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'7 दिन में जवाब दाखिल करें', सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया समय, 5 मई को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को वक्फ संशोधन अधिनियम में जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का समय दिया है. अगली सुनवाई अब 5 मई को रखी गई है. इससे पहले कोर्ट ने एक्ट के कुछ पहलुओं पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि कानून में कुछ सकारात्मक प्रावधान हैं, इसलिए पूरी तरह से रोक लगाना उचित नहीं. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून एक्ट पर सुनवाई हो रही है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून में कुछ सकारात्मक प्रावधान हैं और इसलिए इस पर पूरी तरह रोक लगाना उचित नहीं है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक मामला न्यायिक विचाराधीन है, तब तक मौजूदा स्थिति को बिगाड़ा नहीं जाना चाहिए. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरकार लोगों के प्रति जवाबदेह है और उसे बड़ी संख्या में ज्ञापन प्राप्त हुए हैं, जिनमें भूमि के विशाल हिस्सों - कुछ मामलों में पूरे गांव - पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किए जाने पर चिंता जताई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का समय दिया है. सुनवाई की अगली तारीख 5 मई को रखी गई है.

केंद्र सरकार ने क्या कहा?

मेहता ने कहा कि ऐसे लाखों अनुरोधों के जवाब में यह कानून लाया गया है. गांव दर गांव, अनगिनत भूखंडों को वक्फ घोषित किया जा रहा है." उन्होंने कहा कि इस मामले के सार्वजनिक निहितार्थ हैं. उन्होंने अदालत से किसी भी अंतरिम निर्णय में जल्दबाजी न करने का आग्रह करते हुए कहा कि इस स्तर पर संशोधित अधिनियम पर रोक लगाना बेहद कठोर कदम होगा. उन्होंने प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ प्रारंभिक प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, इस बात पर जोर देते हुए कि इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है और इस पर जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया जा सकता.

क्या बोले बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल?

केंद्र के वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में सेवा करने की अनुमति दी जा सकती है, का जवाब देते हुए भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने बताया कि यह सवाल वैध है लेकिन अभूतपूर्व नहीं है. बीजेपी सांसद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अब यह प्रश्न उठा रहा है, लेकिन पहले भी इस तरह की टिप्पणियां शीर्ष अदालत द्वारा की जा चुकी हैं.

जगदंबिका पाल ने आगे स्पष्ट किया कि सर्वोच्च अदालत ने पिछले फैसलों में स्पष्ट रूप से कहा है कि वक्फ बोर्ड कोई धार्मिक संस्था नहीं है, बल्कि एक कानूनी और वैधानिक प्राधिकरण है, जिसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का काम सौंपा गया है. उन्होंने कहा कि चूंकि यह एक प्रशासनिक संस्था है, न कि धार्मिक संस्था, इसलिए बोर्ड में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों सदस्यों के होने में कोई समस्या नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कोर्ट से अपील

रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने शीर्ष अदालत से वक्फ (संशोधन) अधिनियम मामले से संबंधित कार्यवाही का लाइव-स्ट्रीम करने का अनुरोध किया है. यह अपील इस मामले में जनता और पेशेवर रुचि के मद्देनजर की गई है, जिसके कारण बुधवार को अदालत कक्ष में अत्यधिक भीड़भाड़ हो गई. अपने अनुरोध में ससीबीए ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अदालत कक्ष क्षमता से अधिक भरा हुआ था, जिससे उपस्थित लोगों के बैठने या खड़े होने के लिए भी जगह नहीं बची. भीड़भाड़ के कारण अत्यधिक असुविधा हुई, कई सदस्यों को घुटन और क्लॉस्ट्रोफोबिया के लक्षण महसूस हुए. कथित तौर पर स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि सुनवाई के दौरान दो अधिवक्ता बेहोश हो गए. बार एसोसिएशन ने तर्क दिया कि सुनवाई का सीधा प्रसारण करने से न्यायालय कक्ष के अंदर सुरक्षा या शिष्टाचार से समझौता किए बिना कार्यवाही तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित होगी.

वक्फ को खत्म करने पर बड़े परिणाम हो सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर गंभीर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' की प्रथा को रद्द करने के उसके कदम पर, एक सिद्धांत जो पारंपरिक रूप से लंबे समय से चले आ रहे धार्मिक उपयोग के आधार पर संपत्तियों को वक्फ के रूप में मान्यता देता है. सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आगाह किया कि इस प्रथा को खत्म करने के बड़े परिणाम हो सकते हैं.

बुधवार को शुरू हुई सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

आपको बता दें कि पीठ में जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन भी शामिल थे. पीठ ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के समर्थन में केंद्र द्वारा दी गई दलील पर भी कड़ी आपत्ति जताई. सरकार ने एक उदाहरण देकर इस कदम को उचित ठहराने का प्रयास किया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि यदि केवल मुसलमान ही वक्फ निकायों में काम कर सकते हैं, तो शायद केवल मुस्लिम न्यायाधीशों को ही वक्फ से संबंधित मामलों की सुनवाई करनी चाहिए-एक तुलना जिसे अदालत ने समस्याग्रस्त पाया.

मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने तीखी नोकझोंक में पूछा कि क्या आप सुझाव दे रहे हैं कि मुसलमानों सहित अल्पसंख्यकों को भी हिंदू धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन करने वाले बोर्डों में नियुक्त किया जाना चाहिए? यदि ऐसा है, तो कृपया स्थिति स्पष्ट रूप से बताएं.

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17 April 2025, 02:53 PM IST

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