SC ने बाघ सैंक्चुअरी और राष्ट्रीय उद्यानों में निर्माण पर लगाई रोक
कोर्ट ने बाघ अभयारणों, राष्ट्रीय उद्यानों और जू में संरक्षित्र क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है। इसके अलावा कोर्ट ने बाघ अभयारणों, राष्ट्रीय उद्यानों में चिड़ियाघर के निर्माण पर भी नाराजगी जताई है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाघ अभयारणों में अवैध निर्माण और इसके बफर क्षेत्र में टाइगर सफारी शुरू करने के मामले पर सुनावई की। कोर्ट ने बाघ अभयारणों, राष्ट्रीय उद्यानों और जू में संरक्षित्र क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है। इसके अलावा कोर्ट ने बाघ अभयारणों, राष्ट्रीय उद्यानों में चिड़ियाघर के निर्माण पर भी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इन स्थानों पर चिड़ियाघर या सफारी बनाने का कोई औचित्य नहीं है। इसे बढ़ावा देना गलत है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ कॉर्बेट नेशनस पार्क में अवैध निर्माण से जुड़े केस पर सुनवाई कर रहे थे। आपको बता दें कि कोर्ट ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को नोटिस भेजा है। कोर्ट ने एनटीसीए ने नोटिस में पूछा कि आखिर राष्ट्रीय उद्यानों में सफारी बनाने की क्या जरूरत है? कोर्ट ने एनटीसीए से 15 जनवरी तक जवाब मांगा है। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने बताया कि बाघ अभयारणों, राष्ट्रीय उद्यानों में निर्माण करने के लिए 6,093 पेड़ों को काटा गया है।
इस पर पीठ ने नाराजगी जताई और पूछा कि किस अधिकारी ने ऐसा किया है? एनटीसीए की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने अदालत से कहा कि बाघ अभयारण्य की जांच करने कोर्ट को बताएंगे। आपको बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय से गठित की गई केंद्रीय अधिकारी प्राप्त समिति ने अपनी रिपोर्ट एनटीसीए से बाघों और जू के अंदर चिड़ियाघर और सफारी का निर्माण करने से जुड़े दिशा-निर्देशों में संसोधन करने या उसे वापस लेने का सुझाव दिया था।
इस समिति का कहना था कि “इन जगहों का उपयोग पर्यटक गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए”। समिति ने आगे कहा कि “सफारी और चिड़ियाघर की स्थापना से वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा देने और लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे मं़ लोगों को शिक्षित करने का महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन मुख्य जगहों में इनके निर्माण से जीवों की जान और पारिस्थितिकी तंत्र को नुसकान होने की आशं