केरल की रहने वाली एक मुस्लिम महिला ने याचिका दाखिल की थी. जिसमें उसका कहना था कि मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद नास्तिक व्यक्ति पर क्या शरीयत की जगह सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं? अब इस सवाल पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई है. दरअसल केरल के मुस्लिम परिवार की साफिया पीएम ने एक याचिका दाखिल की थी जिस पर सोमवार को अदालत ने सुनवाई की. महिला का मानना है कि वह इस्लाम नहीं मानती है इसलिए विरासत के संबंध में उसका मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ के बजाय भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में जाना चाहिए.
बता दें कि साफिया ने बताया कि शरीयत के प्रावधान के चलते उसके पिता चाह कर भी उसे अपनी 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते हैं. बाकी संपत्ति पर भविष्य में पिता के भाइयों के परिवार का कब्ज़ा हो जाने की आशंका है. याचिकाकर्ता ने अदालत को दलिल दी है कि याचिका डालने वाली अजीब स्थिति में है. वह और उसके पिता नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के चलते उन पर शरीयत कानून लागू होता है. याचिकाकर्ता का भाई डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी के चलते असहाय हो चुका है. वह उसकी देखभाल करती है. शरीयत कानून में बेटी को बेटे से आधी संपत्ति मिलती है. ऐसे में पिता बेटी को 1 तिहाई संपत्ति ही दे सकते हैं, बाकी 2 तिहाई उन्हें बेटे को देनी होगी. अगर भविष्य में भाई की मृत्यु हो जाएगी तो भाई के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का भी दावा बन जाएगा.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बैंच ने लंबी चर्चा के बाद इसे महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किया है. बैंच ने भारत के अटॉर्नी जनरल से एमाइकस के लिए एक वकील को नामित करने की गुजारिश की है, जो अदालत की इस मामले में मदद कर सके. बेंच ने मामले की अगली सुनवाई जुलाई 2024 के दूसरे हफ्ते में रखी है.
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही बैंच ने याचिकाकर्ता के प्रस्ताव पर आपत्ति व्यक्त की क्योंकि याचिका में तर्क था कि एक गैर-आस्तिक व्यक्ति शरीयत द्वारा शासित नहीं होगा. CJI चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत पद्मनाभन से कहा कि जिस वक्त आप मुस्लिम के रूप में पैदा होते हैं, आप व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित होते हैं. आपके अधिकार या हक आस्तिक या गैर-आस्तिक होने से नियंत्रित नहीं होते हैं. इसके अलावा बेंच ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत किसी व्यक्ति पर पर्सनल लॉ लागू ना होने की घोषणा कैसे कर सकता है? First Updated : Monday, 29 April 2024