कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी की याचिका पर सुनवाई करने से SC ने किया इनकार
शुक्रवार 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को हर महीने होने वाले मासिक धर्म के दौरान दफ्तर में अवकाश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया।
शुक्रवार 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को हर महीने होने वाले मासिक धर्म के दौरान दफ्तर में अवकाश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि “यह एक नीतिगत मसला है। इसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन सौंपा जाए”।
चीफ जस्टिस ने दी सलाह
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को सलाह दी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का नियम बनाने से महिलाओं को नौकरी पाने में कठिनाई होगी। आपको बता दें कि चीफ जस्टिस ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया लेकिन उसकी दलील पर सहमति जताई।
उन्होंने आगे कहा कि "इस बात की भी आशंका हो सकती है कि अगर ऐसी छुट्टी के लिए नियोक्ता को बाध्य किया गया, तो वह महिलाओं को नौकरी पर रखने से परहेज करे."
वकील शैलेंद्रमणि दायर की थी याचिका
वकील शैलेंद्रमणि त्रिपाठी ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें महिलाओं, छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म के समय होने वाले दर्द में छुट्टी देने की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया था कि यह विषय महिलाओं के शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक आवश्यक मुद्दा है। मासिक धर्म के दौरान ऑफिस में कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को अवकाश दिया जाए। इसके अलावा हर राज्य को ऐसे नियम बनाने का आदेश दिया जाए।
कई देशों में मिलता है अवकाश
महिलाओं, छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म के समय होने वाले दर्द में छुट्टी देने की मांग करने वाली याचिका में अन्य देशों का उदाहरण दिया गया है। याचिका में कहा गया कि चीन, वेल्स, जापान, यूनाइटेड किंगडम, ताइवान, इंडोनेशिया, जाम्बिया, स्पेन और दक्षिण कोरिया में पीरियड्स के समय महिलाओं को होने वाली तकलीफ को समझते हुए छुट्टी दी जाती है।
आपको बता दें कि याचिका में ये भी कहा गया कि सरकारें मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 का अनुपालन करें। बिहार भारत का मात्र एक ऐसा राज्य है जहां वर्ष 1992 से महिलाओं को दो दिन का मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान कर रहा है।