डा. मनमोहन सिंह के बचपन का दर्द: पाकिस्तान के गाह में दादा की हत्या की याद
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का बचपन अत्यधिक संघर्शपूर्ण था. गाह पाकिस्तान में अपने दादा की हत्या की दर्दनाक यादें उनके दिल में हमेशा रहीं. कम संसाधनों के बावजूद, उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल की और कैम्ब्रिज जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई की. उनका जीवन मीठा था वह हरेक प्रेम प्यार से मिलते थे. उनके परिवार की बात करें तो उनका परिवारिक इतिहास गाह से गहरे से जुड़ा हुआ था. हालांकि, गाह लौटने का उनका कोई इरादा नहीं था. क्योंकि उस स्थान से जुड़ी दुखद यादें उनके लिए असहनीय थीं
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पुत्री दमन सिंह ने अपनी पुस्तक स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण में अपने पिता के प्रारंभिक जीवन के बारे में अंतरंग विवरण साझा किए हैं. गाह (जो अब पाकिस्तान में है) में अपने जन्मस्थान की यात्रा करने में उनकी अनिच्छा के पीछे के व्यक्तिगत कारणों का खुलासा किया है. जब उनकी बहन किकी ने उनसे पूछा कि क्या वह गाह लौटना चाहते हैं, तो सिंह का जवाब स्पष्ट था. "नहीं, वास्तव में नहीं। यहीं पर मेरे दादा की हत्या हुई थी." मनमोहन सिंह , जो विभाजन के दौरान भारत आने से पहले गाह गांव में पले-बढ़े थे. अपने शुरुआती जीवन से गहरा भावनात्मक जुड़ाव था, जो हिंसा से प्रभावित था। गाह में अपने दादा की दुखद मौत एक दर्दनाक याद थी जिसे वह अपने साथ लेकर गए थे.
चॉकलेट पर गुजारा करना पड़ता था
दमन सिंह ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन के दौरान अपने पिता के लचीलेपन पर भी प्रकाश डाला, जहां वित्तीय संघर्ष एक निरंतर चुनौती थी. छात्रवृत्ति प्राप्त करने के बावजूद, सिंह को अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, मितव्ययी जीवन जीने, सब्सिडी वाले भोजन पर निर्भर रहना पड़ा. और कभी-कभी, जब घर से पैसे मिलने में देरी होती थी, तो उन्हें कैडबरी की छह पेंस की चॉकलेट पर गुजारा करना पड़ता था।
विलासिता से परहेज करते थे मनमोहन
दमन सिंह के अनुसार, उनके पिता के लिए "पैसा ही एकमात्र वास्तविक समस्या थी. उनकी ट्यूशन और रहने का खर्च लगभग 600 पाउंड प्रति वर्ष था, जबकि पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति से केवल 160 पाउंड मिलते थे. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, सिंह किफ़ायती तरीके से रहते थे. अक्सर विश्वविद्यालय के भोजन कक्ष में सब्सिडी वाले भोजन पर निर्भर रहते थे और बाहर खाना खाने या बीयर या वाइन पीने जैसी विलासिता से परहेज करते थे.
कभी कभी खाना भी छोड़ देते थे
उन्होंने लिखा कि बाकी के लिए उन्हें अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था. मनमोहन बहुत ही मितव्ययिता से जीवन जीने के प्रति सावधान थे. भोजन कक्ष में सब्सिडी वाला भोजन दो शिलिंग छह पेंस में अपेक्षाकृत सस्ता था. वह कभी बाहर खाना नहीं खाते थे और शायद ही कभी बीयर या वाइन पीते थे."ऐसे समय में जब घर से पैसे आने में देरी होती थी तो वह खाना छोड़ देते थे या कैडबरी की छः पेंस की चॉकलेट खाकर काम चला लेते थे.
जीवन भर कभी पैसे नहीं लिए उधार
किताब में कहा गया है कि जब ऐसा हुआ, तो उन्होंने भोजन छोड़ दिया या कैडबरी की छह पेंस की चॉकलेट खाकर गुजारा किया. उन्होंने जीवन भर कभी पैसे उधार नहीं लिए, लेकिन यह वह समय था जब वे ऐसा करने के सबसे करीब थे. एकमात्र व्यक्ति जिसकी ओर वे मुड़ने के बारे में सोच सकते थे. वह थे मदन (करीबी दोस्त मदन लाल सूदन)," मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत में हुआ था सिंह की यात्रा एक अपेक्षाकृत कम परंपरागत स्थान से शुरू हुई. पाकिस्तान के छोटे से गांव गाह से, जो इस्लामाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर चकवाल जिले में स्थित है.
जब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री चुने...
26 सितंबर, 1932 को गाह में जन्मे सिंह के शुरुआती साल भारत के विभाजन की उथल-पुथल से प्रभावित थे. सिंह परिवार उस समय विस्थापित हुए लाखों लोगों में से एक था, और वे भारत आ गए. अंततः अमृतसर में बस गए. गाह, एक ऐसा गांव जो कभी राजनीति की दुनिया से दूर लगता था. जब सिंह भारत के प्रधानमंत्री चुने गए तो उनके असाधारण जीवन का प्रतीक बन गया, जिस गांव में सिंह ने अपना बचपन बिताया, उसे बाद में भारत सरकार ने एक आदर्श गांव घोषित किया. और उनके सम्मान में कई विकासात्मक पहल शुरू कीं. इनमें वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाएं शामिल थीं, जिनमें सौर हीटर, कुकर और प्रकाश व्यवस्था शामिल थीं. इस कारण उनका गांव मार्डन गांव बन गया.
प्यार से "मोहना" कहते थे दोस्त
गाह में सिंह के स्कूल में अभी भी उनका एडमिशन रजिस्टर है, जिसमें उनके दो रिपोर्ट कार्ड सुरक्षित हैं. रजिस्टर में उनकी जन्मतिथि 4 फरवरी, 1932 दर्ज है. जबकि स्थानीय लोग याद करते हैं कि कैसे सिंह, जिन्हें उनके दोस्त प्यार से "मोहना" कहते थे. अपने शुरुआती साल यहीं बिताए. इससे पहले कि उनकी बौद्धिक यात्रा उन्हें कैम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड ले आई. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाले और आर्थिक सुधारों का श्रेय पाने वाले मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह 2004 से 2014 के बीच 10 वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है।