वार्ता का प्रस्ताव

सेना के तीनों अंगो में भर्ती की नई अग्निपथ योजना पर राष्ट्रव्यापी उग्र प्रदर्शनों को ध्यान में रखकर इसमें संतोषजनक बदलाव के लिए केन्द्र सरकार का वार्ता का प्रस्ताव स्वागत योग्य है।

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सेना के तीनों अंगो में भर्ती की नई अग्निपथ योजना पर राष्ट्रव्यापी उग्र प्रदर्शनों को ध्यान में रखकर इसमें संतोषजनक बदलाव के लिए केन्द्र सरकार का वार्ता का प्रस्ताव स्वागत योग्य है। केन्द्रीय सूचना एव प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का यह वक्तव्य लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है, “ सरकार खुले मन से आंदोलनकारी युवकों की शिकायतें सुनने और जरूरत पड़ी तो इसमें बदलाव को तैयार है”। इस योजना को 

ऐतिहासिक फैसला बताते हुए उनका यह भी कहना है  कि यह भविष्य में देश को अधिक सुरक्षित बनाने और देश के युवकों को अवसर प्रदान करने की दिशा में लिया गया फैसला है। सरकार की इस नेक नीयत पर संदेह करने का कोई सवाल नहीं है। लेकिन यदि जिनके लिए सरकार यह योजना लाई है, वे इसे स्वीकार ही नहीं कर रहे और स्वत:स्फूर्त राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हो जाता है और वह उग्र रूप ले लेता है तो इसका संज्ञान लेना ही पड़ेगा। स्वाभाविक रूप से, सरकार संज्ञान लेने के लिए विवश भी हुई है और उसने रक्षा सेवाओं में आरक्षण जैसे कुछ कदम उठाए जाने की तत्काल घोषणाएं भी की हैं। देश के यशस्वी गृह मंत्री अमित शाह ने भी गृह मंत्रालय के अधीन अनेक सेवाओं में सेवानिवृत्त अग्निवारों के लिए आरक्षण के अनेक प्रावधान करने की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसी ही घोषणाएं की हैं।

समस्या के समाधान में सबसे बड़ा अवरोध दृष्टिकोण का है। सरकार की समझ यह है कि राष्ट्रव्यापी आंदोलन रोतों-रात विपक्षी दलों के भड़काने से शुरू हो गया। सरकार ने विपक्ष पर भ्रम फैलाने का भी आरोप लगाया है। विपक्ष स्वाभाविकत: सेना का करियर बनाने के आकांक्षी आंदोलनकारी युवकों के पक्ष में खड़ा हो गया और योजना को वापस लेने या रौल बैक करने की मांग करने लगा। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में ऐसी अवधारणायें किसी के लिए भी सुफलदायक नहीं होती जो पारस्परिक अविश्वास को प्रोत्साहन देती हों और सहकार के विपरीत टकराव को बढ़ावा देती हों। इसका परिणाम राष्ट्र हित के विरुद्ध ही निकलता है। देश की सुरक्षा का गुरु गंभीर दायित्व का निर्वहन करने वाली सेना पर बनाई जाने वाली सैन्य नीतियां अतिसंवेदनशील विषय है। इस पर दुनिया खासतौर से एसे देश जो भारत के मित्र नहीं है, की भी निगाहें लगीं हैं। देश के भीतर और बाहर की भारत विरोधी शक्तियां देश के युवा संतोष का अनुचित लाभ उठाने का प्रयास कर सकतीं हैं। इस आशंका को भी सभी को ध्यान में रखना चाहिए। 

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को एक दूसरे का सम्मान करते हुए इस योजना पर उठे विवाद का सर्वमान्य समाधान करने के लिए मन बनाना चाहिए। चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष किसी के लिए भी इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचना चाहिए। सेना पर राजनीति की छाया न पड़े यह सभी का कर्तव्य है। यह भी सोचने की बात है कि इस विवाद से उत्पन्न आक्रोश का युवा मनों पर कैसा मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा? इन्हीं युवकों के कंधों पर देश का भविष्य है। आशा की जानी चाहिए कि सभी पक्ष हठधर्मिता छोड़कर एकसाथ बैठकर राष्ट्रहित में सौहार्दपूर्ण ढंग से युवा असंतोष का शमन करने के लिए प्रभावी निर्णय लेंगे और राष्ट्र को युवा आक्रोश की आग में जलने से बचाएंगे। राष्ट्र शीघ्र ही देखे कि सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए योजना में आश्वस्तकारी बदलाव कर दिए। बेहतर होगा कि सरकार वार्ता का इंतजार किए बिना ही युवा राष्ट्र के मन की बात अपने जाग्रत विवेक से स्वयं ही समझ ले। सवाल यह भी है कि सरकार से वार्ता कौन कर? ऐसा करने से सत्ता पक्ष विपक्ष को स्थिती का राजनीतिक लाभ लेने से भी रोक पाएगी। First Updated : Sunday, 19 June 2022