Inside Story : अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में 40 वकीलों ने की जिरह, इन चार दलीलों ने दिलाई जीत

Article 370 Verdict : जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब 22 याचिकाएं दायर की गईं. सुप्रीम कोर्ट में पांच सदस्यीय बेंच के सामने 2 अगस्त से लेकर 5 सितंबर 2023 के बीच 16 दिन तक आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने को लेकर सुनवाई चली.

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Article 370 Verdict : जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब 22 याचिकाएं दायर की गईं. सुप्रीम कोर्ट में  पांच सदस्यीय बेंच के सामने 2 अगस्त से लेकर 5 सितंबर 2023 के बीच 16 दिन तक आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने को लेकर सुनवाई चली. कुल 40 वकीलों की दलीलें सुनने के बाद 5 सितंबर को संविधान पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने को सही ठहराया. इस पूरे मामले में देश के दिग्गज वकीलों ने अपना-अपना पक्ष रखा और एक से बढ़कर एक तर्क दिए. दोनों पक्षों के बीच कुछ तर्कों को देखते हैं. 

याचिकाकर्ताओं की ओर से 17 वकीलों ने दलीलें दीं

370 को खत्म करने खिलाफ याचिकाकर्ताओं की तरफ से कुल 17 वकील पेश हुए. इनमें वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, दुष्यंत दवे, चंदेर उदय सिंह, दिनेश द्विवेदी, शेखर नाफाडे, नित्य रामकृष्णनन, गोपाल सुब्रमण्यम, संजय पारीख, वारीशा फरासत, मुजफ्फर हुसैन बेग, जफर शाह, गोपाल संकरनारायनन, मेनका गुरुस्वामी, पी. सी. सेन, इरफान हफीज लोन और जहूर अहमद भट्ट शामिल रहें.

आर्टिकल 370 को खत्म करने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला.

सरकार की ओर से इन वकीलों ने रखा पक्ष

अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर. वेंकटरमनी, सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज, विक्रमजीत बनर्जी और कनु अग्रवाल ने इस मामले में भारत सरकार का पक्ष रखा. इनके साथ ही सीनियर वकील हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी, गुरु कृष्णकुमार के अलावा अर्चना पाठक दवे, वीके बीजू, चारू माथुर, महेश जेठमलानी जैसे कुल 23 वकीलों ने याचिकाकर्ताओं के सवालों के जवाब दिए.

 

क्या थीं याचिकाकर्ताओं की क्या थीं दलीलें ?

पहला – याचिकाकर्ता के वकीन ने कहा कि अनुच्छेद 370 भारत के साथ जम्मू कश्मीर के एकीकरण की राह में जरूरी व्यवस्था थी, लेकिन मोदी सरकार ने संसद में हासिल भारी बहुमत का फायदा उठाते हुए 370 को खत्म कर संविधान के साथ खिलवाड़ किया है. आर्टिकल 370 को निरस्त करने के फैसले का विरोध कर रहे वकीलों ने इसे फेडरलिज्म यानी संघवाद पर हमला बताया था.

दूसरा – सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि साल 1957 में जब राज्य का अपना संविधान बना और जम्मू कश्मीर की संविधान सभा भंग हो गई, तभी आर्टिकल 370 एक स्थायी रूप ले चुका था. ऐसे में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को भंग किये जाने के करीब 6 दशक बाद अनुच्छेद 370 को समाप्त नहीं किया जा सकता. ज्यादातर दलील इसी बिंदु के आस पास घूमती रही कि धारा 370 टेम्पररी (थोड़े समय के लिए की गई) व्यवस्था नहीं थी.

तीसरा – याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल का तर्क था कि आर्टिकल 368, जिसके जरिये भारत सरकार को संविधान में संशोधन का अधिकार है, वह धारा 370 पर लागू ही नहीं होता. ऐसे में 370 को निरस्त करने का फैसला भी यह संसद नहीं कर सकती.

चौथा – याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह संविधान निर्माताओं की ओर से दिए गए किसी राज्य के विशेष दर्जे को ही छीन ले. सवाल उठा कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था, कोई चुनी हुई सरकार सत्ता में नहीं थी, तब जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों की राय लिए बगैर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला कैसे लिया गया.

सरकार की ओर से क्या तर्क दिए गए?

पहला – सरकार की ओर सुप्रीम कोर्ट में पेश वकील ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को देश के दूसरे हिस्सों से पूरी तरह जोड़ने के लिए आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करना जरूरी था. सरकार ने तो कोर्ट में यहां तक कहा कि भारत में जम्मू कश्मीर का पूरी तरह विलय बगैर अनुच्छेद 370 को निरस्त किए मुमकिन नहीं था.

दूसरा – भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा भारत के संविधान के मातहत थी. साथ ही चूंकि संविधान सभा और राज्य की विधानसभा एक दूसरे के पर्यायवाची थे, इसलिए यह फैसला संविधान सम्मत है.

तीसरा – धारा 370 को निष्प्रभावी करने के बाद से पिछले लगभग साढ़े चार बरसों में घाटी में बहुत तरक्की हुई है. सरकार ने इसको लेकर कुछ बेहद दिलचस्प आकड़ों को देश की सबसे बड़ी अदालत में रखा था.  370 को निष्प्रभावी करने के बाद आतंकी गतिविधियों में करीब 45 प्रतिशत तक की कमी आई है. इसके अलावा घुसपैठ में 90 फीसदी और पत्थरबाजी की घटनाओं में 97 फीसदी तक गिरावट आई है. वहीं सुरक्षा कर्मचारियों के बीच हताहतों की संख्या में भी 66 प्रतिशत तक कमी  आई है. 

चौथा – एक बार जैसे ही घाटी में स्थितियां अनुकूल हो जाएंगी, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा. साथ ही सरकार ने वहां चुनाव भी कराए जाने की बात कही थी लेकिन इसके लिए कोई नियत तारीख नहीं बताया था. First Updated : Monday, 11 December 2023

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