देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक कररा देते हुए इस पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लगाई गई इस रोक से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में कमी आएगी.
ऐसे में सवाल है यह भी उठता है कि अब राजनीतिक पार्टियां चंदा कैसे लेंगी. आज हम आपको बताते हैं कि राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा और किन तरीकों से चंदा लेते हैं.
राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट चंदा मिलता है. पार्टियों को कॉर्पोरेट सेक्टर से मिलने वाले चंदे को कंपनी एक्ट 2013 के तहत नियंत्रित किया जाता था. जो कंपनी पैसा डोनेट कर रही है, उसके लिए भी नियम थे. सेक्शन 182 कहता है कि दान देने वाली पार्टी को 3 साल पुराना होना जरूरी है. इसके अलावा कंपनी अपने प्रॉफिट का 7.5 फीसदी से ज्यादा पैसा दान नहीं कर सकती. खास बात है कि इसे कंपनी को अपने फाइनेंशियल डॉक्यूमेंट्स में दिखाना भी अनिवार्य था. लेकिन 2017 के वित्त कानून में बदलाव हुआ. कॉर्पोरेट चंदे से 7.5 फीसदी की बाध्यता को खत्म कर दिया गया. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने डोनेशन के नियमों में बदलाव भी किए. जिसके तहत राजनीतिक पार्टियां विदेशी चंदा भी ले सकती हैं. कोई भी कंपनी कितनी भी रकम किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को दे सकती है.
इसकी शुरुआत साल 2013 में हुई थी. यह नॉन-प्रॉफिट कंपनी है. ये कंपनियों से चंदा भी ले सकती है और उसे पार्टियों में बांट सकती हैं. इसमें लेन-देन अज्ञात बना रहता है. चुनाव आयोग की गाइडलाइन के अनुसार, जनवरी 2013 के बाद गठित सभी चुनावी ट्रस्टों को प्राप्त और वितरित धन का विवरण घोषित करना अनिवार्य किया गया है. केंद्र सरकार के नियम इन कंपनियों को एक वित्तीय वर्ष में अपनी कुल आय का 95% पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान करने के लिए बाध्य करते हैं.
राजनीतक दल क्राउड फंडिंग के जरिए भी पैसा जुटाते हैं. कुछ समय पहले कांग्रेस ने क्राउड फंडिंग के जरिए पैसा जुटाना शुरू किया था. कांग्रेस के ‘डोनेट फॉर देश’ अभियान की शुरुआत के 48 घंटे के अंदर 1 लाख 13 हजार लोगों ने डोनेशन भेजा था. पार्टी को सबसे ज्यादा डोनेशन महाराष्ट्र से मिला था. इसके बाद राजस्थान, दिल्ली, यूपी और कर्नाटक था
पार्टियां पैसा इकट्ठा करने के लिए कई तरीके अपना रही हैं, जिसमें सदस्यता अभियान भी शामिल है. आसान भाषा में समझें पार्टी की सदस्यता लेने पर उस शख्स को कुछ फीस देनी होती है, जिससे पार्टी को पैसे मिलते हैं और लोग सदस्यता लेते हैं. हालांकि कई बार इसको लेकर विवाद भी उठा है, जिसमें सामने आया कि कई अंजान लोगों ने पार्टी की सदस्यता के नाम पर धन उगाही का स्कैम चलाया, जिन्हें राजनीतिक दलों की तरफ से परमिशन ही नहीं दी गई. First Updated : Thursday, 15 February 2024