अकेली महिला योद्धा बन गई मुगलों की तबाही का कारण, माई भागो की अमर गाथा
मीरा भागो, जिन्हें माई भागो कहा जाता है, सिख इतिहास की एक महान वीरांगना थीं. उन्होंने कई युद्धों में अद्भुत साहस और वीरता दिखाई. मुक्तसर की लड़ाई में उन्होंने 40 सिखों के साथ 10 हजार मुगलों का सामना किया और गुरु गोबिंद सिंह की रक्षा की.

भारत वीरों की भूमि रही है, जहां पुरुषों के साथ-साथ कई महिलाओं ने भी अपने साहस और शौर्य से इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ी है. ऐसी ही एक महान वीरांगना थीं माई भागो जिन्हें मीरा भागो के नाम से भी जाना जाता है. उनका नाम सिख इतिहास में वीरता, निष्ठा और आत्मबल की प्रतीक बन चुका है.
माई भागो का जन्म 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पंजाब के माजहा क्षेत्र में हुआ था. वह सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी, की कट्टर अनुयायी थीं. उन्होंने बचपन से ही शस्त्र विद्या और घुड़सवारी में रुचि ली और युद्धकला में निपुणता हासिल की. उस समय भारत मुगलों के शासन के अधीन था और औरंगजेब ने शरिया कानून लागू कर अत्याचारों का दौर शुरू कर दिया था. सिखों की बढ़ती ताकत और समानता के सिद्धांतों से वह भयभीत था. उसने आनंदपुर साहिब को घेर लिया और गुरु गोबिंद सिंह को धोखे से वहां से निकलने पर मजबूर कर दिया.
माई भागो की गाथा
जब माई भागो को यह पता चला कि कुछ सिख योद्धाओं ने युद्ध से पीछे हटते हुए गुरु गोबिंद सिंह का साथ छोड़ दिया है, तो उन्होंने न केवल उन्हें लताड़ा, बल्कि 40 सिखों को फिर से संगठित कर युद्ध के लिए प्रेरित किया. इन वीरों के साथ माई भागो मुक्तसर झील की ओर बढ़ीं, जहाँ उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह का पीछा कर रही करीब 10,000 मुगलों की सेना को रोका.
जिसने बदला इतिहास का रुख
इस युद्ध में माई भागो ने अद्भुत साहस और वीरता दिखाई. उन्होंने अपने 40 सिखों के साथ मिलकर मुगलों को ऐसा जोरदार जवाब दिया कि वे घबरा गए और पीछे हट गए. इस लड़ाई में अधिकांश सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन गुरु गोबिंद सिंह को सुरक्षित निकलने का समय मिल गया.
एक वीरांगना और 10 हजार दुश्मन
गुरु गोबिंद सिंह माई भागो की वीरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपना निजी अंगरक्षक बना लिया. माई भागो ने न केवल एक योद्धा के रूप में बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में इतिहास में अपना स्थान सुनिश्चित किया. आज भी माई भागो को सिख इतिहास की महानतम वीरांगनाओं में गिना जाता है. उनका साहस, दृढ़ता और समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है.


