मुस्लिम महिलाओं के तलाक पर मद्रास HC ने की टिप्पणी, कहा “शरीयत परिषद कानून नहीं है”
मुस्लिम महिलाओं के पास यह ऑप्शन है कि वे तलाक लेने के लिए खुद द्वारा लिया गया फैसला “खुला” के जरिये अपनी शादी को समाप्त करने का अधिकार है।
Muslim Women Divorce : मद्रास हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम दंपत्ति के तलाक के मामले पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि मुस्लिम महिलाओं के पास यह ऑप्शन है कि वे तलाक लेने के लिए खुद द्वारा लिया गया फैसला “खुला” के जरिये अपनी शादी को समाप्त करने का अधिकार है। इसके लिए महिलाएं फैमिली कोर्ट का रुख कर सकती हैं बजाय शरीयत काउंसिल जैसी संस्थाओं में जाकर नहीं। मद्रास कोर्ट ने कहा है कि निजी संस्थाएं खुला के जरिये शादी समाप्त करने का फैसला नहीं सुना सकती और ना ही ये संस्थाएं विवाह विच्छेद को सत्यापित कर सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि निजी संस्थाओं द्वारा जारी किया गया खुला प्रमाणपत्र अमान्य होगा। यह पति द्वारा पति को दिए तलाक के बराबर है। आपको बता दें कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी में वर्ष 2013 में शादी की थी। जिसके बाद दोनों का एक बच्चा हुआ। साल 2015 में महिला ने घर छोड़ दिया। इसके बाद महिला ने शरियत काउंसिल के जरिये अपने इस संबंध को खत्म कर दिया था।
महिला के पति ने कोर्ट में शरियत काउंसलि के खुला प्रमाणपत्र के खिलाफ याचिका दायर की और खुला प्रमाणपत्र को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान महिला को निर्देश दिया कि वह अपने विवाद को सुलझाने के लिए फैमिली कोर्ट में जाए। कोर्ट के अनुसार महिला मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1973 के तहत फैमिली कोर्ट में जा सकती है।
क्या है 'खुला'
'खुला' मुस्लिम धर्म इस्लाम के अंदर एक तरह की तलाक की प्रक्रिया है। जिसमें शादी के रिश्ते को खत्म करने के लिए एक मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देती हैं। आपको बता दें कि खुला के लिए दोनों की सहमति जरूरी होती है। तालक की तरह ही खुला प्रक्रिया में भी महिला को अपनी कुछ संपत्ति पति को लौटानी होती है।