इराक का तानाशाह सद्दाम हुसैन एक ऐसा व्यक्ति था जिसके अत्याचार के कारण इराक को शर्मसार होना पड़ा. सद्दाम हुसैन ने महज 20 साल की उम्र में बाथ पार्टी की सदस्यता और फिर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता गया. एक दिन वह देश का राष्ट्रपति तक बन गया. अपने दुश्मनों का सिर किसी भी कीमत पर कुचलने के लिए कुख्यात सद्दाम के अत्याचार जब हद से बढ़ और अंकल सैम यानी अमेरिका की नीतियों के आड़े आने लगे तो वह अमेरिका का दुश्मन बन गया. दोनों के बीच दुश्मनी इतनी बढ़ी कि अंकल सैम ने सद्दाम को खोज निकाला और फांसी के फंदे पर लटका दिया. सद्दाम को पकड़ने के करीब तीन साल बाद बगदाद में आज के ही दिन 30 दिसंबर 2006 को फांसी दी गई. आइए आज हम आपको सद्दाम हुसैन की कहानी सुनाते हैं.
सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल 1937 को इराक की राजधानी बगदाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल ओजा गांव में हुआ था. इसका पूरा नाम सद्दाम हुसैन अब्द अल-माजिद अल-तिक्रिती था. सद्दाम के मजदूर पिता उसके जन्म के पहले ही परिवार का साथ छोड़कर कहीं चले गए थे. यह भी कहा जाता है कि उनकी मौत गई थी. इसलिए परिवार की माली हालत कुछ खास ठीक नहीं थी. ऐसे में सद्दाम की मां बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी. गर्भपात कराने का भी ख्याल आया, लेकिन यह हो नहीं सका.
सद्दाम जन्म के बाद तीन साल तक ननिहाल में रहा. इस बीच उसके एक भाई की बहुत कम उम्र में कैंसर से मौत हो गई. किसी तरह सद्दाम का पालन-पोषण हुआ और कॉलेज तक पहुंच गया. यह वो दौर था जब इराक में अंग्रेजों की कठपुतली बन चुके राजतंत्र को हटाने के लिए आंदोलन चल रहा था. बचपन से काफी कुछ देख चुके सद्दाम ने भी विद्रोह की राह पकड़ ली और 1956 में बाथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो. इसके बाद ऊंचे सपने देखने वाले सद्दाम को अपनी मंजिल की राह मिल गई.
इराक में 1962 में भीषण विद्रोह हुआ. राजशाही को हटाकर ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने खुद सत्ता हथिया ली. सद्दाम भी इस विद्रोह का हिस्सा था और सत्ता विद्रोहियों के हाथ में आने पर निरंकुश हो गया. इसी का नतीजा था कि 1968 में सद्दाम ने जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर फिर से सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर दिया. सत्ता जनरल बक्र के हाथ में आ गई, जिसे उन्होंने 11 साल संभाला पर सद्दाम का तो कुछ और ही प्लान था. मौका देखकर सद्दाम ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए बक्र से इस्तीफा दिलवा दिया और 1979 में खुद सत्ता संभाल ली. सद्दाम ने 42 साल की उम्र में खुद को इराक का राष्ट्रपति घोषित कर दिया. इसके बाद तो उस पर कोई अंकुश ही नहीं रह गया.
सद्दाम हुसैन के राष्ट्रपति बनने के साथ ही इराक तरक्की के रास्ते पर दौड़ पड़ा. चूंकि सद्दाम खुद विद्रोह से उपजा था, इसलिए अपने खिलाफ विद्रोहों के खिलाफ वह काफी सख्त रुख अपनाता था. जो भी सद्दाम के खिलाफ सिर उठाता था, उसका सिर कुचल दिया जाता था. इसके लिए वह दो तरीके अपनाता था. या तो विद्रोही हमेशा के लिए लापता हो जाता था या फिर उसकी लाश मिलती थी. कहा यह भी जाता है कि सद्दाम ने अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले 66 लोगों को देशद्रोही बताकर मौत के घाट उतार दिया. इसके चलते सद्दाम धीरे-धीरे तानाशाह के रूप में प्रसिद्ध होने लगा.
