देवेंन्द्र राघव
भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में इतिहास रचा है और यह क्रम निरंतर जारी है। रक्षा, खेल और सहयोग के क्षेत्र में भारत की अपनी अलग पहचान है। हमारा देश इतिहास और संस्कृति की वजह से पूरे विश्व में एक विशेष स्थान रखता है। हमारा यह देश सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य शक्ति आदि में विश्व के बेहतरीन देशों में शामिल है। वैसे तो आजादी के बाद देश की इन स्थितियों में सुधार की पहल हुई लेकिन हालिया समय में इन क्षेत्रों में पहल तेज हुई है। इसके लिए समाज के मानव संसाधन को लगातार बेहतर, मजबूत व सशक्त किया जा रहा है और समाज की आधी आबादी स्त्रियों की है, इस बाबत उनके लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में विभिन्न संस्कृतियों का संगम है। स्त्री हर संस्कृति के केंद्र में होकर भी केंद्र से दूर है।
भारत व समूचा विश्व पितृसत्तात्मक समाज के ढांचे में रहता आया है। यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं, तो उसका आशय यह नहीं है कि अब पितृसत्तात्मक समाज को बदल कर मातृसत्तात्मक समाज में बदल दिया जाए। भारत में पूर्वोत्तर की खांसी व कुछ अन्य जनजातियों में मातृसत्तात्मक समाज की अवधारणा देखी जाती है जहां नारी की प्रधानता है। यदि समाज को स्वस्थ दिशा में आगे बढ़ना है तो समाज मातृ या पितृसत्तात्मक होने के बजाय इनसे निरपेक्ष हो तो एक बेहतर सामाजिक संरचना तैयार होगी और सही मायनों में पुरुष-स्त्री समान रूप से सशक्त होंगे। नारीवाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि इस पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री को हीन दर्जा प्राप्त है। यह समाज ही उसके लिए जीवन जीने के नियम और स्वरूप को गठित करता है। स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व को नकार देता है।
स्त्री के कई स्वरूप हैं वह बेटी भी है, बहन भी, पत्नी भी, मां भी, दुर्गा भी और काली भी है। अब यह अपनी सोच पर निर्भर है कि हम स्त्री को किस रूप में देखते हैं। भारत की यह परंपरा और संस्कृति रही है कि यहां स्त्री को सदैव सम्मान का दर्जा दिया गया है। इस परंपरा को हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साकार कर दिखा दिया कि इस देश में सर्वोच्च पद पर एक महिला भी राष्ट्रपति हो सकती है। वैश्विक रूप में जिस प्रकार नारीवाद को देखा जा रहा था, उसे गढ़ा जा रहा था, उसी क्रम में उसी के साथ भारत में भी महिलाओं की स्थितियों को लेकर लगातार समाज सुधार के व्यापक प्रयास हो रहे थे। लेकिन इसका स्वरूप वैसा नहीं था जैसा वह पश्चिम में रहा है।
भारत में स्त्री को सशक्त करने की दिशा में नारी आंदोलनों का दूसरा दौर जो लगभग भारत में गांधी के आगमन के साथ आरंभ होता है वह 1915 से आरंभ हुआ माना जाता है। यह वो दौर था जब महिलाएं एक आह्वान पर सक्रिय रूप से भागीदारी कर रही थीं। यह वही दौर है जब 1917 में भारतीय महिला संघ की स्थापना हुई। इस समय गांधी व अम्बेडकर जी द्वारा महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में लाने का प्रयास सराहनीय रूप से देखा जाता है। महात्मा गांधी बड़े व्यावहारिक रूप से पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा उन्मूलन व विधवाओं की समस्याओं तथा छुआछूत के उन्मूलन की बात कर रहे थे। दूसरी ओर ऐसे ही कार्य डॉ. अंबेडकर कर रहे थे जहाँ उन्होंने मताधिकार दिलाना, लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना व समानता के अधिकार को दिलाने में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज का भारत महिलाओं के प्रति पूर्णरूपेण सम्मान की भावना रखता है। हमारे देश की महिला जितनी सशक्त होगी उतना ही सशक्त हमारा देश होगा। First Updated : Saturday, 18 March 2023