Ayodhya Ram Mandir : क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा जिसके बाद पत्थर की मूर्ति बन जाती है भगवान
Pran Pratishtha : किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करते समय कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है. इन सभी चरणों को अधिवास कहा जाता है. हिंदू धर्म के ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन मिलता है.
अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है. इसको लेकर देशभर में लोगों के बीच खुशी का माहौल है. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है. क्यों किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करनी जरूरी होती है. इसके बाद मूर्ति भगवान कैसे बन जाती है. करीब 500 के लिए लंबे इंतजार के बाद अयोध्या में आज यानी 22 जनवरी 2024 को भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है. बता दें कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान 16 जनवरी 2024 से ही शुरू हो गया था.
प्राण प्रतिष्ठा के लिए आज का दिन क्यों चुना गया?
राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए देशभर के विद्वानों और शीर्ष ज्योतिषियों से इसका शुभ मुहूर्त निकलवाया था. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अति सूक्ष्म मुहूर्त समय में निकला था. इसके लिए बस 84 सेकंड का समय था. प्राण प्रतिष्ठा का यह मुहूर्त पंडित गणेश्वर शास्त्री ने निकाला था. राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की स्थापना के लिए 17 जनवरी से 25 जनवरी के बीच की तारीख बताई थी. इसमें से 22 जनवरी को श्रेष्ठ माना गया. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्योतिष गणना के अनुसार, 22 जनवरी यानी आज की तिथि और मुहूर्त अग्निबाण मृत्यु बाण,चोरवाण, नृपवाण और रोगवान से मुक्त है.
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों जरूरी होती है?
हिंदू धर्म के मुताबिक, किसी भी मंदिर में देवी-देवता की मूर्ति स्थापित करने से पहले उस मूर्ति की विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा करना बेहद जरूरी होता है. प्राण प्रतिष्ठा का मतलब है कि मूर्ति में प्राणों की स्थापना करना या जीवन शक्ति को स्थापित करना या किसी मूर्ति को देवता के रूप में बदलना. प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मंत्रों का उच्चारण और विधि-विधान से पूजा करके मूर्ति में प्राण स्थापित किए जाते हैं.
किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करते समय कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है. इन सभी चरणों को अधिवास कहा जाता है. हिंदू धर्म के ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन मिलता है. हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बिना प्राण प्रतिष्ठा के किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं की जा सकती है. प्राण-प्रतिष्ठा से पहले तक प्रतिमा निर्जीव रहती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही उसमें जीवन आता है और वह पूजनीय बन जाती है.
प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया क्या होती है?
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई चरण होते हैं, जिसे अधिवास कहा जाता है. अधिवास वह प्रक्रिया है जिसमें मूर्ति को विभिन्न चीजों में डुबाया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत मूर्ति को पहले पानी में रखा जाता है. फिर मूर्ति को अनाज में रखा जाता है. इसके बाद मूर्ति को फलों में रखा जाता है और फिर इसे औषधि, केसर और फिर घी में रखा जाता है.
मूर्ति को आइना क्यों दिखाया जाता है?
इस प्रक्रिया के बाद मूर्ति को विधि-विधान के साथ स्नान कराया जाता है. इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से मूर्ति को स्नान और अभिषेक कराया जाता है. स्नान के बाद कई तरह के मंत्रों का उच्चारण करके भगवान को जगाया जाता है. इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा की पूजन क्रिया शुरू होती है. पूजा के वक्त मूर्ति का मुख पूर्व दिशा में रखा जाता है और इसके बाद सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके उन्हें इस शुभ कार्य में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण किया जाता है.
इसके बाद पूजन की सभी क्रियाएं की जाती हैं. इस दौरान भगवान को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति को आइना दिखाया जाता है. माना जाता है कि भगवान के आंखों में इतना तेज होता है कि उसका तेज सिर्फ भगवान खुद की सहन कर सकते हैं. अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है.