'देश में सभी गृहयुद्धों के लिए CJI संजीव खन्ना जिम्मेदार', भाजपा सांसद ने सुप्रीम कोर्ट पर बोला हमला
निशिकांत दुबे ने कहा कि आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. संसद इस देश का कानून बनाती है. आप उस संसद को निर्देश देंगे?...आपने नया कानून कैसे बना दिया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि जब संसद बैठेगी तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी."

भारतीय जनता पार्टी (BJP) सासंद निशिकांत दुबे ने शनिवार को आरोप लगाया कि भारत का सुप्रीम कोर्ट देश में 'धार्मिक युद्धों को भड़काने' के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि अगर सर्वोच्च अदालत को कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए. दुबे ने कहा कि शीर्ष अदालत का एक ही उद्देश्य है, 'मुझे चेहरा दिखाओ, मैं तुम्हें कानून दिखाऊंगा'. सर्वोच्च अदालत अपनी सीमाओं से परे जा रहा है. अगर किसी को हर चीज के लिए सर्वोच्च अदालत जाना है, तो संसद और राज्य विधानसभा को बंद कर देना चाहिए." भाजपा सांसद दुबे ने कहा कि इस देश में हो रहे सभी गृहयुद्धों के लिए सीजेआई संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं.
कानून बनाने का अधिकार संसद को
निशिकांत दुबे ने कहा कि अनुच्छेद 377 था, जिसमें समलैंगिकता को बहुत बड़ा अपराध माना गया था. ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि इस दुनिया में केवल दो लिंग हैं, या तो पुरुष या महिला...चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, बौद्ध हो, जैन हो या सिख हो, सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है. एक सुबह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को खत्म करते हैं. अनुच्छेद 141 कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं, जो फैसले देते हैं, वे निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होते हैं. अनुच्छेद 368 कहता है कि संसद को सभी कानून बनाने का अधिकार है. शीर्ष अदालत को कानून की व्याख्या करने का अधिकार है. शीर्ष अदालत राष्ट्रपति और राज्यपाल से पूछ रही है कि वे बताएं कि उन्हें विधेयकों के संबंध में क्या करना है. जब राम मंदिर या कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी की बात आती है, तो आप (SC) कहते हैं 'हमें कागज दिखाओ'. मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बनी है उनके लिए कहो हो कागज कहां से दिखाओ."
भारत को अराजकता की ओर ले जा रहा है सुप्रीम कोर्ट
दुबे ने कहा कि आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. संसद इस देश का कानून बनाती है. आप उस संसद को निर्देश देंगे?...आपने नया कानून कैसे बना दिया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि जब संसद बैठेगी तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी."
उनकी यह टिप्पणी वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच आई है. गौरतलब है कि 17 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वह किसी भी 'वक्फ-बाय-यूजर' प्रावधान को रद्द नहीं करेगा और बोर्ड में किसी भी गैर-मुस्लिम सदस्य को शामिल नहीं करेगा. यह आश्वासन शीर्ष अदालत द्वारा यह कहे जाने के एक दिन बाद आया है कि वह कानून के उन हिस्सों पर रोक लगाने पर विचार करेगी.
उपराष्ट्रपति ने जताई चिंता
भारत के राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-सीमा निर्धारित करने के हाल के निर्णय ने भी बहस छेड़ दी है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस निर्णय पर असहमति जताई है. इससे पहले 17 अप्रैल को जगदीप धनखड़ ने कहा था कि भारत में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे. उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 न्यायपालिका के लिए लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है. हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर? उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) तहत आपके पास एकमात्र अधिकार है कानून की व्याख्या करना. वहां, पांच जज या उससे अधिक की संवैधानिक पीठ होनी चाहिए. जब अनुच्छेद 145(3) था, तब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी, 8 में से 5, अब 30 में से 5 और विषम. लेकिन इसे भूल जाइए; जिन न्यायाधीशों ने वस्तुतः राष्ट्रपति को परमादेश जारी किया और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया कि यह देश का कानून होगा, वे संविधान की शक्ति को भूल गए हैं.


