शहीद हुए मेजर रंधावा की बेटी ने ‘पुस्तक' में बयां की युद्ध प्रभावित परिवारों का दर्द
वर्ष 1997 में पुलवामा में आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान जान गंवाने वाले मेजर सुखविंदर सिंह रंधावा की बेटी सिमरन रंधावा ने ''कॉस्ट ऑफ वॉर'' नाम से एक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने याद किया है कि 18 महीने की आयु में वह किस तरह अपने पिता से ‘बात’ करने के लिये खिलौने वाले फोन का इस्तेमाल काल्पनिक कॉल करने के वास्ते किया करती थीं।
नई दिल्ली। वर्ष 1997 में पुलवामा में आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान जान गंवाने वाले मेजर सुखविंदर सिंह रंधावा की बेटी सिमरन रंधावा ने ''कॉस्ट ऑफ वॉर'' नाम से एक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने याद किया है कि 18 महीने की आयु में वह किस तरह अपने पिता से ‘बात’ करने के लिये खिलौने वाले फोन का इस्तेमाल काल्पनिक कॉल करने के वास्ते किया करती थीं। पुस्तक में अपने अनुभव साझा करते हुए सिमरन ने कहा कि युद्ध की बात करना आसान है, लेकिन हर जीत की एक कीमत होती है।
फिलहाल कनाडा में मनोविज्ञान की पढ़ाई कर रहीं सिमरन (26) ने कहा, ''मैं यह बयां करने के लिये किताब लिखना चाहती थी कि एक बच्चे को तब कैसा महसूस होता है, जब उसका पिता इस दुनिया से चला जाता है। सैनिकों की शहादत पर ही युद्ध खत्म नहीं हो जाता। यह उनके परिवारों का जीवन भी अंधकारमय बना देता है।'' सिमरन के पिता मेजर रंधावा को 17 जून, 1997 को दो आतंकवादियों को मार गिराने के लिये मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। उस समय सिमरन मात्र 18 महीने की थीं।
सिमरन की मां लेफ्टिनेंट कर्नल आर. जे. रंधावा सेना में नियुक्त होने वाली पहली विवाहित महिला अधिकारी थीं और इसका श्रेय सैनिक पत्नी कल्याण संघ की तत्कालीन अध्यक्ष रंजना मलिक को जाता है, जिन्होंने अपने पति और तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक के माध्यम से इस मामले को आगे बढ़ाया था। मलिक ने किताब के विमोचन में कहा, ''रंजना ने इस मामले पर करीब से काम किया और मैंने तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के साथ बैठक की, जिन्होंने नियमों में ढील देने और उन्हें सेना में शामिल होने की अनुमति दी थी।''
सिमरन ने पुस्तक में लिखा, ''...अपने घर में सुरक्षित बैठकर युद्ध और कार्रवाई की मांग करना आसान है। टीवी स्क्रीन पर बैठकर सेना या सरकार की निष्क्रियता पर बात करना आसान है। लेकिन जब भी आप युद्ध की मांग करें, तब हमारे बारे में सोचें। मुझे लगता है कि एक देश के तौर पर हम कभी-कभी यह भूल जाते हैं कि हर जीत की एक कीमत होती है। आप जब एक युद्ध स्मारक के पास से गुजरते हैं तो कभी न खत्म होने वाले नामों को देखते हैं, लेकिन हमारी पीड़ा को भूल जाते हैं। । मुझे लगता है कि कभी-कभी हम भूल जाते हैं कि हर जीत के लिए खून बहता है।''