पर पड़ी। 1970 में मल्लिकार्जुन कांग्रेस के डिस्िट्रक्ट प्रेसिडेंट बन गए। मल्लिकार्जुन कब सोते हैं, यह किसी को नहीं पता। वे चाहे घर में हो या बाहर, टीवी देख रहे हों या किसी रिश्तेदार के घर गए हों, उनके हाथ में एक किताब जरूर रहती है। ज्यादातर वक्त वे भगवान बुद्ध से जुड़ी या डॉ. अंबेडकर की किताब रखते हैं। पॉलिटिक्स में एंट्री से पहले मल्लिकार्जुन ने लॉ की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।
कांग्रेस नेता धर्म सिंह ने ही मल्लिकार्जुन को पॉलिटिक्स में जाने के लिए मनाया था। 1972 में मल्लिकार्जुन खड़गे पहली बार चुनाव मैदान में उतरे। कांग्रेस ने उन्हें गुरमिटकल विधानसभा सीट से टिकट दिया था। खड़गे को 1,67,960 वोट मिले। उन्होंने निर्दलीय मुरथेप्पा को 94,400 वोट से हराया था। मल्लिकार्जुन के लिए कहा जाता है कि कांग्रेस जब भी कर्नाटक में सत्ता में आई वे 'सीएम इन वेटिंग' रहे। 2004 में उनका मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन उनके दोस्त धर्म सिंह का नाम सामने आया तो मल्लिकार्जुन पीछे हट गए। 2013 में भी मल्लिकार्जुन कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने जाने वाले थे। तब आखिरी वक्त में सिद्धारमैया का नाम आगे कर दिया गया। 1980 में आर गुंडु राव सरकार में मंत्री बनने के बाद मल्लिकार्जुन सभी कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। राज्य की राजनीति में लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के वर्चस्व के कारण वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। 8 भाषाएं जानने वाले खड़गे की मराठी पर अच्छी पकड़ है। इसीलिए 2018 में पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सौंपी थी। खड़गे के लिए सबसे बड़ा मौका 2014 में आया। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार मिली थी। वह सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई। गुलबर्गा से दूसरी बार जीते खड़गे को पार्टी ने लोकसभा में अपना नेता बनाया। मल्लिकार्जुन खड़गे की पत्नी का नाम राधाबाई है। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं।
बड़े बेटे राहुल खड़गे परिवार का बिजनेस संभालते हैं। दूसरे बेटे मिलिंद डॉक्टर हैं, उनका बेंगलुरु में स्पर्श नाम से हॉस्पिटल है। छोटे बेटे प्रियांक खड़गे गुलबर्गा जिले के चित्तपुर से विधायक हैं।