Kakori kand:अशफाक उल्‍ला खां कौन थे, जिनको आज दिन दी गई थी फांसी, जानिए पूरी कहानी....

Kakori kand: आज भारत मां के वीर सपूत अशफाक उल्ला खान की पुण्य तिथि है, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराकर अपने प्राणों की आहुति दे दी और अमर हो गए. आज ही के दिन काकोरी कांड में शामिल राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह को ब्रिटिश सरकार ने मौत की सजा दी थी.

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Kakori kand: काकोरी कांड में शामिल अशफाक उल्‍ला खां को आज ही के दिन दी गई थी फांसी, दोस्‍त की दगाबाजी से वो गिरफ्तार हो गए थे. देश को गुलामी की जंजीरों से छुड़ाकर खुद बलिदान होकर अमर हो जाने वाले मां भारती के वीर सपूत अशफाक उल्‍ला खां की आज पुण्‍यतिथि है. काकोरी कांड में शामिल राम प्रसाद बिस्‍मिल अशफाक उल्‍ला खान और रोशन सिंह को आज ही दिन अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी. क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड की घटना को नौ अगस्त 1925 को अंजाम दिया था.

दोस्‍त ने की दगाबाजी

26 सितंबर 1925 की रात जब काकोरी कांड के सिलसिले में पूरे देश में एक साथ गिरफ्तारियां हुईं तो अशफाक पुलिस की आंखों में धूल झोंककर भाग निकले. सबसे पहले वह नेपाल गये. कुछ दिन वहाँ रहने के बाद वे कानपुर आये और गणेशशंकर विद्यार्थी के प्रताप प्रेस में दो दिन रुके. वहां से बनारस होते हुए पलामू आये.

यहां दस महीने तक रहे. उन्होंने डाल्टनगंज शहर में मथुरा के लाला जी के रूप में नौकरी की. एक दिन जब भेद खुला तो अशफाक ने डालटनगंज से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी और अपने जिले शाहजहाँपुर के एक पुराने मित्र के घर रुका. लेकिन दोस्त ने उन्हें धोखा दे दिया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

आज के दिन मिली फांसी

इसके बाद 19 दिसंबर, 1927 को फैजाबाद में इन्हें फांसी दे दी गई थी. तब इनकी उम्र महज 27 साल थी.पलामू के महावीर वर्मा ने लिखा है, काकोरी षडयंत्र केस का प्रमुख अभियुक्त अशफाक उल्लाह खां ने बहुत दिनों तक पलामू जिला परिषद में काम किया था. वह गुप्त रूप से क्रांतिकारियों को संगठित करने में लगे हुए थे. उस समय पलामू क्रांतिकारियों का गढ़ था. यहां रहने के दौरान उन्होंने खुद को मथुरा का कायस्थ बताया था. यहां उन्होंने बांग्ला भाषा भी सीखी.

9 अगस्त 1925

9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था. ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध में हथियार खरीदने के लिए ट्रेन से ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया गया था. इस घटना को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के दस सदस्यों ने अंजाम दिया था. 8 अगस्त को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर पर हुई एक आपातकालीन बैठक में इसकी योजना बनाई गई और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में चढ़े. हरदोई शहर का.

रोकी गई ट्रेन

शाहजहांपुर से बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, मुरारी शर्मा और बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिडी, शचींद्रनाथ केशव चक्रवर्ती, औरैया से चंद्रशेखर आजाद और मनमथनाथ गुप्ता और मुकुंदी लाल शामिल थे. 9 अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खाँ के नेतृत्व में रेल रोकी गयी. यह घटना लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन पर घटी, जिसे काकोरी कांड का नाम दिया गया.

बेहतरीन शायर 

अशफ़ाक़ 'हसरत' उपनाम से कविता भी लिखते थे. काकोरी कांड के बाद जब क्रांतिकारियों को सजा सुनाई गई तो अशफाक ने भावुक होकर लिखा- 'उनके अत्याचारों से तंग आकर हमने भी जिंदान-ए-फैजाबाद से सू-ए-आदम को छोड़ दिया' .क्रांतिकारियों के बलिदान से मिली आजादी को बचाया गया. लेकिन उनकी यादों को सहेजने के प्रति सरकार का रवैया उदासीन नजर आ रहा है. हालत यह है कि अब न तो अशफाक का फैजाबाद बचा, न रोशन सिंह का इलाहाबाद और उनकी मलाका जेल. कुछ लोग इसे उनके क्रांतिकारियों की यादों के संरक्षण से बरता जा रहा सौतेलापन. First Updated : Tuesday, 19 December 2023