प्रकृति के साथ छेड़छाड़ मनुष्य पर पड़ रही भारी
बर्फ के बीच तूफान के कारण वहां 2 लाख घरों में बिजली गुल हो गई। अमेरिका में एक घर में भी बिजली गुल होना महत्वपूर्ण माना जाता है। 2 लाख घरों में एक साथ बिजली का कट जाना वहां के लिए त्रासदी से कम नहीं है।
पिछले दो-तीन दशकों से प्रकृति के साथ मनुष्य लगातार छेड़छाड़ करता रहा है। इसके कई स्वरूप हमें जीवन में देखने को मिलते हैं। चाहे वह अत्यधिक घरों का निर्माण हो या धुएं के रूप में छोड़ा जा रहा प्रदूषण, इसका दुष्परिणाम यह है कि प्रकृति अपनी प्रतिक्रिया समय-समय पर देती रही है। पिछले कुछ दिनों में विश्व स्तर पर घटी् घटनाएं इसकी सटीक उदाहरण हैं। चाहे वह अफगानिस्तान में आने वाला भूकंप हो या 2 महीने पहले तुर्की और सीरिया जैसे देश में आया भूकंप हो। इसके कारण हजारों मनुष्यों की जान असमय गई। इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं मनुष्य ही जिम्मेदार है।
2 दिनों पहले अफगानिस्तान में भूकंप का कहर तो कम रहा लेकिन रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर यह भूकंप मैदानी इलाके में आया होता तो तबाही का मंजर कुछ और होता। फिलहाल भूकंप के पीछे वैज्ञानिक कारण कुछ और होते हैं लेकिन प्राकृतिक असंतुलन भी इसका ही एक कारण है। विश्व स्तर पर हो रहे अनियंत्रित निर्माण हो या पहाड़ों और जंगलों को लगातार खत्म किया जाना इसके प्रमुख कारण हैं। हालांकि मनुष्य अपनी सुविधा के लिए ऐसे काम करने से पीछे नहीं हटता और वह इन कामों के बचाव में कई तरह के तर्क भी देता है।
जैसे सड़क निर्माण और अन्य तरह के निर्माण के लिए पहाड़ों का काटा जाना और जंगलों को बर्बाद किए जाने के पीछे मनुष्य विकास को प्रमुख कारण बताता रहा है। लेकिन इसके भावी दुष्परिणाम के बारे में वह समझना नहीं चाहता है। कायदे से कहा जाए तो इसे मनूष्य का तर्क नहीं माना जाएगा। क्योंकि जिस काम से मनुष्य और प्रकृति दोनों कि हानि हो रही हो। अगर इस बात की समझ मनुष्य के अंदर आ गई हो तो ऐसे काम को रोकने में ही भलाई है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसकी वजह से लगातार प्राकृतिक आपदाएं विश्व स्तर पर घट रही हैं। 1 दिन पहले अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में आया भीषण तूफान भी उसका एक उदाहरण है।
बर्फीले तूफान के कारण वहां 2 लाख घरों में बिजली गुल हो गई। अमेरिका में एक घर में भी बिजली गुल होना महत्वपूर्ण माना जाता है। जबकि 2 लाख घरों में एक साथ बिजली का कट जाना वहां के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है। अमेरिका ने भी इसे गंभीरता से लिया है। आम लोगों को पिछले दिनों घटी प्राकृतिक आपदाओं से कुछ सबक लेने की जरूरत है। हमें प्रकृति और उसकी आवश्यकताओं के अनुसार अपने क्रियाकलापों को व्यवस्थित करना होगा।
आने वाले भविष्य में अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हमारे लिए काफी भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम जिम्मेदार होंगे। यह मनुष्य की सिर्फ नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं बनती है बल्कि हमें यह भी सोचने की जरूरत है कि करीब 8 अरब की जनसंख्या वाले विश्व में अगली पीढ़ी को देने के लिए क्या है। अगर हम अगली पीढ़ी को कुछ प्राकृतिक संसाधन देने में असमर्थ हैं तो अगली पीढ़ी हमें लापरवाह के सिवाय कुछ और नहीं कहेगी। फिलहाल हमें समझने की जरूरत है और उस पर अमल करने की जरूरत है। आने वाले दिनों में इसका असर दिखाई देना चाहिए।