नहीं रहे पद्मश्री बाबा योगेन्द्र
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री बाबा योगेन्द्र का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। बाबा योगेन्द्र 98 साल के थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और संस्कार भारती के संस्थापक पद्मश्री बाबा योगेन्द्र का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। बाबा योगेन्द्र 98 साल के थे। उनके निधन की सूचना मिलते ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शोक छा गया। अखिल भारतीय संगठनों समेत फिल्म और सामाजिक कार्यों से जुड़े लोगों की आंखें नम हो गयी। पद्मश्री से सम्मानित बाबा योगेन्द्र के निधन पर दुख जताते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट किया उन्होंने लिखा कि 'संस्कार भारती' के संस्थापक, असंख्य कला साधकों के प्रेरणास्रोत, कला ऋषि, 'पद्मश्री' बाबा योगेंद्र जी का निधन अत्यंत दुःखद है। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व उनके असंख्य प्रशंसकों को यह दुःख सहने की शक्ति दें।
7 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में मशहूर वकील बाबू विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर जन्मे योगेन्द्र के सिर से बचपन में ही मां का साया उठ गया था। उस समय उनकी उम्र महज दो साल थी। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे ये मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी मां ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला-पोषा। वकील बाबू विज बहादुर श्रीवास्तव कांग्रेस और आर्यसमाज से जुड़े थे। जब मोहल्ले में आएसएस की शाखा लगने लगी तो उन्होंने योगेन्द्र को भी वहां जाने के लिए कहा गया। छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ।
योगेन्द्र जी शाम की शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन सुबह उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार की बात है कि योगेन्द्र को तेज बुखार था उस स्थिति में नानाजी ने उन्हें कन्धे पर लादकर डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर पडरौना गये और उनका इलाज कराया। इसका प्रभाव योगेन्द्र पर इतना पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का मन बना लिया। योगेन्द्र ने 1942 में लखनऊ में प्रथम वर्ष ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण लिया।
1945 में वे प्रचारक बने और गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूं, सीतापुर जैसे कई जगहों पर संघ कार्य किया। उनके मन में कलाकार का भी हृदय था। देश-विभाजन के समय उन्होंने एक प्रदर्शनी बनायी, जिसने भी इसे देखा वह भावुक हो उठा। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, मां की पुकार...जैसी प्रदर्शनियों ने लोगों के मन को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शनी को विदेशों में भी काफी प्रशंसा मिली।