सोमवार को संसद में नहीं आएगा 'One Nation, One Election' बिल, इस वजह से सरकार ने पीछे खींचे कदम
सरकार ने बिल को पेश करने की पूरी तैयारी कर ली थी. लेकिन अंतिम मौके पर विधेयक को 16 दिसंबर की कार्यसूची से हटा दिया गया है. दरअसल, सोमवार और मंगलवार को राज्यसभा में संविधान पर चर्चा होनी है. 20 दिसंबर को संसद का शीतकालीन सत्र खत्म हो रहा है.
लोकसभा में सोमवार यानी 16 दिसंबर को वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पेश नहीं होगा. संशोधित कार्यसूची से इसे हटा दिया गया है. इससे पहले शुक्रवार को जारी की गई कार्यसूची में कहा गया था कि सोमवार को लोकसभा में रखा जाएगा. लेकिन अब यह बिल सोमवार को लोकसभा में नहीं आएगा. हालांकि, अभी कारण स्पष्ट नहीं कि सरकार ने सोमवार को बिल न लाने का फैसला क्यों किया और यह बिल अब किस दिन लाया जाएगा? संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को खत्म हो रहा है.
माना जा रहा है कि सोमवार और मंगलवार को राज्यसभा में संविधान पर चर्चा होनी है, जहां विपक्ष सभापति के खिलाफ आक्रामक है और अविश्वास प्रस्ताव लाया है. सरकार और बीजेपी भी कांग्रेस और विपक्ष पर आक्रामक होगी तो माना जा रहा है कि उस चर्चा से ध्यान ना भटकाने के लिए बिल को सोमवार की कार्यसूची से हटाया गया है. साथ ही गृह मंत्री अमित शाह भी सोमवार को तीन बजे तक रायपुर में हैं.
मंगलवार-बुधवार को पेश हो सकता है बिल
संभावना है कि इसे मंगलवार या बुधवार को लोकसभा में पेश किया जा सकता है. संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त होगा. मोदी कैबिनेट ने 12 दिसंबर को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल को मंजूरी दी थी. विधेयक में 2034 के बाद एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव है. सरकार ने बिल का मसौदा लोकसभा सदस्यों को भेज दिया है.
संसद में दो बिल पेश करेगी मोदी सरकार
लोकसभा में ‘द कंस्टीटूशन (129वां संशोधन) और द यूनियन टेरिटरी (संशोधन 1) बिल को भी पेश किया जाएगा. बिल के जरिए संविधान में 129वां संशोधन और दिल्ली व जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश के कानून में बदलाव किया जाएगा. सरकार इससे जुड़े बिल को संसद में पेश करके संविधान के चार अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव करेगी.
बिल के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 82 ए लाया जाएगा जिसके तहत लोक सभा के साथ सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने का प्रावधान होगा. अनुच्छेद 83 में संशोधन लोकसभा के कार्यकाल के बारे में है. अनुच्छेद 172 में संशोधन राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल के लिए है. और अनुच्छेद 327 का संशोधन राज्य विधानसभाओं के चुनाव के बारे में संसद के अधिकार के बारे में है. यूटी लॉ संशोधन बिल 2024 में यही प्रावधान दिल्ली और जम्मू-कश्मीर यूटी के लिए किए जाएंगे.
यह राह आसान नहीं है
एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि अगर संसद में यह विधेयक कानून भी बन जाए तो इसे लागू होने में कम से कम 10 साल लग जाएंगे. सरकार अब इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी में है जिसे हरी झंडी मिल सकती है. लेकिन इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा ये हो सकता है कि सरकार को इस विधेयक को संसद में पारित करवाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत जुटाना होगा और इसके अलावा, कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इसे मंजूरी दिलानी होगी. मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन सकेगा और लागू हो सकेगा. ऐसे में इसमें काफी वक्त लगेगा.
इतना ही नहीं, इसके एक बार कानून बनने के बाद भी, इसे लागू करने के लिए कई चरणों में काम करना होगा. जैसे चुनाव आयोग को अधिक संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी, जिनके निर्माण और परीक्षण में लंबा समय लगेगा, तो इस तरह से इसे लेकर लंबा इंतजार करना होगा.