गुजरात के मोरबी में सस्पेंशन ब्रिज रविवार रात को टूटने के कारण 134 की अब तक मौत हो चुकी है। मृतकों में महिलाएं और 30 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं। ब्रिज की केबल-जाली थामे रहे 200 लोगों को बचा लिया गया। हैरानी की बात है कि कुछ दिन पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। आम लोगों के लिए खोले जाने के महज 5 दिन बाद ही यह ब्रिज टूट गया। परिणामस्वरूप पुल पर मौजूद करीब 500 लोग नदी में जा गिरे। पैदल यात्रियों के लिए बना यह पुल मोरबी के लखधीर जी इंजीनियरिंग कॉलेज को दरबारगढ़ महल से जोड़ता था। हादसे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं कि जिम्मेदारों की अनदेखी ने एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले ली।
अगर वक्त रहते समस्या का समाधान खोज लिए जाते, तो शायद इतनी बड़ी त्रासदी को टाला जा सकता था। यह पुल पिछले 6 महीने से बंद था। बताया जा रहा है कि इसे जल्दबाजी में चालू किया गया। मोरबी का केबल सस्पेंशन ब्रिज 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था। 143 साल पुराना होने से इसकी कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रुपये की लागत से 6 महीने तक ब्रिज का रेनोवेशन हुआ था। गुजराती नववर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह दोबारा खुला था। गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा एक-दो दिन में ही होने वाली है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनावी फायदा लेने के लिए इसे बिना टेस्टिंग अफरातफरी में शुरू कर दिया गया। नया पुल हो या किसी पुल का रिनोवेशन किया गया हो, इसको शुरू करने से पहले जरूरी होता है कि उसकी मजबूती को विशेषज्ञ जांचते हैं। ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है। मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी। कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उनका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया।
अब बड़ा सवाल ये कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के एमडी जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका? मोरबी का यह ऐतिहासिक पुल शहर की नगर पालिका के अधिकार में था। नगरपालिका ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपी थी। यह इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरणों और एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी है। ओरेवा ने ही देश में सबसे पहले एक साल की वारंटी के साथ एलईडी बल्ब बेचने की शुरुआत की थी। प्रशासन ने पुल को घड़ी-बल्ब बनाने वाली कंपनी के जिम्मे ही छोड़ दिया। नगर पालिका के सीएमओ संदीप सिंह झाला ने माना कि मरम्मत के दौरान कंपनी के कामकाज की निगरानी के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। यानी पूरी तरह से कंपनी के ऊपर छोड़ दिया गया कि वह पुल को कैसे और किससे बनवाती है और कब चालू करती है? ओरेवा कंपनी से अगले 15 साल यानी 2037 तक के लिए पुल की मरम्मत, रखरखाव और ऑपरेशन का समझौता किया गया था। इससे बड़ी और लापरवाही क्या हो सकती है कि पुल पर कंपनी के नाम का बोर्ड तो मौजूद था, लेकिन क्षमता को लेकर दोनों छोरों पर कोई सूचना या चेतावनी नहीं लिखी गई थी।
जानकारी मिली है कि पुल पर जाने के लिए बड़ों से 17 और बच्चों से 12 रुपये का टिकट वसूला जा रहा था। ओरेवा कंपनी ही टिकट के पैसे वसूल रही थी, लेकिन टिकट चेक करने के लिए दोनों सिरों पर खड़े गार्ड ने लोगों की संख्या को चेक नहीं किया। यह ब्रिज पिकनिक स्पॉट के तौर पर मशहूर था। दिवाली बाद के वीकेंड में लोग घूमने निकले हुए थे। ब्रिज 6 महीने बाद खुलने की वजह से भी इसको लेकर लोगों में आकर्षण था। इस वजह से इतने ज्यादा लोग एक साथ पर घूमने पहुंच गए। लोगों को रोका नहीं गया, इसलिए 14 रुपये का टिकट खरीदकर करीब 400 लोग एक साथ ब्रिज पर जा पहुंचे। पैदल पुल और पानी के बीच करीब 100 फीट की दूरी होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। पानी की गहराई भी 15 फीट के करीब बताई गई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुल टूटने के बाद लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरे थे। एनडीआरएफ ने इसके नीचे गाद होने की बात भी कही है। ऐसे में बहुत संभव है कि पुल से गिरने के बाद कई लोग गाद में जा धंसे हों। हालांकि हादसे के 15 से 20 मिनट के अंदर ही 108 की एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। दुर्घटना बड़ी होने की वजह से 108 कमांड सेंटर ने आसपास के सभी जिलों की एंबुलेंस भी बुला ली थीं। करीब आधे घंटे में 300 एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई थीं। घायलों को दुर्घटना स्थल से 7 मिनट की दूरी पर मौजूद जिला अस्पताल ले जाया गया। First Updated : Tuesday, 01 November 2022