Youngest Freedom Fighter: 12 साल की उम्र में अंग्रेजों के सामने सीना तानकर खड़ा हुआ, कौन था सबसे छोटा फ्रीडम फाइटर?
Youngest Freedom Fighter: हमारे देश को आज़ादी दिलाने के लिए लाखों लोगों ने अपनी जान की आहूति दे दी. लोकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो शहीद होकर भी अमर हो जाते हैं.
हाइलाइट
- सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी थे बाजि राउत
- बाजि राउत वानर सेना के थे हिस्सा
Youngest Freedom Fighter: बात 10 अक्टूबर 1938 की है जब ब्रिटिश पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया और उनको भुवनेश्वर थाना ले आई थी. इनकी रिहाई की मांग जोर पकडऩे लगी. जिसपर पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं, इसमें दो लोगों की मौत हुई. लोगों के बढ़ते गुस्से को देख पुलिस ने ब्राह्मणी नदी के नीलकंठ घाट पर होते हुए ढेंकानाल की तरफ भागने की कोशिश की. ये लोग बारिश में भीगते हुए नदी किनारे पहुंचे. वहीं से शुरू हुई सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी बाजि राउत की कहानी.
बाजि राउत का जन्म 1926 का ओडिशा के ढेंकनाल में हुआ था. बाजि के पिता हरि राउत एक नाविक थे, उनकी कम उम्र में ही मौत हो गई थी. जिसके बाद बाजि की मां ने ही उनकी परवरिश की थी.
बाजि राउत वानर सेना के थे हिस्सा
उस दौरान हर जगह पर आज़ादी के लिए आवाज़े उठती रहती थीं. इसी कड़ी में ढेंकनाल शहर के रहने वाले वैष्णव चरण पटनायक ने प्रजामंडल नाम से एक दल बनाया था जिसमें वानर सेना भी थी, इस सैना में छोटे बच्चों को शामिल किया जाता था. इसी सैना का बाजि राउत भी हिस्सा थे. पटनायक का काम था कि वो पूरे देश में जाकर लोगों में आज़ादी को लेकर लोगों में जागरुकता लाएं.
बाजि ने अंग्रेजों का तोड़ा था गुरुर
उस समय में जनता अंग्रेजों के साथ साथ अपने राजाओं से भी परेशान हो चुकी थी. इस बात का पता चलने पर वहां के राजा शंकर प्रताप सिंहदेव के लिए अंग्रेजों और आसपास के राजाओं ने मदद भेजी थी. 10 अक्टूबर 1938 को पुलिस ने गांव के कुछ लोगों को गिरफ्तार किया और भुवनेश्वर थाना ले गई. जिनकी रिहाई के लिए लोग प्रदर्शन करने लगे थे. जिसके बाद पुलिस ने गोलियां चला दी, इस हमले में दो लोगों की जान चली गई. इसके बाद से गांव के लोगों में इतना गुस्सा बढ़ गया कि अंग्रेज़ो को वो गांव छोड़ने का प्लान बनाना पड़ा.
पुलिस की मदद से किया इनकार
गांव वालों के आक्रोश के बाद अंग्रेज़ी पुलिस ने गांव छोड़ने का प्लान बनाया. जिसमें वो ब्राह्मणी नदी के नीलकंठ घाट से होते हुए ढेंकनाल की ओर भागे. उसी जगप पर बाजि अपनी वानर सैना के साथ वहीं पर पहरा दे रहे थे. उनके पास में ही घाट पर एक नाव भी खड़ी थी. जिस नांव से अंग्रेज़ भाग जाना चाहते थे. उन्होने बाजि से नाव से दूसरी पार ले जाने के लिए बोला एक बार बाजि ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन दूसरी बार पूछने पर उन्होने मना कर दिया.
बाजि के सिर पर किया वार
इसके बाद बाजि ने चिल्लाना शुरु कर दिया, जिसपर पुलिस वालों ने उनपर बंदूक की बट से हमला किया. पहला हमला उनके सिर पर किया जिसके बाद वो पूरे खून में भीग गए. लेकिन बहादुर बाजि इतने पर भी चिल्लाते रहे ताकि उनके साथी उनकी आवाज़ सुन लें. लेकिन जब तक साथियों ने बाजि की आवाज़ सुनी तब तक अंग्रेज़ी पुलिस वालों ने उनपर गोलियां बरसा दीं जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
यहीं से तेज़ हुआ आंदोलन
बाजि की आवाज़ सुनकर जब लोग वहां पहुंचे तो गांव वालों पर भी पुलिस ने फायरिंग कर दी. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी. बाजि राउत के इस बलिदान ने लोगों के दिलों में आज़ादी की आग लगा दी थी. इसके बाद से आज़ादी के लिए आवाज़े उठने लगी.