131 साल पहले भी कन्याकुमारी में ध्यान पर बैठे थे एक नरेंद्र

History Of Vivekananda Rock Memorial: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी में ध्यान कर रहे हैं. ठीक 131 साल पहले नरेंद्र वहां ध्यान करने के बाद शिकागो में विश्व धर्म संसद में प्रतिष्ठित भाषण देने के लिए निकले थे. दुनिया उन्हें आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द के नाम से जानती है

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History Of Vivekananda Rock Memorial: ठीक 131 साल पहले, 31 मई, 1893 में भी कन्याकुमारी सुर्खियों में था, उस दौरान भी इसकी चर्चा की वजह नरेंद्र नाम के ही व्यक्ति थे. प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर से इस इतिहास को दोहराने जा रहे हैं. दरअसल, हम जिनकी बात कर रहे हैं वो नरेंद्र भारत की मुख्य भूमि के सबसे दक्षिणी छोर कन्याकुमारी में एक चट्टान पर और ध्यान करने के लिए तीन दिनों तक उस पर बैठे रहे. वहां उन्हें आधुनिक भारत का दर्शन हुआ.

स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल

इस स्मारक का नाम स्वामी विवेकानन्द के नाम पर रखा गया है, जिनका जन्म नरेंद्रनाथ दत्त के नाम पर हुआ था और उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस उन्हें नरेन कहा करते थे, वो अपने भारत दौरे के बाद ध्यान करने के लिए यहां पर बैठे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कन्याकुमारी में ध्यान करने के लिए बैठै हैं. कन्याकुमारी में ही विवेकानन्द को भी आधुनिक भारत का दर्शन मिला था. 

तारीख और जगह भी एक

यह वह तारीख और स्थान है जो अस्वाभाविक रूप से संयोग है. शिकागो की विवेकानन्द वेदांत सोसाइटी की वेबसाइट के अनुसार, कन्याकुमारी में ध्यान करने के बाद, स्वामी विवेकानन्द 31 मई, 1893 को बम्बई (अब मुम्बई) से एसएस प्रायद्वीपीय जहाज पर सवार होकर अमेरिका के लिए रवाना हुए.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान उन्होंने भगवा पगड़ी और बागा पहना था. शिकागो एडवोकेट में उनके ऐतिहासिक भाषण के बाद एक दूसरी रिपोर्ट में कहा गया: "अंग्रेजी का उनका ज्ञान ऐसा है मानो यह उनकी मातृभाषा हो." 

हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व

स्वामी विवेकानन्द को 1892 में भारत यात्रा के दौरान विश्व धर्म संसद के बारे में पता चला. युवा भिक्षु के प्राचीन धर्मग्रंथों के ज्ञान और दूरदर्शी दृष्टिकोण से मंत्रमुग्ध होकर लोगों ने उनसे दुनिया के धार्मिक नेताओं की सबसे बड़ी सभा में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने को कहा. अप्रैल 1893 में ही स्वामी विवेकानन्द ने धर्म संसद में भाग लेने के लिए अमेरिका जाने की अपनी योजना बनाई. वह बेहद कम बजट में अमेरिका की यात्रा कर रहे थे. 

शिकागो की यात्रा

31 मई, 1893 को बॉम्बे में एसएस पेनिनसुलर में सवार हुए और 25 जुलाई को वैंकूवर पहुंचे. वहां से उन्होंने ट्रेन ली और 30 जुलाई को शिकागो पहुंचे. शिकागो में रहना मुश्किल होने पर उन्होंने बोस्टन की यात्रा की और कुछ अच्छे लोगों की मदद से बाद में धर्म संसद के लिए शिकागो लौट आए.

10 सितंबर को, धर्म संसद के उद्घाटन सत्र से एक दिन पहले, स्वामी विवेकानन्द ने भूखे और थके हुए थे तो खाना मांगा. शिकागो वेदांत पोर्टल के अनुसार, लोगों ने उन्हें खाना देने से मना कर दिया, और दरवाजे बंद कर दिए गए. जैसे ही वह खुद को भाग्य के हवाले कर फुटपाथ पर बैठे, सामने वाले घर के दरवाजे खुल गए और एक महिला, जिनका नाम जॉर्ज डब्ल्यू हेल था वो विवेकानंद के पास आईं और उन्हें अपने घर में ले गईं. 

अपनी बारी का करते रहे इंतजार

धर्म संसद 11 सितंबर, 1893 की सुबह खोली गई, जिसमें वहां प्रतिनिधित्व करने वाले 10 धर्मों को समर्पित घंटी के 10 स्ट्रोक थे. हॉल में 4,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. कार्यक्रम की शुरुआत प्रतिनिधियों के स्वागत भाषण के साथ हुई और स्वामी विवेकानन्द इसमें बैठे रहे. 

वेकानन्द सोसायटी ऑफ शिकागो की वेबसाइट के मुताबिक, "स्वामी विवेकानन्द बैठे रहे, ध्यानमग्न रहे, और प्रार्थना करते रहे, अपनी बारी आने दी. दोपहर के सत्र तक उनकी बारी नहीं आई, और चार अन्य प्रतिनिधियों द्वारा अपने तैयार किए गए कागजात पढ़ने के बाद वो संबोधित करने के लिए उठे.''

बहनों और भाइयों कहकर संबोधन की शुरुआत

स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा "अमेरिका की बहनों और भाइयों,'' इसके बाद उन्हें रुकना पड़ा क्योंकि तालियों की गड़गड़ाहट ने उनका स्वागत किया गया, जो कि कई मिनटों तक जारी रही. अमेरिकियों को इस बात की हैरानी हुई कि एक भगवा वस्त्रधारी भिक्षु उन्हें बहनों और भाइयों के रूप में संबोधित करेगा और उन्हें अपना बना लेगा. 

उन्होंने स्वागत भाषण के जवाब में कहा,  "मैं आपको दुनिया के सबसे प्राचीन भिक्षुओं के समूह की ओर से धन्यवाद देता हूं, मैं आपको धर्मों की जननी की ओर से धन्यवाद देता हूं, और मैं आपको सभी वर्गों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदू लोगों की ओर से धन्यवाद देता हूं."

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल तक कैसे पहुंचे?

कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरियल मुख्य भूमि से लगभग 500 मीटर की दूरी पर समुद्र में एक चट्टान पर बना है. तमिलनाडु पर्यटन वेबसाइट के मुताबिक, "सुखदायक समुद्री हवा और लहरों के बीच एक चट्टान है, जो बहुत रहस्यमय और सुंदर है. यह भारत के महानतम भिक्षु को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने इस भूमि की आध्यात्मिक प्रतिभा को दुनिया भर में पहुंचाया. 

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल उतना ही कालातीत है जितने की खुद ऋषि." कन्याकुमारी समुद्र तट पर फेरी प्वाइंट से एक नौका पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को विवेकानंद रॉक मेमोरियल तक पहुंचाती है. यहीं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार (30 मई) शाम से 45 घंटे तक ध्यान शुरू हो गया है. स्वामी विवेकानंद के प्रबल अनुयायी, पीएम मोदी का यहां ध्यान करना प्रतीकात्मक है क्योंकि यहीं पर नरेंद्र को आधुनिक भारत का दर्शन मिला था.

First Updated : Friday, 31 May 2024