BNSS 2023: दया याचिका पर राष्ट्रपति ही करेंगे आखिरी फैसला, 'सजा नहीं न्याय देने के लिए लाए गए हैं ये बिल'
BNSS 2023: मानसून सत्र में गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ बिल पेश किए थे, जिनको लेकर उन्होने कहा था कि 'यह बिल सजा नहीं न्याय देने के लिए लाए गए हैं.'
हाइलाइट
- राष्ट्रपति सज़ा पाए शख्स को क्षमा कर सकते हैं
- लेकिन क्षमा करने के पीछे कारण बताने होंगे
President's Mercy Plea: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल लोकसभा में पास किया गया है. इस बिल में राष्ट्रपति को बहुत सी पॉवर दी गई हैं. बिल के मुताबिक, अगर कोई अपराधी दया याचिका लेकर राष्ट्रपति के पास जाता है, तो उनके पास ये अधिकार होगा कि वो उस अपराधी को क्षमा कर सकते हैं. इसके साथ ही देश की सबसे बड़ी अदालत भी राष्ट्रपति के फैसलों की सुनवाई नहीं करेगी.
इस बिल के आने से पहले तक मौत की सज़ा पाया हुआ कोई भी अपराधी राष्ट्रपति के सामने क्षमा याचना देता था, तो उसकी सज़ा कम करवे के बाद भी अदालतों को इसके पीछे की वजह बतानी होती थी. लेकिन इस बिल के आने के बाद राष्ट्रपति किसी भी ऐसे शख्स की सज़ा कम कर सकते हैं जिसको मौत की सज़ा मिली हो. इसको कम करने के बाद अब किसी भी अदालत में किसी भी तरह के कारण नहीं बताने होंगे.
क्या है नया कानून?
बीएनएसएस बिल के सेक्शन 473 के अनुसार, 'संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के हुक्म के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जा सकती है क्योंकि उनका फैसला ही आखिरी फैसला होगा. इसके साथ ही राष्ट्रपति के फैसले पर किसी भी अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है. बीएनएसएस बिल से कैपिटल पनिशमेंट यानी मौत की सज़ा पर गहरा असर पड़ सकता है.
पुराने नियमों में क्या था?
पुराने बिल के मुताबिक, राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती दी सकती थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में इस बात का ज़िक्र किया था कि 'राष्ट्रपति के फैसलों को चुनौती दी जा सकती है.' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'राष्ट्रपति और राज्यपाल को माफी देने का अधिकार है, लेकिन अगर उन्होने किसी अपराधी की दया याचिका में जिसमें उस मौत की सजा मिली हुई है, में प्रतिक्रिया देने में अनुचित और अस्पष्ट देरी की जाती है तो मौत की सजा पाने वाले कैदी के पास अदालत जाने का ऑप्शन होगा.