सद्दाम निरंकुश तानाशाह था ही, पड़ोसियों पर भी उसकी नजर थी. यह वो दौर था जब अंकल सैम की सद्दाम हुसैन के साथ काफी नजदीकी और मित्रता थी और ईरान में इस्लामिक क्रांति चल रही थी. सद्दाम ने इसका फायदा उठाने की ठानी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की मदद से ईरान पर हमला बोल दिया. आंतरिक हालात का सामना कर रहे ईरान ने मुंहतोड़ जवाब दिया और सद्दाम की एक नहीं चली. ऐसे में आठ साल तक युद्ध चलता रहा. इससे दोनों देशों की आर्थिक स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि आखिर में 1988 में युद्ध समाप्त कर दिया.
ईरान से युद्ध के बाद बिगड़ी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए सद्दाम को पैसों की जरूरत थी, जबकि वह कुवैत का कर्जदार भी था. कुवैत ने तगादा शुरू किया तो सद्दाम ने नई चाल चली. उसने कुवैत और यूनाइटेड अरब अमीरात पर आरोप मढ़ दिया कि वे तेल का ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं इसलिए तेल की कीमतें गिरती जा रही हैं. इससे इराक को भारी नुकसान हो रहा है. उसने कुवैत को तेल उत्पादन घटाने की चेतावनी दी. नहीं मानने पर सद्दाम ने अगस्त 1990 में हमला कर कुछ ही घंटों में कुवैत पर कब्जा कर लिया.
अंकल सैम को सद्दाम की यह हरकत नागवार गुजरी, क्योंकि कुवैत भी उनका ही चेला था. ऐसे में अमेरिका ने तुरंत कुवैत से हटने के लिए कहा तो सद्दाम ने उसे इराक का नया प्रांत घोषित कर दिया. हद तो यह कि सद्दाम ने सऊदी अरब की सीमा पर भी अपनी सेना तैनाती का आदेश दे दिया. बस, अमेरिका को बहाना मिल गया और कुवैत को आजाद कराने के लिए 27 और देशों को इकट्ठा लिया. सबने मिलकर 1991 में कुवैत से सद्दाम का कब्जा हटा दिया.
कुवैत पर हमले के बाद सद्दाम पर दुनिया के अधिकतर देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए. इससे इराक की आर्थिक स्थिति और बिगड़ने लगी. उधर अमेरिका में सत्ता बदली और वर्ष 2000 में जॉर्ज बुश प्रेसीडेंट बने तो अलग ही राग अलापना शुरू कर दिया. इराक को अमेरिका ने पूरी दुनिया के लिए खतरा कहना शुरू कर दिया. इस पर इराक ने अपने कई घातक हथियार नष्ट कर दिए. फिर भी जॉर्ज बुश नहीं माने और 2003 में इराक पर हमला कर दिया. लगभग 20 दिन लड़ाई चली. इस दौरान इराक और इराक की सरकार तहस-नहस हो गई. हालांकि, जॉर्ज बुश की सेना सद्दाम को नहीं पकड़ पाई.
सद्दाम को पकड़ पाने में नाकाम अमेरिकी सेना ने इराक में पूरी ताकत झोंक दी. आखिरकार 13 दिसंबर 2003 को अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने उसे एक सुरंग से गिरफ्तार किया. इसके बाद अदालती कार्रवाई शुरू हुई. इसमें सद्दाम को दुजेल नरसंहार मामले में दोषी करार दिया गया. दअरसल, आठ जुलाई 1982 को इराक के दुजेल कस्बे में सद्दाम की हत्या की साजिश के आरोप में 148 शियाओं को मौत के घाट उतार दिया गया था. इसी मामले में 30 दिसंबर 2006 को 69 साल की उम्र में सद्दाम को फंदे पर लटका दिया गया. First Updated : Saturday, 30 December 2023